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गणपति के हर अंग में छिपा है खुद को निखारने का अनूठा रहस्य

भगवान गणेश के हर अंग में कौशल और व्यक्तित्व निखारने का रहस्य छिपा हुआ है। जो हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। आइए जानते हैं इन अंगों और उनके महत्व के बारे में।

By Priyanka SinghEdited By: Updated: Wed, 04 Sep 2019 01:27 PM (IST)
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गणपति के हर अंग में छिपा है खुद को निखारने का अनूठा रहस्य
प्रथम पूज्य गणपति बप्पा का व्यक्तित्व  ही नहीं उनका हर एक अंग भी हमें प्रेरक सीख देता है। गणपति की सीख हमें जीवन के पथ पर सफलता दिला सकती है। इनके अंग में कौशल और व्यक्तित्व निखारने का रहस्य छिपा हुआ है। आइए जानते हैं भगवान श्रीगणेश के अंगों का खास महत्व।

पारखी यानी छोटी आंख

गणपति की आंखें छोटी हैं। अंग विज्ञान के अनुसार छोटी आंखों वाला व्यक्ति चिंतनशील और गंभीर प्रवृत्ति के होते हैं। गणेशजी की छोटी आंखें हमें यह ज्ञान देती हैं कि हर चीज को सूक्ष्मता से परखकर ही निर्णय लेना चाहिए। ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी धोखा नहीं खा सकता।

सूंड़ से सक्रियता का संदेश

गणेशजी की हर पल हिलती-डुलती सूंड़ हमें निरंतर सक्रिय रहने का संदेश देती है। वह हमें यह सिखाती है कि जीवन में हमेशा सक्रिय रहना चाहिए। हमेशा सक्रिय रहने वाले व्यक्ति को कभी दुख और गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता है।

बड़ा पेट यानी बातें पचाना

गणेशजी को उनके बड़े पेट के कारण लंबोदर भी कहा जाता है। लंबोदर होने का कारण यह है कि वह हर अच्छी और खराब बात को पचा जाते हैं। किसी भी बात का निर्णय सूझबूझ के साथ लेते हैं। अंग विज्ञान के अनुसार बड़ा उदर खुशहाली का प्रतीक है। गणेशजी का बड़ा पेट यह ज्ञान देता है कि भोजन की तरह ही हमें बातों को भी पचाना सीखना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा कर लेता है, वह हमेशा खुशहाल रहता है।

बड़ा मस्तक नेतृत्व क्षमता का प्रतीक

गणेशजी का मस्तक काफी बड़ा है। अंग विज्ञान के अनुसार बड़े सिर वाले व्यक्ति नेतृत्व करने में बहुत योग्य होते हैं। इनकी बुद्धि कुशाग्र होती है। गणेशजी का बड़ा सिर यह भी ज्ञान देता है कि अपनी सोच को हमेशा बड़ा बनाए रखना चाहिए।

लंबे कान बुद्धि-विवेक के प्रतीक

गणेशजी के कान बड़े हैं। इसलिए इन्हें गजकर्ण व सूपकर्ण भी कहा जाता है। लंबे कान वाले व्यक्ति भाग्यशाली और दीर्घायु होते हैं। गणेशजी के लंबे कानों का एक रहस्य यह भी है कि वह सबकी सुनते हैं। बाद में अपनी बुद्धि और विवेक से निर्णय लेते हैं। यह खूबी हमें बड़े काम के दौरान हमेशा सतर्क रहने की शिक्षा देती है। गणेशजी के सूप जैसे कान से यह शिक्षा मिलती है कि जैसे सूप खराब चीजों को छांटकर अलग कर देता है, उसी प्रकार जो भी खराब बातें आपके कान तक पहुंचती हैं, उन्हें बाहर ही छोड़ दें। खराब बातों को अपने अंदर न आने दें।

एकदंत सदुपयोग का प्रतीक

कहते हैं कि बाल्यकाल में भगवान गणेश का परशुरामजी से युद्ध हुआ था। इस युद्ध में परशुराम ने अपने फरसे से भगवान गणेशजी का एक दांत तोड़ दिया था। इससे वह एकदंत कहलाने लगे। ऐसी भी कथा है कि बाद में गणेशजी ने अपने टूटे हुए दांत को लेखनी बना लिया और इससे पूरा महाभारत ग्रंथ लिख डाला। यह गणेशजी की बुद्धिमत्ता का परिचय है। गणेशजी अपने टूटे हुए दांत से यह सीख देते हैं कि चीजों का सदुपयोग किस प्रकार किया जाना चाहिए।