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रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore)

रवींद्रनाथ टैगोर ने कई कृतियां लिखीं जिनमें कविताएं लघु कथाएं उपन्यास काफी लोकप्रिय हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह और दहेज प्रथा को भी उजागर किया। उन्होंने अपने साहित्यिक रचना में भारतीय संस्कृति से भी रू-ब-रू कराया।

By Saloni UpadhyayEdited By: Saloni UpadhyayUpdated: Sun, 30 Apr 2023 04:01 PM (IST)
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Rabindranath Tagore: साहित्य के क्षेत्र में टैगोर का योगदान
रवींद्रनाथ टैगोर एक ऐसे शख्स थे, जिनकी विशेषज्ञता कई विषय क्षेत्रों तक फैली हुई थी। उन्होंने एक कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और चित्रकार के रूप में काम किया। उन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में बंगाली साहित्य और संगीत के साथ-साथ भारतीय कला को फिर जिंदा करने का काम किया। उन्हें 1913 में गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे इसे हासिल करने वाले पहले गैर-यूरोपीय और पहले गीतकार थे। टैगोर को गुरुदेव, कोबीगुरु, बिस्वकोबी जैसे उपनामों से भी जाना जाता था।

टैगोर की रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। जिसमें 'जन गण मन' भारत का राष्ट्रगान बना, तो दूसरी ओर 'आमार सोनार बांग्ला' बांग्लादेश का राष्ट्रगान बना।

कोलकाता में हुआ जन्म

रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता में हुआ था। टैगोर अपने माता-पिता की 13वीं और आखिरी संतान थे। उनके घर में बचपन में उन्‍हें प्‍यार से 'रबी' बुलाया जाता था। उन्होंने बेहद कम उम्र में अपनी मां को खो दिया था। उनके पिता एक यात्री थे इसलिए, उनका पालन-पोषण घर की देखभाल करने वाले लोगों ने ही किया।

एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे टैगोर ने महज 8 साल की उम्र में ही पहली कविता लिख डाली थी। उनका पहला कविता संग्रह सिर्फ 16 साल की उम्र में प्रकाशित हुआ।

टैगोर ने कालजयी रचना गीतांजलि लिखी। साल 1913 में वह साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय और पहले एशियाई बने। साहित्यकार तो वे थे ही लेकिन इसके अलावा चित्रकला और संगीत के क्षेत्र में भी उन्होंने महारत हासिल की। टैगोर की गीतांजलि, चोखेर बाली, गोरा, काबुलीवाला, चार अध्याय और घरे बाइरे सहित ढेरों बेहद चर्चित रचनाएं हैं। उनकी कई रचनाओं पर फिल्में भी बनीं।

उन्होंने बचपन में ही कालिदास की शास्त्रीय कविता से बेहद प्रभावित होकर अपनी शास्त्रीय कविताएं लिखना शुरू कीं। उनकी बहन स्वर्णकुमारी भी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। 1873 में, उन्होंने अपने पिता के साथ कई महीनों तक भ्रमण किया और कई विषयों में ज्ञान हासिल किया। वे जब अमृतसर गए, तब उन्होंने सिख धर्म के बारे में सीखा और धर्म पर लगभग छह कविताएं और कई लेख लिखे।

रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा

उनकी पारंपरिक शिक्षा इंग्लैंड के पूर्वी ससेक्स के एक पब्लिक स्कूल में हुई। वे अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए 1878 में बैरिस्टर बनने की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए। हालांकि, उन्हें स्कूली शिक्षा हासिल करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने बाद में कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन इसकी जगह उनकी रुचि शेक्सपियर को पढ़ने में ज्यादा रही।

इसी दौरान उन्होंने अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत का सार भी सीखा। फिर वह भारत लौट आए और मृणालिनी देवी से विवाह किया।

साहित्य के क्षेत्र में टैगोर का योगदान

रवींद्रनाथ टैगोर ने कई कृतियां लिखीं, जिनमें कविताएं, लघु कथाएं, उपन्यास काफी लोकप्रिय हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह और दहेज प्रथा को भी उजागर किया।

उन्होंने इतिहास और आध्यात्म से जुड़ी कई किताबें भी लिखी थीं। रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने साहित्यिक रचना में भारतीय संस्कृति से भी रू-ब-रू कराया। उन्होंने लेखन का शुरुआत अपनी भाषा बंगाली से की, लेकिन बाद में उनमें से कई का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया।

उनकी पहली रचना ’भिखारिणी’ नामक लघुकथा थी। उन्होंने अपनी लेखनी में सामाजिक मुद्दों और आम आदमी की समस्याओं को भी उजागर किया। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध रचनाएं – काबुलीवाला, गोरा, नौकाडुबी, चतुरंगा, पोस्ट मास्टर, चोखेर बाली, घाटेर कथा आदि हैं।

टैगोर ने रखी थी शांति निकेतन की नींव

रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता ने आश्रम के लिए एक विशाल भूमि खरीदी । उन्होंने 1863 में इस 'आश्रम' की स्थापना की। 1901 में, रवींद्रनाथ टैगोर ने एक ओपन-एयर स्कूल की स्थापना की। यह संगमरमर के फर्श वाला एक प्रार्थना कक्ष था और इसे 'मंदिर' का नाम दिया गया था। इसका नाम 'पाठ भवन' भी रखा गया था और केवल पांच छात्रों के साथ यह 'पाठ भवन' शुरू किया गया था। यहां कक्षाएं पेड़ों के नीचे होती थी और पारंपरिक गुरु-शिष्य पद्धति का पालन किया जाता था।

उसी दौरान रवीन्द्रनाथ टैगोर की पत्नी और दो बच्चों की मृत्यु हो गई और वे अकेले रह गए। उस समय वह बहुत परेशान था। इस बीच, उनकी रचनाएं काफी मशहूर होने लगी और बंगाली और विदेशी पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय हुईं। 1913 में, उन्हें बड़ी कामयाबी मिली। उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और वे एशिया के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता बने। अब, शांतिनिकेतन पश्चिम बंगाल का एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय शहर है।

उन्होंने पश्चिम बंगाल में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसके दो परिसर हैं एक शांतिनिकेतन में और दूसरा श्रीनिकेतन में। श्रीनिकेतन कृषि, प्रौढ़ शिक्षा, गांव, कुटीर उद्योग और हस्तशिल्प पर केंद्रित है।

1941 में दुनिया को कहा अलविदा

इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने बंगाली साहित्य के आयाम को बदल कर रख दिया। कई देशों ने महान लेखक को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी प्रतिमाएं भी बनाई हैं। लगभग पांच संग्रहालय टैगोर को समर्पित हैं, जिनमें से तीन भारत में और शेष दो बांग्लादेश में स्थित हैं।

उनका आखिरी समय काफी तकलीफ में बीता और 1937 में वे कोमा में चले गए। लंबी पीड़ा और दर्द के बाद 7 अगस्त 1941 को जोरासांको हवेली (कोलकाता) में उनका निधन हो गया। यह वही जगह थी जहां उनका बचपन बीता था।