आनंद और प्रेम से करें काम, तभी सिद्ध होगी काम की सार्थकता
जब लोग हर चीज को कठिन परिश्रम से करते हैं तो यह उनके लिए संतुष्टि का साधन बन जाती है। अगर वे चीजों को आनंद के साथ करते हैं तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे उन्होंने कुछ किया ही नहीं है। ऐसा ही होना चाहिए।
By Jagran NewsEdited By: Vivek BhatnagarUpdated: Mon, 10 Oct 2022 04:24 PM (IST)
सद्गुरु जग्गी वासुदेव। बचपन से लेकर अब तक हमें यही बताया गया है कि खूब मेहनत से पढ़ाई करो। काम खूब मेहनत से करो। किसी ने भी हमें यह नहीं सिखाया कि पढ़ाई या काम आनंद और प्रेम के साथ करो। हर कोई यही कहता है-कठिन परिश्रम करो, मेहनत से पढ़ो। लोग हर काम कठिनता से करते हैं और जब जीवन कठिन हो जाता है तो शिकायत करते हैं। अहं की प्रकृति ही ऐसी है कि यह हर चीज को कठिनता से करना चाहता है। अहं इस बात को लेकर चिंतित नहीं रहता कि आप क्या कर रहे हैं। इसकी एक ही चिंता होती है कि किसी और से एक कदम आगे रहे, बस। जीवन जीने का यह बेहद दुखद तरीका है, लेकिन अहं की तो प्रकृति ही यही है। जब लोग हर चीज को कठिन परिश्रम से करते हैं तो यह उनके लिए संतुष्टि का साधन बन जाती है। अगर वे चीजों को आनंद के साथ करते हैं, तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे उन्होंने कुछ किया ही नहीं है। क्या यह बड़ी बात नहीं है कि बहुत सारे काम करने के बाद भी आपको ऐसा लगे कि आपने कुछ किया ही नहीं है? ऐसा ही होना चाहिए। 24 घंटे काम करने के बाद भी अगर आपको लगता है कि आपने कुछ नहीं किया है, तो आप काम का भार अपने ऊपर लेकर नहीं चलते। आप एक बच्चे की तरह जीवन गुजारते हैं। अपनी क्षमताओं का अधिकतम इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ते हैं। अगर आप सभी कामों को अपने सिर पर लेकर चलेंगे, तो आपकी क्षमताओं का कभी भरपूर उपयोग नहीं हो सकेगा और आपको रक्तचाप, मधुमेह या अल्सर जैसे रोग हो जाएंगे। अगर आपके और आपके दिमाग के बीच, आपके और आपके शरीर के बीच, आपके और आपके आसपास की हर चीज के बीच एक खास दूरी है, तो वह आपको आजादी देती है कि आप जीवन के साथ जो भी करना चाहते हैं, वह कर सकते हैं, लेकिन जीवन आपको नहीं छुएगा। यह आपको किसी भी तरह से चोट नहीं पहुंचाएगा। तर्क से सोचेंगे तो आप इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि अगर आप इस तरह के हो जाते हैं तो आपके लिए दुनिया में रहना मुश्किल हो जाएगा, लेकिन सच्चाई यह नहीं है। एक स्तर पर आप अनछुए हैं, लेकिन दूसरे स्तर पर आपकी सहभागिता इतनी ज्यादा है कि हर चीज आपका हिस्सा बन जाती है। आप खुद को हर किसी के जीवन में शामिल कर सकते हैं, जैसे वह आपका अपना ही जीवन हो। जब तकलीफ और उलझन का डर नहीं होता, तो आप खुद को पूरी तरह से जीवन में झोंक सकते हैं और हर चीज में बिना किसी हिचकिचाहट के शामिल हो सकते हैं।
(ईशा फाउंडेशन के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु के प्रवचन से)