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आसमान में ट्रैफिक से बढ़ रहा कार्बन उत्सर्जन का स्‍तर, आंकड़ों से झांकती असलियत

सन 2013 की एक रिपोर्ट की माने तो भारत मे हवाई सफर से सालाना करीब 1 मिलियन टन कार्बनडाइआक्साइड पैदा हो रही है। इंटरनेशनल एसोसिएशन आईएटीए ने खुलासा किया कि 2037 में यात्रियों की संख्या दोगुना होकर 8.2बिलियन हो सकती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 15 Jun 2022 06:07 PM (IST)
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अब विमान की बजाय ट्रेन में यात्रा करना पसंद करेंगे।
रेणु जैन। तकरीबन हर रोज ही शहरों में एयरपोर्ट बनने या नए रूट पर उड़ान शुरू होने की खबरें आ रही हैं। पर आसमान में बढ़ती ये सुविधाएं कार्बन उत्सर्जन का स्‍तर बढ़ा रही हैं। यह प्रदूषण पूरे पर्यावरण तथा हमारे ग्रह के लिए भी नुकसानदायक बन रहा है। हालांकि प्रदूषण के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई तरह के अभियान या मुहिम जारी हैं जो सफल भी हो रहे हैं, लोगों में जागरूकता भी आ रही है, लेकिन फिर भी हालात चिंताजनक होते जा रहे है।

आंकड़ों से झांकती असलियत: हाल ही की खबरों पर बात करें तो अंतरराष्ट्रीय उड्डयन संगठन (आई सी ए ओ) ने चेताया है कि 2050 तक एयरलाइन उत्सर्जन 300 से 700 फीसदी तक बढ़ सकता है।कारण भी साफ है कि पिछले कुछ वर्षों में कम लागत वाली एयर लाइनों की शुरुआत के साथ हवाई यात्रा काफी किफायत वाली भी हो गई है। नए नए पैकेजों से लोगों को आकर्षित भी किया जाता है । सभी के लिए सुलभ बनता जा रहा उड्डयन उद्योग बहुत फलफूल रहा है । पर चिंता की बात यह है कि विमानों में प्रयोग होने वाले ईंधन जो भारी मात्रा में कार्बन डाइआक्साइड छोड़ता है बस यही कार्बन डाइआक्साइड की उपस्थिति वातावरण की दुश्मन बनती जा रही है।तापमान में बढ़ोतरी ,पानी की कम आपूर्ति तथा जलवायु परिवर्तन जैसे हालात पैदा करने की वजह बन रही है।

यह भी सच है कि उडऩे तथा उतरने के दौरान भी हवाई जहाज चार गुना तक जहरीली गैसों का उत्सर्जन करते है और यदि रनवे पर जाम हो तो नीचे तथा ऊपर दोनों ही जगह हवाई जहाज चालू रहने से भी प्रदूषण तेजी से फैलता है क्योंकि इस दौरान विमान का इंजन चालू रहता है तथा उसका ईंधन जलता रहता है।बात यह भी चिंता की है कि एयरपोर्ट पर चलने वाली ज्यादातर गाडिय़ां भी डीजल चलित होती है जो भारी मात्रा में वातावरण प्रदूषित करती है। कोविड19 का प्रभाव कम होते ही दुनियाभर की एविएशन इंड्रस्टी तेजी से बढ़ रही है। 

कुछ गंभीरता भी है: वैश्विक मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म मैकिंगी एंड कम्पनी ने एक अनोखा सर्वे किया है जिसमें उन्होंने विभिन्न देशों के 5,500 लोगों की राय जाननी चाही । यात्री फ्लाइट के लिए जो प्रश्नावली भराई गई थी उसमें नो बातों का जिक्र था जिसमें कार्बन उत्सर्जन छठे नम्बर पर था । इसमें चौकाने वाले आए है। 54 फीसदी यात्री चाहते है कि हवाई सफर में कार्बन उत्सर्जन न हो। 40 फीसदी लोगो ने कहा कि वे ऐसी उड़ान जो कार्बन उत्सर्जन न हो उसके टिकिट के लिए 2 फीसदी अधिक खर्च करने को तैयार है। 30 फीसदी लोगो ने कहा पर्यावरण को बचाने के लिए वे अपनी हवाई यात्रा कम करेंगे । स्पेन में जहां 60 फीसदी यात्रियों ने कहा कि वे कार्बन न्यूट्रल उड़ानों के लिए अधिक रकम चुकाने को तैयार है, वहीं भारत में ऐसे यात्रियों की संख्या महज 9 फीसदी रही तथा जापान 2 फीसदी पर।

भारत की स्थिति दूसरे देश से बेहतर: जनसंख्या के लिहाज से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है लेकिन हवाई अड्डों की बात करे तो भारत अन्य देशों से बहुत पीछे है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की वेबसाइट के अनुसार भारत में 487 हवाई अड्डे है । इसमें अंतरराष्ट्रीय, सिविल,घरेलू सारे शामिल है। दुनिया की बात करे तो सबसे ज्यादा एयरपोर्ट कहां है ,तो वह देश अमेरिका है जहां 13,513 एयरपोर्ट है। ब्राजील दूसरे स्थान पर जहां 4 हजार से ऊपर तथा तीसरे स्थान पर भारत मेक्सिको है जहां 1700 से ऊपर एयरपोर्ट है

कई देशों में किए जा रहे उपाय: अब सवाल लाजिमी है कि एयरलाइन्स द्वारा उत्सर्जित कार्बनडाइआक्साइड को कैसे कम किया जाए कि क्या व्यक्ति हवाई यात्रा न करे ? बात 2020 की करें तो देहली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा जो देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट है। अकेले यही से रोज तकरीबन 700 यात्री ओर 500 कार्गो विमान का आवागमन होता है। इसके बाद दूसरे नम्बर पर मुम्बई का छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डा आता है। हालांकि कई देशों ने न ग्रीन फ्यूल या इलेक्ट्रिक विमानों की तकनीक पर काम शुरू कर दिया है । हवाई यात्राओं से होने वाले प्रदूषण पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुछ मानक भी तय किये है। बात करें स्वीडन की तो स्वीडिश एविएशन इंडस्ट्री ने 2030 तक फासिल फ्यूल मुक्त डोमेस्टिक उड़ानों का रोडमेप तैयार किया है। इसके लिए जेट फ्यूल को सस्टेनेबल फ्यूल, इलेक्ट्रिक या हाइड्रोजन जैसे विकल्प देखे गए है।

वहीं यूरोपियन यूनियन फ्यूल के लिए टैक्स छूट को बंद कर रही है। ब्रिटेन 2050 तक हाइब्रिड इलेक्ट्रिक डोमेस्टिक एयरक्राफ्ट सहित नई एयरक्राफ्ट टेक्नोलाजी के विकास की तरफ बढऩे को अग्रसर है। आस्ट्रेलिया के फोकस फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट की बजाय करियर एयरक्राफ्ट या ड्रोन और शहरी हवाई वाहनों पर अधिक है। अमेरिका ने 2020 में दुनिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रिक प्लेन का सफल उड़ान भरने में सफलता प्राप्त की। यही के यूनाइटेड एयरलाइन्स ने 2 दिसम्बर 2021 को एविएशन के इतिहास में पहली बार 100 फीसदी सस्टेनेबल फ्यूल का इस्तेमाल किया जो यात्रियों से भरा था । चीन ने 2015 में दुनिया का पहला इलेक्ट्रिक प्लेन बनाया था। छोटे से इस प्लेन का इस्तेमाल उस वक्त आपदा ओर बचाव कार्यों के लिए किया जाता था।

रिसर्चरों का कहना है कि 2020 में कोरोना वायरस की वजह से लगे लाक डाउन के चलते कार्बन उत्सर्जन में 2.4 अरब मीट्रिक टन की कमी आई थी। ज्यादातर लोग अपने घरों में ही थे। और उन्होंने इस दौरान कार या विमान से यात्राएं बहुत कम की । हालांकि लाक डाउन जलवायु परिवर्तन से निपटने का तरीका हो भी नही सकता ।यह राहत अस्थायी थी। जलवायु परिवर्तन का असर कम करने के लिए साधनों को रोकने के बजाय कम कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा की तरफ जाना ही एकमात्र उपाय है।

कुछ कंपनियां लुभावने आफर भी निकाल रही: बर्लिन की एक कंपनी बाई बर विरटशाफ्ट ने अपने कर्मचारियों के लिए एक ऐसी पालिसी निकाली थी कि यदि वे एक साल एक भी हवाई यात्रा नही करते तो उन्हें सालाना छुट्टियों में अच्छी खासी बढ़ोतरी मिलेगी। कई गिफ्ट भी। इसी तरह स्वीडन में एक आंदोलन शुरू हुआ जो अब पूरे यूरोप में प्रमुख आंदोलन बन गया। इस आंदोलन का नाम है फ्लाइंग शेम। यानी लोगो को विमानों की बजाय अन्य साधनों से यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित करना। ऐसे में चौकाने वाला एक तथ्य यह भी सामने आया कि इस आंदोलन में 37 फीसद लोगो ने खुलासा किया कि वे अब विमान की बजाय ट्रेन में यात्रा करना पसंद करेंगे।