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मशहूर गायिका गौहर जान भारतीय उपमहाद्वीप में ग्रामोफोन पर गाना रिकार्ड करवाने वाली पहली भारतीय स्वर बनीं

गौहर जान का जन्म 26 जून 1873 में आजमगढ़ में हुआ। उनकी दादी रुक्मनी हिंदू थीं और दादा ब्रिटिश पिता अमेरिकन। पति से तलाक के बाद उनकी मां विक्टोरिया ने इस्लाम अपना लिया और बड़ी मलका जान के नाम से जानी जाने लगीं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 13 Jun 2022 04:50 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jun 2022 04:50 PM (IST)
अपने जमाने की मशहूर गायिका और नृत्यांगना गौहर जान की प्रसिद्धि और उनके जीवन के उतार-चढ़ाव को रेखांकित करता आलेख...

नई दिल्ली, डा. विक्रम संपत। गौहर जान का जीवन किसी परीकथा जैसा था, एक शोख चुलबुली गायिका जिसके ब्रिटिश युगीन भद्रलोक दीवाने थे। एक सामाजिक नेत्री जो शानदार पार्टियां दिया करती थी और बेशकीमती बग्धियों में कोलकाता की सड़कों पर घूमती थी। इस फैशन की देवी के चित्र आस्ट्रिया में बनी माचिस की डिब्बियों पर छपते थे। जिन गायिका गौहर जान ने भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पहले सन् 1902 में ग्रामोफोन के लिए गाने की रिकार्डिंग करवाई, उन्हें अब भारतीय संगीत ने लगभग भुला ही दिया है।

गौहर जान का जन्म 26 जून 1873 में आजमगढ़ में हुआ। उनकी दादी रुक्मनी हिंदू थीं और दादा ब्रिटिश, पिता अमेरिकन। पति से तलाक के बाद उनकी मां विक्टोरिया ने इस्लाम अपना लिया और बड़ी मलका जान के नाम से जानी जाने लगीं। उन्होंने अपनी छह बरस की बिटिया का नाम भी बदलकर गौहर जान रख दिया। दोनों संगीत और नृत्य के पेशे में रम गईं और भविष्य संवारने के लिए तत्कालीन राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) जा बसीं। उनकी ख्याति हुई और धनाढ्य जमींदारों, राज परिवारों और अंग्रेज अफसरों की पार्टियों में मुजरा हेतु बुलाई जाने लगीं।

संगीत रिकार्ड करने की तकनीक आई और गौहर जान की जिंदगी बदल गई। सन् 1902 में लंदन की ग्रामोफोन कंपनी ने अपने जर्मन एजेंट फे्रडेरिक विलियम गैसबर्ग को भारत की संगीत प्रतिभाओं को रिकार्ड करने के लिए भेजा। उसने गौहर जान का चुनाव किया और रिकार्डिंग के लिए मुंहमांगी फीस (तीन हजार प्रति रिकार्डिंग) देकर गाना रिकार्ड किया। इस प्रकार उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में गाना रिकार्ड करवाने वाली पहली गायिका होने का ऐतिहासिक गौरव प्राप्त किया। उसके बाद अपनी संगीत यात्रा में उन्होंने लगभग 15 भाषाओं में छह सौ रिकार्ड बनवाये। उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि 1911 में आयोजित हुए भव्य और ऐतिहासिक दिल्ली दरबार में ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम के सम्मुख गायन प्रस्तुत किया और इनाम पाया। उसके बाद रजवाड़ो और रियासतों में गौहर जान को बुलाने की जैसे होड़ लग गई।

महाराजा दतिया ने उन्हें उनके दल सहित आगमन के लिए पूरी ट्रेन बुक की थी। अपनी बेशुमार लोकप्रियता, समृद्धि और शानो शौकत के बावजूद उनकी निजी जिंदगी बहुत सुख से नहीं बीती। उनके जीवन में बहुत से पुरुष आए और गए, लेकिन उन्होंने प्यार पाया गुजराती मंच अभिनेता अमृत केशव नायक से जिनके लिए वह कलकत्ता में जमा-जमाया संगीत करियर छोड़कर बम्बई (अब मुंबई) चली गईं। अमृत स्वयं एक अच्छे गायक और गीतकार थे। दोनों ने मिलकर अनेक गानों की धुन बनाई। उस दौर का सबसे लोकप्रिय गीत था, 'आन बान जिया में लागी...', जिसे गौहर जान ने रिकार्ड के रूप में अमर कर दिया। उनका दांपत्य सुख अल्पजीवी रहा। जुलाई 1907 में अमृत को हृदयाघात हुआ और वह 30 वर्ष की आयु में ही चल बसे। दुर्भाग्य कुछ ऐसा रहा कि उसी वर्ष उनकी मां मल्लिका जान भी चल बसीं।

बस यहीं से गौहर जान का खराब समय शुरू हो गया। अपना दुख भुलाने को वह शराब के नशे में डूबती गईं। उनकी संपत्ति पर भी एक जालसाज की नजर लगी और मुकदमा हो गया। अपने संगीत करियर को फिर से पटरी पर लाने के लिए वह फिर कलकत्ता चली गईं। वहां उन्होंने अपने सेकेट्री सैयद गुलाल अब्बास सब्जवारी से विवाह कर लिया जो उनसे आयु में कई वर्ष छोटे थे। उनको अब्बास पर पूरी तरह विश्वास हो गया तो उसने भी धीरे-धीरे पूरी संपत्ति को धोखे से हड़प लिया।

अंततोगत्वा खाली हाथ होकर गौहर गहन विषाद और आत्मकरुणा में निमग्न निपट अकेली रह गईं। इसका प्रभाव उनके गायन पर भी पड़ा और गाना रिकार्ड कराने के आमंत्रण कम होते गए। उनकी दुर्दशा का हाल सुनकर मैसूर के महाराजा ने उन्हें राज्य अतिथि तथा दरबारी गायिका के रूप में बुलाना चाहा, परंतु अपनी खराब सेहत, संपत्ति के मुकदमों और माली हालत के चलते वह नहीं जा पाईं। अंत में 17 जनवरी 1930 को जिजीविशा, गायन और नृत्य की इच्छा को तिलांजलि देकर वह हमेशा के लिए खामोश हो गईं।

(लेखक इतिहासकार और माई नेम इज गौहर जान पुस्तक के लेखक हैं।)


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