बढ़ाएं आध्यात्मिक भूमि की उर्वरता, ताकि उपजे अंतस की चेतना
उपजाऊ मिट्टी जैसे बन जाएं ताकि आत्मा विकसित होकर फलदार वृक्ष बनकर सबको फल और छाया दे। आत्मा को शांत मन की चाह है ताकि वह अपना प्रभाव दिखा सके। हमें वह भूमि तैयार करनी होगी ताकि संपूर्ण शिक्षाएं हमारे अंदर बोई जा सकें और हममें आध्यात्मिक जागृति आ सके।
By Jagran NewsEdited By: Vivek BhatnagarUpdated: Sun, 27 Nov 2022 07:33 PM (IST)
संत राजिंदर सिंह जी महाराज। हमारे भीतर की गहराई में हमारे शरीर को जान देने वाला हमारा अंतस है, जो प्रभु के प्रेम, प्रकाश और शांति से भरपूर है। वह हमें इसलिए प्रतीत नहीं होता, क्योंकि मन-माया और जड़ता के पर्दों ने हमारे आत्मा को ढक रखा है। प्रेम और आनंद की अवस्था आत्मा का स्वभाव है, वही उसके लिए अनुकूल है। किंतु हमारे मन की इच्छाओं ने इसे रोक रखा है। हमारा मन सांसारिक आकर्षणों में उलझ जाता है, जबकि ये सभी आकर्षण अस्थायी हैं। ये एक न एक दिन हमसे छिन सकते हैं या खत्म हो सकते हैं। जब वे हमसे छिन जाते हैं तो मन को दुःख-दर्द सहन करना पड़ता है। इस प्रकार हमारा जीवन एक हिंडोले जैसा बन गया है, जिसमें हम कभी सुख तो कभी दुःख से गुजरते रहते हैं। अगर हम अपनी आत्मा के असली रूप से जुड़ जाएं तो हम सदा सुख और शांति से भरपूर होंगे।
संत-महापुरुष दुःखों को समाप्त करने के लिए सभी को आत्मा को जानने की बात कहते हैं। बुद्ध संसार के महानतम आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं। उन्होंने संसार को जाग्रत होने का रास्ता दिखाया। वे कहते थे कि जो शिष्य सत्य की खोज में हैं, वे एक उपजाऊ भूमि जैसे हैं। वे सिखाई गई साधनाओं को पूर्ण रूप से सीख लेते हैं। कुछ शिष्य सामान्य भूमि जैसे होते हैं, वे पूरा जीवन शिक्षाओं के लिए समर्पित करना नहीं चाहते। तीसरी श्रेणी के लोगों की भूमि बंजर होती है, लेकिन यदि वे शिक्षा का एक भी वाक्य सीख लेते हैं तो वे इससे अवश्य लाभ प्राप्त करेंगे। आप एक उपजाऊ मिट्टी जैसे बन जाएं, ताकि आत्मा विकसित होकर फलदार वृक्ष बनकर सबको फल और छाया दे। आत्मा को शांत मन की चाह है, ताकि वह अपना प्रभाव दिखा सके। हमें वह भूमि तैयार करनी होगी, ताकि संपूर्ण शिक्षाएं हमारे अंदर बोई जा सकें और हममें आध्यात्मिक जागृति आ जाए।
यह भूमि तैयार करने के लिए प्रतिदिन ध्यान-अभ्यास में समय देना होगा। हमारा मन शांत होगा और हम अपने अंतर में प्रभु की ज्योति और श्रुति से जुड़ने के लिए ग्रहणशील होंगे। हम शांति और संतोष का जीवन जी सकते हैं, जो कि इच्छाओं से मुक्त हो, लेकिन हमारी इच्छाएं हमें आध्यात्मिक मार्ग से भटका देती हैं। इच्छाओं से काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पैदा होते हैं। ये पांच डाकू हमारे अंतर की शांति को भंग करके ध्यान-अभ्यास के रास्ते में हमें रुकावट पैदा करते हैं। इच्छाएं हमारे मन को सदा बेचैन और अस्थिर करती हैं। अपनी इच्छाओं को खत्म कर हम अपनी भूमि की उर्वरता को बढ़ा सकते हैं, ताकि हम अपने अंतर में आध्यात्मिक जागृति पा सकें। प्रेम और निष्काम सेवा से भरपूर जीवन व्यतीत कर हम खेत से खर-पतवार को हटाकर उसे जीवनदायी फलदार वृक्षों के लिए तैयार कर सकते हैं, ताकि हम खुशी और आनंद का जीवन जी सकें। आत्मा के लिए सर्वोत्तम मिट्टी वह है, जो प्रेम, नम्रता, सच्चाई, पवित्रता और निष्काम सेवा भाव से ओतप्रोत हो और जिसे आंतरिक ज्योति पर ध्यान-अभ्यास करके जोता गया हो। ऐसी भूमि से संतों का ज्ञान प्राप्त होता है, जिससे निश्चय ही हमारी आत्मा फलेगी-फूलेगी और उसमें आध्यात्मिक जागृति आएगी।
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
अध्यात्मिक गुरु