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11 अक्टूबर को उज्जैन में दिखेगी श्री महाकाल लोक की निराली भव्यता

11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर क्षेत्र में बनाए गए श्री महाकाल लोक का उद्घाटन करेंगे। यह नवनिर्माण सनातन संस्कृति के पुनरोदय के साथ ही स्थापत्य की भी मिसाल है। यहां स्थापित हर मूर्ति व भित्ति चित्र की अपनी कहानी है।

By Aarti TiwariEdited By: Updated: Sat, 08 Oct 2022 07:14 PM (IST)
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अदुभुत है महाकाल की छटा। चार चांद लगाएगा महाकाल लोक

 ईश्वर शर्मा 

जब यह सृष्टि नहीं थी, तब भी काल अर्थात समय था। जब इस सृष्टि का आरंभ हुआ, तब काल ने ही इसका महामस्तकाभिषेक किया। फिर काल ने ही इस सृष्टि को चलायमान रखने के लिए संहार का विधान भी रचा। उसी काल के अधिपति देवता हैं महाकाल...जो विराजे हैं इस पृथ्वी के मध्य अर्थात भारतवर्ष की गौरवशाली प्राचीन नगरी उज्जयिनी (मध्य प्रदेश स्थित उज्जैन) में। अनंत काल से इस सृष्टि के कण-कण में महाकाल का जो वैभव गूंज रहा है, उसकी प्रतिध्वनि अब उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर क्षेत्र में बनाए गए श्री महाकाल लोक में भी सुनाई देने वाली है। इस नवनिर्मित भव्य और विराट परिसर का लोकार्पण 11 अक्टूबर (कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया, विक्रम संवत 2079, शक संवत 1944 (शुभकृत् संवत्सर) आश्विन) को आदिदेव शिव के भक्त और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। 920 वर्गमीटर में फैला यह भव्य परिसर भगवान महाकाल, मां पार्वती, भगवान गणेश व प्रभु कार्तिकेय की प्रतिमाओं के माध्यम से वेद, पुराणों, शास्त्रों में वर्णित शिव के विभिन्न स्वरूपों का यशगान करेगा।

ललाट पर विजय तिलक

भारतवर्ष बीते कुछ वर्षों से अपनी प्राणशक्ति को पुन: प्रज्वलित और मुखरित कर रहा है। भारत की यह प्राण-शक्ति सनातन धर्म में निहित है और सनातन निहित है अपने प्रत्येक भक्त में, श्रद्धालु में, आस्था में, मंत्र में, शास्त्र में, लोक में, प्रत्येक मंदिर में तथा उनमें विराजित विग्रहों में। वर्तमान समय का संकेत पाकर सनातन मानो अपने टूटे हुए मन को जोड़ रहा है। तभी तो हिमालय पर्वत के केदार शृंग पर विराजित केदारनाथ धाम के नवनिर्मित विस्तार क्षेत्र के लोकार्पण तथा ब्रह्मांड के अधिपति, काशी में विराजित भगवान विश्वनाथ के मंदिर परिसर के नवनिर्माण के बाद अब महाकालेश्वर तीसरे ज्योतिर्लिंग हैं, जिनके वैभव-विस्तार का साक्षी वर्तमान कालखंड बनने जा रहा है। भारत के प्राचीन मंदिरों के विध्वंस और पुनर्निर्माण से भरे इतिहास में श्री महाकाल लोक का यह लोकार्पण सनातन धर्म के ललाट पर ऐसा विजय-तिलक है, जिसे काल अपने बही-खाता में दर्ज करेगा। यह विश्व की तमाम सभ्यताओं व संस्कृतियों के लिए नए भारत की उस प्रचंड होती धर्म-शक्ति का नया परिचय भी होगा, जो काल का संकेत पाकर इन दिनों पुन: प्रज्वलित होकर बलवती हो रही है। वर्तमान कालखंड में सनातन का यह पुनर्पाठ समय की पीठ पर लिखा जा रहा नया इतिहास बनेगा।

आदि, अनंत से वर्तमान तक

उज्जैन में भगवान महाकाल स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजित हैं। वे आदि हैं, अनंत हैं, इसलिए इस मंदिर के निर्माण का कालखंड पुस्तकों में वर्णित नहीं मिलता। महाभारत में महाकाल का उल्लेख है और महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की अर्थात महाकाल का उल्लेख 5,000 वर्ष से अधिक समय से है। स्कंदपुराण के अवंती खंड में भी अवंतिका (वर्तमान उज्जैन), महाकालेश्वर व महाकाल मंदिर के समीप स्थित महाकाल-वन क्षेत्र का उल्लेख है। मान्यता है कि उज्जयिनी घना वनक्षेत्र था। स्कंदपुराण के अवंती खंड में महाकाल-वन क्षेत्र में भगवान महाकाल के निवास की कथा वर्णित है। कथा कहती है कि प्रलयकाल में पूरा विश्व गहन अंधकार में डूब गया था। तब महाकाल ने ब्रह्मा जी से सृष्टि के निर्माण का आग्रह किया। ब्रह्मा जी ने तब महादेव से अवंतिका के महाकाल-वन क्षेत्र में निवास करने का निवेदन किया, जिसे देवाधिदेव शिव ने स्वीकार किया। महाकाल का वैभव वर्णन करते हुए शास्त्र कहते हैं- ‘कालचक्र प्रवर्तको महाकाल: प्रतापन:’, अर्थात कालचक्र के प्रवर्तक महाकालेश्वर अत्यंत प्रतापी हैं। महाकाल को अनंत चैतन्यस्वरूप माना गया है, अर्थात ये अंतरिक्ष, वायु, जल, अग्नि, सूर्य, चंद्र, पृथ्वी और मन, इन अष्टमूर्तियों में निहित हैं।

ध्वंस पर सृजन की विजय

महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए महाकाल मंदिर की प्रशंसा की है। अर्थात उस कालखंड (प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व) के भी पहले से महाकालेश्वर का मंदिर उज्जैन में अपने पूरे वैभव के साथ उपस्थित था। महाकाल मंदिर पर आक्रांताओं के हमले का पहला उल्लेख 1235 ईस्वी का है, जब इल्तुतमिश ने प्राचीन मंदिर पर आक्रमण कर इसे तोड़ दिया। इसके बाद अगले करीब 600 वर्ष तक उज्जयिनी में आक्रांताओं का शासन रहा। इस दौरान यहां लगभग 4,500 वर्ष में स्थापित सनातन धर्म व हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं को नष्ट कर दिया गया। किंतु अंधकार सदैव नहीं रहना था। वर्ष 1690 में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर, 1728 को इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। मराठे सदैव ही शिवभक्त रहे हैं, इसलिए उन्होंने उज्जयिनी का गौरव फिर लौटाना आरंभ किया। मराठों ने महाकालेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, जो कि मंदिर का वर्तमान स्वरूप है। उस निर्माण के बाद से मंदिर परिसर के आसपास श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए छिटपुट बदलाव होता रहा, किंतु करीब 300 वर्ष बाद अब श्री महाकाल लोक के रूप में महाकाल मंदिर क्षेत्र का नया विस्तार किया गया है।

लोक को दर्शन देंगे महादेव

श्रद्धालुओं के मन में यह प्रश्न उभर सकता है कि जब महाकालेश्वर मंदिर अपने संपूर्ण वैभव में उपस्थित है, तो फिर यह ‘महाकाल लोक’ क्या है? इसे ऐसे समझा जा सकता है कि महाकाल मंदिर में भगवान महाकाल अपने शिवलिंग स्वरूप में विराजित हैं, जबकि मंदिर के समीप बने नवनिर्मित श्री महाकाल लोक में भगवान शिव व उनके परिवार को प्रतिमाओं के स्वरूप में स्थापित गया है। यहां त्रिपुरासुर वध सहित उन तमाम कथाओं को प्रतिमाओं, म्यूरल (भित्ति चित्र) आदि से दर्शाया गया है, जो पुराणों में वर्णित हैं। इस लोक का निर्माण स्कंद पुराण में वर्णित सप्त सागरों में से एक रुद्रसागर के किनारे किया गया है। रुद्रसागर महाकाल मंदिर के ठीक पीछे स्थित है। यह नवनिर्मित परिसर धर्मालुजनों के लिए धर्म के वैभव, शोधार्थियों के लिए शोध और पर्यटकों के लिए रोमांच का स्थल बनेगा। यहां भारत के गांव, कस्बों से आने वाले लोक को वे कथाएं प्रत्यक्ष देखने को मिलेंगी, जिन्हें वे अब तक शिव पुराण, महाभारत सहित अन्य कथाओं में सुनते आए हैं। शहरी श्रद्धालुओं को इसके निर्माण की आधुनिक शैली, अत्याधुनिक रोशनी और साज-सज्जा तथा रंगरोगन चकित करेंगे। मूर्तियों से संबंधित बारकोड स्कैन करके श्रद्धालु इनसे संबंधित सभी जानकारियां तत्काल पा सकेंगे।

काल की गणना के अधिपति

भौगोलिक दृष्टि से उज्जयिनी कर्क रेखा पर स्थित है। मान्यता है कि लंका से सुमेरु पर्वत तक जो देशांतर रेखा है, वह अवंतिकानाथ महाकाल मंदिर के शिखर के ऊपर से जाती है। इसी कारण भारतीय पंचांग में उज्जयिनी को प्राचीनकाल से गणना का आधार माना जा रहा है। महाकाल को कालचक्र का प्रवर्तक भी माना जाता है, इसलिए उज्जैन सदियों से कालगणना का प्रमुख केंद्र रहा है। जब पश्चिमी सभ्यताएं समय की गणना सीखी भी नहीं थी, तब भारतवर्ष में उज्जयिनी के महान सम्राट विक्रमादित्य ने काल गणना के लिए विक्रम संवत् प्रचलित किया था। आधुनिक काल में भारत में जो चार वेधशालाएं स्थापित की गईं, उनमें से एक उज्जैन में इसीलिए स्थित है, क्योंकि यहां से ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर काल की सटीक गणना करना संभव है। नवनिर्मित श्री महाकाल लोक में भी श्रद्धालु काल की गणना का यह वैभव देख सकेंगे।

और वैभवशाली होगी उज्जयिनी

नवनिर्मित श्री महाकाल लोक 920 वर्गमीटर क्षेत्र में करीब 316 करोड़ रुपए की लागत से बना है। यह महाकाल क्षेत्र विस्तार का पहला चरण है। 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी प्रथम चरण के कार्यों का लोकार्पण करेंगे। दूसरे चरण में कुल 750 करोड़ के खर्च से इस क्षेत्र को और विस्तार दिया जाएगा। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी को महाकाल मंदिर के समीप स्थित रुद्रसागर से जोड़ने, शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर क्षेत्र का विस्तार, श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं का निर्माण आदि होगा।