Manda Roti History: मुगल काल में हुई थी मांडा रोटी की शुरुआत, आज देश-विदेश में बनी लोगों की पसंद
मध्य प्रदेश के शहर बुरहानपुर में मिलने वाली मांडा रोटी आज दुनियाभर में मशहूर हो चुकी है। देश-विदेश से लोग इस शहर न सिर्फ इसका स्वाद चखने पहुंचते हैं बल्कि इसे बनाने की विधि भी देखते हैं। तो चलिए जानते हैं इस खास रोटा का इतिहास-
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Manda Roti History: हिन्दुस्तान का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश का इतिहास और यहां का पर्यटन देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी काफी मशहूर है। यही वजह है कि यहां दुनियाभर से लोग घूमने-फिरने आते हैं। धार्मिक और एतिहासिक स्थलों से भरे इस राज्य का खानपान भी दुनियाभर में काफी मशहूर है। मध्य प्रदेश के इन्हीं मशहूर व्यंजनों में से एक है बुरहानपुर की रूमाली मांडा रोटी। रोटी की यह खास किस्म इन दिनों लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है। मांडा रोटी में बुरहानपुर देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी अलग पहचान दिलाई है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता के चलते अब लोग दुकानों पर इसे बनाने की विधि देखने के लिए पहुंचने लगे हैं। तो चलिए आज बात करते हैं इस अनोखी किस्म की रोटी और इसके इतिहास के बारे में-
मुगल शासन में हुई थी शुरुआत
हम सभी ने होटलों में रूमाली रोटी खाई होगी। बुरहानपुर की मांडा रोटी काफी हद तक इसी रूमाली रोटी की ही तरह होती है। हालांकि, आम रूमाली रोटी के विपरीत इसका वजन, आकार और बनाने का तरीका बिल्कुल अलग होता है। बात करें इसके इतिहास की तो इतिहासकार होशंग हवलदार के मुताबिक मांडा रोटी की शुरूआत मुगल शासनकाल में हुई थी। सन 1601 में जब मुगल शासन आया तो उन्होंने बुरहानपुर को अपनी फौज की छावनी बना दिया। इसकी वजह से देशभर के मुगल सैनिक बुरहानपुर आया करते थे। इन दौरान कम समय में ज्यादा खाना बनाना मुश्किल होने लगा था। ऐसे में स्थानीय कारीगरों ने मुगल शासकों कम समय में ज्यादा खाना बनाने के लिए मांडा रोटी का सुझाव दिया।
अब ढाई सौ ग्राम की होती है रोटी
उस दौरान एक मांडा रोटी करीब 500 ग्राम वजनी होती थी। लेकिन बदलते समय के साथ इस रोटी के आकार और वजन में भी बदलाव कर दिया गया। मौजूदा समय में यह रोटी लगभग 250 ग्राम वजनी मिलती है। हालांकि, इसके बाद भी मांडा रोटी की गिनती दुनिया भी सबसे बड़ी और स्वादिष्ट रोटी में होती है। यही वजह है कि बुरहानपुर में हर विशेष अवसरों पर इस रोटी का इस्तेमाल होता है। लेकिन बीते कुछ समय से इसे बनाने वाले कारीगरों की संख्या में कमी देखने को मिली है। दरअसल, मांडा रोटी को बनाने में काफी मेहनत लगती है, जिसकी वजह से नई पीढ़ी के कारीगर इसमें कुछ खास रुचि नहीं ले रहे हैं।
सिर्फ बुरहानपुर में मिलते हैं कारीगर
इतिहासकार मोहम्मद नौशाद बताते हैं कि पहले मांडा रोटी के लिए आटा हाथ से ही गूंथा जाता था। लेकिन वर्तमान में इसके आटे को मिलाने के लिए मिक्सर का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है। वहीं, मांडा बनाने वाले कारीगरों की मानें तो मांडा रोटी बनाने वाले कारीगर सिर्फ बुरहानपुर में ही पाए जाते हैं। दुनियाभर में इस रोटी की बढ़ती डिमांड की वजह से अब बुरहानपुर से ही कारीगर अरब देशों, श्रीलंका, नेपाल आदि देशों में जाते हैं। इतना ही नहीं देश के विभिन्न राज्य जैसे मप्र, महाराष्ट्र, गुजरात में भी विशेष मांग पर कारीगर जाते हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में मांडा रोटी बनाने वाले कई कारीगर स्थायी रूप से शिफ्ट हो गए हैं।
रोटी की विधि देखने जाते हैं पर्यटक
वहीं, होटल उद्योग से जुड़े और पर्यटन के जानकारों की मानें तो लोगों के बीच इस रोटी का चलन इस कदर बढ़ चुका है कि वह न सिर्फ इसे खाते हैं, बल्कि इसे बनाने की विधि देखने तक के लिए दुकान जाते हैं। देश-विदेश से बुरहानपुर आने वाले पर्यटक मांडा रोटा का स्वाद लेने के साथ ही यह कैसे बनती है, यह देखने दुकान भी पहुंचते हैं। लोगों के लिए इसे बनते हुए देखना बेहद खास होता है। इतना ही नहीं इसे बनते देख लोग इसके इतने दीवाने हो जाते हैं कि मांडा रोटी खरीद कर इसके स्वाद का आनंद उठाते हैं।