संवेदना से उपजे संबंध के संस्मरण, एक स्नेहिल और संवेदनशील सफर
उद्यमी के रूप में रतन टाटा का जीवन एक खुली किताब की तरह है लेकिन यह पुस्तक उनके जीवन के तमाम मानवीय पहलुओं से साक्षात्कार कराती है। कभी यह किसी कहानी का एहसास कराती है तो कभी निबंध जैसी लगती है और कुछ पड़ावों पर जिंदगी का चलता-फिरता दस्तावेज।
प्रणव सिरोही। मित्रता न उम्र की मोहताज होती है, न ही धन-संपदा और रुतबे-रुआब की। यह बात उम्र में करीब 56 साल का अंतर रखने और सामाजिक-आर्थिक स्तर पर शायद कभी न पार हो सकने वाली चौड़ी खाई के दो किनारों पर खड़े रतन टाटा और शांतनु नायडू पर भी सटीक बैठती है। रतन टाटा इंडिया इंक के बड़े 'आइकन' हैं तो शांतनु कुछ साल पहले तक एक गुमनाम-सी शख्सीयत। फिर जीवन का एक पड़ाव दोनों को साथ ले आया और शुरू हुआ एक स्नेहिल एवं संवेदनशील सफर। उसी सफर को शांतनु ने 'रतन टाटा : एक प्रकाश स्तंभ' पुस्तक के माध्यम से शब्दों में समेटा है।
वस्तुत: संवेदना इस बेमेल-सी दिखने वाली दोस्ती की बुनियाद बनी। बेसहारा कुत्तों के प्रति निर्ममता देख पसीजे शांतनु ने उनके लिए कुछ करने की ठानी। इसी सिलसिले में दोनों का संवाद शुरू हुआ और फिर टाटा उनके उस उपक्रम में निवेश करने के लिए तैयार भी हो गए, जिसका मकसद इन बेजुबानों की सुध लेकर उनकी दशा सुधारना था। इस साझेदारी ने उस रिश्ते की नींव डाली, जिसमें कभी टाटा शांतनु के मार्गदर्शक की भूमिका में दिखते हैं तो कभी शांतनु टाटा के सलाहकार। यह पुस्तक इस अनूठे संबंध के ऐसी ही संस्मरणों से भरी है। इन दोनों का यह रिश्ता हमें विश्व के सबसे धनी व्यक्ति एलन मस्क और पुणे के टेकी प्रणय पटोले की मित्रता की याद दिलाता है, लेकिन गहराई से देखेंगे तो दोनों संबंधों की तासीर अलग दिखती है।
एक उद्यमी के रूप में रतन टाटा का जीवन वैसे तो एक खुली किताब की तरह है, लेकिन यह पुस्तक उनके जीवन के तमाम मानवीय पहलुओं से साक्षात्कार कराती है। कई बार यह किसी कहानी का एहसास कराती है तो कभी निबंध जैसी लगती है और कुछ पड़ावों पर जिंदगी का चलता-फिरता दस्तावेज। अनुवाद अच्छा है, वहीं चित्रांकनों से पुस्तक सजीव हो उठी है।
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पुस्तक: रतन टाटा-एक प्रकाश स्तंभ
लेखक: शांतनु नायडू
प्रकाशक: मंजुल
मूल्य: 399 रुपये
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