Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Swami Vivekananda Jayanti 2023: अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की इन 10 बातों से प्रभावित थे स्वामी जी

Swami Vivekananda Jayanti 2023 रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को अपना शिष्य बनाया था जो बुद्धि और तर्क में विश्वास करते थे। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद के हर सवाल के जवाब में समाधान बताया जिससे प्रभावित होकर वे भक्ति की राह पर चल पड़े।

By Ruhee ParvezEdited By: Ruhee ParvezUpdated: Thu, 12 Jan 2023 12:26 PM (IST)
Hero Image
Swami Vivekananda Jayanti 2023: रामकृष्ण परमहंस की इन बातों से प्रभावित हो गए थे स्वामी जी

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Swami Vivekananda Jayanti 2023: स्वामी विवेकानंद का जन्‍म आज ही के दिन (12 जनवरी) साल 1863 में कोलकाता में हुआ था। उनके माता-पिता ने उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त रखा था। स्‍वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर, 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन सभा में भाषण दिया, जिसके बाद भारत को पूरी दुनिया के सामने आध्यात्म के केंद्र के तौर पर देखा जाने लगा। उनके अनमोल विचार युवाओं को सफलता का रास्‍ता दिखाते हैं। इसके अलावा स्‍वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु माना था। इनका रिश्ता गुरु-शिष्य के गहरे संबंध का प्रतीक माना जाता है।

स्‍वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं में गहरी आस्था रखने वाले साधु-संन्यासियों को संगठित करने के लिए 1 मई, 1897 में बेलूर मठ स्थापना की थी। यह पश्चिम बंगाल के कोलकाता में है। बेलूर मठ से स्‍वामी विवेकानंद का गहरा संबंध रहा, उन्होंने इसके ज़रिए रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों को आम लोगों तक पहुंचाया। आइए आज जानते हैं स्वामी जी और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस के खास रिश्ते के बारे में।

1. स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। नरेंद्र नाथ दत्त ने महज 25 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और वे एक साधारण संन्यासी बन गए थे। संन्यास लेने के बाद उनका नाम स्वामी विवेकानंद पड़ गया था।

2. विवेकानंद जी के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, वे कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील थे। जबकि उनकी मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। स्वामी जी का झुकाव बचपन से ही अपनी मां की तरह आध्यात्मिकता की ओर ज़्यादा रहा।

3. साल 1879 में उन्‍होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्‍थान हास‍िल क‍िया था, जिससे साबित होता है कि वे पढ़ाई में भी अव्वल थे।

4. स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु माना था। इनसे स्वामी जी की मुलाकात साल 1881 में कलकत्ता के दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में हुई थी। वहां से ही परमहंस की विचारधारा से वे इतने प्रभावित हो गए कि उन्हें अपना गुरु मान लिया।

5. विवेकानंद और रामकृष्‍ण परमहंस की मुलाक़ात कोई आम मुलाक़ात नहीं थी, क्योंकि विवेकानंद जी ने इस दौरान उनसे वही सवाल किया जो वो दूसरों से अक्सर किया करते थे। सवाल था कि 'क्या आपने कभी भगवान को देखा है?'। जिसके जवाब में रामकृष्ण परमहंस ने कहा था कि 'हां मैंने देखा है, मुझे भगवान उतने ही साफ तरह से दिखते हैं, जितने कि तुम। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं।' रामकृष्‍ण परमहंस के इस जवाब ने विवेकानंद के जीवन पर गहरी छाप छोड़ दी और वे उनके शिष्य बन गए।

आइए स्वामी जी और रामकृष्‍ण परमहंस के बीच कुछ ऐसे ही दिलस्प संवाद पर नज़र डालें:

स्वामी विवेकानंद: लोगों की कौन सी बात आपको हैरानी में डाल देती है?

रामकृष्ण परमहंस: जब भी इंसान कष्ट में होता है तब ही पूछता है, “मैं ही क्यों?” जब उन्हें बेशुमार खुशियों मिलती हैं तब कभी नहीं सोचते, “मैं ही क्यों?”

स्वामी विवेकानंद: आज जीवन इतना कठिन क्यों हो गया है?

रामकृष्ण परमहंस: जीवन का विश्लेषण करना इसे जटिल बना देता है, इसलिए इसे बंद कर दो और जीवन को सिर्फ जिओ।

स्वामी विवेकानंद: फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं?

रामकृष्ण परमहंस: परेशान होना तुम्हारी आदत बन गयी है। यही वजह है कि तुम खुश नहीं रह पाते!

स्वामी विवेकानंद: अच्छे लोग हमेशा कष्ट क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस: हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है। सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है। अच्छे लोग कष्ट नहीं पाते बल्कि उन्हें परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इस तरह के अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, यह इम्तिहान बेकार नहीं जाता।

स्वामी विवेकानंद: आपका मतलब है कि ऐसे अनुभवों से फायदा होता है?

रामकृष्ण परमहंस: हां, हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह होता है। पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है।

स्वामी विवेकानंद: समस्याओं से घिरे रहने के कारण, हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं…

रामकृष्ण परमहंस: अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो। अपने भीतर झांको, आखें दृष्टि देती हैं, हृदय राह दिखाता है।

स्वामी विवेकानंद: क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्ट देती है?

रामकृष्ण परमहंस: सफलता का पैमाना दूसरे लोग तय करते हैं। जबकि संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो।

स्वामी विवेकानंद: मुश्किल समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंस: हमेशा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है। जो हासिल न हो सका उसे नहीं, बल्कि जो पाया है उसे हमेशा गिनो।

स्वामी विवेकानंद: मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं?

रामकृष्ण परमहंस: बिना किसी अफ़सोस के अपने अतीत का सामना करना चाहिए। पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी मौजूदा ज़िंदगी को संभालना चाहिए और बिना किसी डर के अपने भविष्य की तैयारी करनी चाहिए।

स्वामी विवेकानंद: कई बार मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं।

रामकृष्ण परमहंस: कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती। अपनी आस्था बनाए रखो और डर को दूर रखो। जीवन कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है, बल्कि एक रहस्य है, जिसे तुम्हें खोजना है। मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है, तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है।