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भगवान शिव के प्रचंड स्वरूप हैं महाकाल भैरव, जिन्हें कहते हैं काशी का द्वारपाल

शिवपुराण के अनुसार एक बार आदि योगी महादेव शिव ध्यान-समाधि में लीन थे उसी समय शक्तिमद के अहंकार में चूर अंधकासुर ने उन पर आक्रमण कर दियासमाधि भंग हो जाने से शिव का क्रोध भड़क उठा और क्रोधाग्नि से काल भैरव उत्पन्न हुए और उन्होंने अंधकासुर का अंत कर डाला।

By Jagran NewsEdited By: Vivek BhatnagarUpdated: Mon, 14 Nov 2022 05:30 PM (IST)
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वाराणसी में काल भैरव का मंदिर है, जहां उनकी बड़ी मान्यता है। उज्जैन में भी उनका प्रसिद्ध मंदिर है।

 पूनम नेगी। महावीर हनुमान की ही तरह काल भैरव भी देवाधिदेव महादेव के प्रमुख अंशावतार माने जाते हैं। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को प्रदोष काल में भगवान शंकर के अंश से काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए साधक इस तिथि को भैरव जयंती के रूप में श्रद्धाभाव से मनाते हैं। काल भैरव के आविर्भाव से जुड़े तमाम रोचक कथानक ग्रंथों व पुराणों में वर्णित हैं। शिवपुराण में वर्णित कथानक के अनुसार, एक बार आदि योगी महादेव शिव ध्यान-समाधि में लीन थे, उसी समय शक्तिमद के अहंकार में चूर महादैत्य अंधकासुर ने उन पर आक्रमण कर उनकी समाधि तोड़ दी। अचानक समाधि भंग हो जाने से भगवान शिव का क्रोध भड़क उठा और उनकी क्रोधाग्नि से काल भैरव उत्पन्न हुए और उन्होंने तत्क्षण अंधकासुर का अंत कर डाला। दूसरी ओर स्कंदपुराण के काशी-खंड में वर्णित कथानक के अनुसार, एक बार काशी में आयोजित धर्मसभा में सर्वसम्मति से महादेव की सर्वोच्चता स्वीकार कर लिए जाने से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने रुष्ट होकर शिव को अपशब्द कह दिए। तभी सहसा महादेव शिव व मां आदिशक्ति की देह से दो तेजपुंज निकले और आपस में समाहित हो एक प्रचंड काया का रूप धारण कर लिया और ब्रह्मा जी पर आक्रमण को उद्यत हो उठा। तब ब्रह्मा जी को अपनी भूल का भान हुआ और उन्होंने अपनी धृष्टता के लिए महादेव से क्षमा मांगी। वही प्रचंड स्वरूप कालभैरव के नाम से विख्यात हुए, जिन्हें भगवान शिव ने ‘काशी का द्वारपाल’ नियुक्त किया। काशी में बाबा विश्वनाथ के बाद यदि किसी का सर्वाधिक महत्व है, तो वे हैं काल भैरव। काशीवासियों की मान्यता है कि काशी विश्वेश्वर के इस शहर में रहने के लिए काल भैरव की अनुमति जरूरी है, क्योंकि दैवी विधान के अनुसार, वे इस शहर के प्रशासनिक अधिकारी हैं। लोक मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद जो भक्त इनके दर्शन नहीं करता, उसे पूजा-अर्चना का पूरा फल नहीं मिलता। काशी के कालभैरव की आठ चौकियां हैं- भीषण भैरव, संहार भैरव, उन्मत्त भैरव, क्रोधी भैरव, कपाल भैरव, असितंग भैरव, चंड भैरव और रौरव भैरव। काशी की ही तरह महाकाल की नगरी उज्जैन में भी प्रसिद्ध मंदिर है, जहां काल भैरव की बड़ी मान्यता है।