Vada Pav History: दादर रेलवे स्टेशन से कैसे पूरे देश तक पहुंचा वड़ा पाव, दिलचस्प है इसके आविष्कार का किस्सा
भारत एक ऐसा देश है जहां का इतिहास काफी पुराना और दिलचस्प है। यहां सिर्फ लोगों और जगहों का ही नहीं बल्कि खानपान का भी अपना अलग इतिहास है। मुंबई में मशहूर वड़ा पाव ऐसा ही एक व्यंजन है जिसके आविष्कार की कहानी काफी दिसचस्प है।
By Harshita SaxenaEdited By: Updated: Thu, 01 Dec 2022 04:17 PM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Vada Pav History: देश की आर्थिक राजधानी के नाम से मशहूर मुंबई को सपनों का शहर भी कहा जाता है। फिल्मी सितारों से सजी मायानगरी को यूं तो कई कारणों से जाना जाता है। लेकिन यहां मिलने वाला वड़ा पाव देश ही नहीं विदेश में भी काफी मशहूर है। भागती-दौड़ती मुंबई में लोगों के पास खाने तक का समय नहीं है। ऐसे में यहां के लोगों के लिए वड़ा पाव एक ऐसा विकल्प है, जिसे वह जब चाहें, जहां चाहें खा सकते हैं। मुंबई की नहीं, महाराष्ट्र के कई शहरों में वड़ा पाव काफी चाव से खाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस देसी बर्गर की शुरुआत कब और कैसे हुई। अगर नहीं तो आज हम आपको बताएंगे वड़ा पाव के आविष्कार से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा।
कैसे हुई वड़ा पाव की शुरुआत
अपने खानपान के लिए मशहूर भारत में मिलने वाले खाने का इतिहास यूं तो कई साल पुराना है, लेकिन बात करें वड़ा पाव की, तो इसका इतिहास कुछ खास पुराना नहीं है। वड़ा पाव करीब 53 साल पुराना है। इसे बनाने का श्रेय मुंबई के एक बेहद आम परिवार से आने वाले शख्स को जाता है। साल 1966 में जब मुंबई में शिवसेना का विस्तार शुरू हुआ, तो अशोक वैद्य नामक व्यक्ति भी इसके कार्यकर्ता बन गए। उस दौरान बाल ठाकरे अपने सभी कार्यकर्ताओं से अपील की कि वह खाली न बैठें और कुछ न कुछ काम करें।
रेलवे स्टेशन पर शुरू किया वड़ा बेचना
इस अपील से प्रेरित होकर अशोक वैद्य ने दादर रेलवे स्टेशन के बाहर बटाटा वड़ा यानी आलू वड़ा बेचना शुरू किया। कई समय तक बटाटा वड़ा बेचकर अपनी जीविका चला रहे अशोक को अचानक एक दिन एक प्रयोग करने की सूझी। उनके इस विचार ने ही वड़ा पाव को जन्म दिया। इस प्रयोग को करने के लिए अशोक ने अपने पास की एक दुकान से कुछ पाव खरीदे और उन्हें चाकू की मदद से बीच काट दिया। इसके बाद उन्होंने पाव के दोनों हिस्सों पर लाल मिर्च-लहसुन की सूखी-तीखी चटनी और हरी मिर्च लगाई और बीच में वड़ा रखकर लोगों को खिलाना शुरू किया।एक प्रयोग से हुआ वड़ा पाव का आविष्कार
अशोक का यह प्रयोग लोगों को काफी पसंद आया और देखते ही देखते दादर रेलवे स्टेशन ने निकला वड़ा पाव पूरे राज्य और फिर पूरे देश में मशहूर हो गया। वड़ा पाव की लोकप्रियता को देखते हुए कुछ साल बाद कई अन्य लोगों ने भी इसे बेचना शुरू कर दिया। वहीं, साल 1998 में अशोक वैद्य के निधन के बाद उनके बेटे नरेंद्र ने उनकी इस विरासत को संभाला और वड़ा पाव को देश में हर व्यक्ति तक पहुंचाया। वड़ा पाव की लोकप्रियता को देखते हुए 90 के दशक में मशहूर ब्रांड मैक्डॉनल्ड्स ने अपने बर्गर से वड़ा पाव को टक्कर देने की कोशिश की, लेकिन उस समय मुंबई के लोगों ने बर्गर को सिरे से नकार दिया।