Move to Jagran APP

Dr BR Ambedkar Death Anniversary: अंबेडकर पुण्यतिथि पर जानें 'बाबा साहेब' की ज़िंदगी से जुड़ी 9 खास बातें

Dr BR Ambedkar 67th Death Anniversary 14 अप्रैल 1891 को जन्मे बाबासाहेब ने देश में दलितों के आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण अस्पृश्यता उन्मूलन और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए लड़ाई लड़ी। अंबेडकर जन्म से बौद्ध नहीं थे लेकिन अभ्यास और दिल से बौद्ध थे।

By Ruhee ParvezEdited By: Updated: Tue, 06 Dec 2022 11:46 AM (IST)
Hero Image
जानें 'बाबा साहेब' के बारे में ये 9 खास बातें
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। BR Ambedkar Death Anniversary: भारत में डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में हर साल 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है। 'बाबासाहेब अंबेडकर' के नाम से लोकप्रिय, वे भारतीय संविधान के वास्तुकार थे। वह प्रारूपण समिति के उन सात सदस्यों में भी थे जिन्होंने स्वतंत्र भारत के संविधान का प्रारूप तैयार किया था। बाबासाहेब एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और प्रख्यात न्यायविद थे। अस्पृश्यता और जाति प्रतिबंध जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने के अंबेडकर के प्रयासों के बारे में कौन नहीं जानता।

आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर आइए जानें उनके जीवन से जुड़ी ऐसी बाते जिनके बारे में कम लोग जानते हैं।

  1. डॉ. भीमराव अंबेडकर यानी डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर का जन्म दिन 14 को 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। वो अपने माता-पिता भीमाबाई सकपाल और रामजी की चौदहवीं संतान थे। सकपाल उनका उपनाम था और अंबावडे उनका गांव का नाम था। सामाजिक-आर्थिक भेदभाव और समाज के उच्च वर्गों के दुर्व्यवहार से बचने के लिए, उन्होंने ब्राह्मण शिक्षक की मदद से अपना उपनाम "सकपाल" से "अंबेडकर" में बदल दिया।
  2. डॉ बीआर अंबेडकर एक महान विद्वान होने के साथ, एक वकील और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने सैकड़ों हजारों महार अछूत जाति के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित होकर भारत में बौद्ध धर्म का चेहरा बदल दिया। डॉ. अम्बेडकर का धर्मांतरण जातिगत असमानता के दमन का एक प्रतीकात्मक विरोध था।
  3. अंबेडकर ने बचपन से ही जातिगत भेदभाव का अनुभव किया। भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के बाद भीमराव के पिता महाराष्ट्र के सतारा में बस गए। भीमराव का दाखिला स्थानीय स्कूल में कराया गया। जहां उन्हें कक्षा में एक कोने में फर्श पर बैठना पड़ता था और शिक्षक उनकी कॉपी को भी नहीं छूते थे। तमाम कठिनाइयों के बावजूद भीमराव ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1908 में बम्बई विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की। 1913 में, भीमराव अंबेडकर ने अपने पिता को खो दिया। उसी वर्ष बड़ौदा के महाराजा ने भीमराव अंबेडकर को छात्रवृत्ति प्रदान की और उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा। अमेरिका से डॉ. अंबेडकर अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान का अध्ययन करने के लिए लंदन गए।
  4. सितंबर 1920 में, पर्याप्त धन जमा करने के बाद, अंबेडकर अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए वापस लंदन चले गए। वे बैरिस्टर बने और विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
  5. 1947 में जब भारत आज़ाद हो गया, तब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को, जो बंगाल से संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे, अपने मंत्रिमंडल में कानून मंत्री के रूप में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। संविधान सभा ने संविधान का मसौदा तैयार करने का काम एक समिति को सौंपा और डॉ. अंबेडकर को इस प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। फरवरी 1948 में, डॉ. अंबेडकर ने भारत के लोगों के सामने मसौदा संविधान प्रस्तुत किया; इसे 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया था।
  6. 1950 में, अंबेडकर ने बौद्ध विद्वानों और भिक्षुओं के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका की यात्रा की। अपनी वापसी के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म पर एक किताब लिखने का फैसला किया और जल्द ही खुद को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर लिया। अंबेडकर ने 1955 में भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की। उनकी पुस्तक "बुद्ध और उनका धम्म" मरणोपरांत प्रकाशित हुई थी।
  7. 24 मई, 1956 को बुद्ध जयंती के अवसर पर उन्होंने बम्बई में घोषणा की कि वे बौद्ध धर्म अपना लेंगे। 14 अक्टूबर, 1956 को उन्होंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को अपना लिया।
  8. उसी दिन, अंबेडकर ने अपने लगभग पांच लाख समर्थकों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित करने के लिए एक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया।
  9. अंबेडकर ने चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने के लिए काठमांडू की यात्रा की। उन्होंने 2 दिसंबर, 1956 को अपनी अंतिम पांडुलिपि, "द बुद्धा या कार्ल मार्क्स" को पूरा किया। डॉ. अंबेडकर ने खुद को भारत में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने "बुद्ध और उनका धम्म" शीर्षक से बौद्ध धर्म पर एक पुस्तक लिखी। उनकी एक और किताब है "रिवोल्यूशन एंड काउंटर रेवोल्यूशन इन इंडिया"।