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व्याधिमुक्त जीवन के देवता हैं भगवान धन्वंतरि, धनतेरस को मनाते हैं उनका उनका प्राकट्य दिवस

मान्यता है कि जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे तब उनके हाथ में पीतल का अमृत-कलश था। यही कारण है कि धन्वंतरि जयंती पर आमजन बर्तन आदि खरीदता है जबकि देवताओं के वैद्य होने के नाते आयुर्वेद जगत उनकी अभ्यर्थना करता है।

By Jagran NewsEdited By: Vivek BhatnagarUpdated: Mon, 17 Oct 2022 04:05 PM (IST)
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देवताओं और असुरों में हुए संग्राम में धन्वंतरि मुद्र से इसी दिन अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।

 सलिल पांडेय। कार्तिक माह में कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के अंधकार से शुक्लपक्ष के प्रकाश की ओर ले जाने वाले पांच दिवसीय दीपावली उत्सव का प्रथम पर्व धन त्रयोदशी है। इसे धन्वंतरि-जयंती के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि सनातन ग्रंथों में धन्वंतरि को सृष्टि के पालनकर्त्ता भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है, जो देवताओं और असुरों के मध्य हुए संग्राम में समुद्र से इसी दिन अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। धन्वंतरि को आयुर्वेद के जनक और तन-मन के स्वास्थ्य व चिकित्सा के देवता माना गया है। धन्वंतरि शब्द की व्याख्या में उस धनुष का बोध भी स्पष्ट होता है जो मन और बुद्धि से संचालित होता है। धार्मिक कथाओं में दो धनुषों का प्रसंग आता है। पहला कामदेव का दृष्टि-धनुष, जिससे उसने महादेव को उद्वेलित किया था और दूसरा मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के विवाह के समय जनक दरबार में शिवजी का धनुष, जिसके टूटने पर वाणी से शब्दों के प्रहार हुए थे। मनुष्य भी यदि दृष्टि और वाणी के विकारों की प्रत्यंचा सम्हाल कर रखे और उनका सही प्रयोग करे, तो वह शिवत्व तथा श्रीराम की मर्यादा का वरण कर सकेगा। सारी विकृतियों से वह बच सकता है।

मान्यता है कि जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे, तब उनके हाथ में पीतल का अमृत-कलश था। यही कारण है कि धन्वंतरि जयंती पर आमजन बर्तन आदि खरीदता है, जबकि देवताओं के वैद्य होने के नाते आयुर्वेद जगत उनकी अभ्यर्थना करता है। वैदिक काल में देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार थे, जबकि पौराणिक काल में धन्वंतरि का उल्लेख देवों के चिकित्सक के रूप में किया गया है।

धन त्रयोदशी पर यदि आंतरिक शक्ति ज्ञान और विवेक के धन से शरीर रूपी कलश भर लिया जाए तो दूसरे दिन नरक से मुक्ति के पर्व नरक चतुर्दशी, फिर अमावस्या के दिन मन में आह्लाद, उत्साह, उमंग के दीप प्रज्वलित स्वतः होने लगेंगे, साथ ही शुक्लपक्ष में इंद्रियों के प्रभावित करने वाले इंद्र के प्रहार से जिस तरह गोकुल की रक्षा कृष्ण ने की थी, ठीक उसी तरह इंद्रिय रूपी कुलों से युक्त शरीर और मन की रक्षा होगी। फिर आत्मा-परमात्मा के द्वैत समाप्त होकर मन को समाधिस्थ करने में सफलता मिलने लगेगी।