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El Nino: क्या है ‘अल नीनो’, जिसकी वजह से झेलनी पड़ रही है गर्मी की मार

देश के कई हिस्सों में भीषण गर्मी का प्रकोप जारी है। ऐसे में लोग बेसब्री से मानसून का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन तेज गर्मी को देखते हुए इस बार मानसून के प्रभावित होने की संभावन जताई जा रही है जिसके पीछे अल नीनो इफेक्ट मुख्य कारण हो सकता है।

By Harshita SaxenaEdited By: Harshita SaxenaUpdated: Sun, 18 Jun 2023 10:29 AM (IST)
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जानें क्या है El Nino, जो बिगाड़ सकता है भारत में मानसून

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। El Nino Effect: देशभर में इस समय बिपरजॉय तूफान की वजह से मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है। गुजरात से टकराने वाले इस तूफान की वजह से कई जगह लोगों को चिलचिलाती धूप और तेज गर्मी से राहत मिली है। लेकिन इससे पहले लगातार दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में गर्मी अपने चरम पर थी। चिलचिलाती धूप और तेज गर्मी ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा था। सामान्य से अधिक हो रही इस गर्मी के पीछे अल नीनो इफेक्ट मुख्य वजह है।

यह इफेक्ट सिर्फ तेज गर्मी की ही वजह नहीं बन रहा, बल्कि इसका सीधा असर मानसून पर भी देखने को मिल सकता है। भारत में मानसून के इतिहास को देखें तो जितने भी साल यहां अल नीनो इफेक्ट एक्टिव रहा है, इसकी वजह से मानसून प्रभावित हुआ है। ऐसे में इस साल भीषण गर्मी को देखते हुए एक बार फिर इसके मानसून पर असर डालने के कयास लगाए जा रहे हैं। तो चलिए जानते हैं आखिर क्या है अल नीनो इफेक्ट, जो भारत में मानसून को बिगाड़ सकता है।

क्या है अल नीनो इफेक्ट?

अल नीनो इफेक्ट मौसम संबंधी एक विशेष घटना क्या स्थिति है, जो मध्य और पूर्वी प्रशांत सागर में समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होने पर बनती है। आसान भाषा में समझे तो इस इफ़ेक्ट की वजह से तापमान काफी गर्म हो जाता है। इसकी वजह से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाला गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है, जिससे भारत के मौसम पर असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में भयानक गर्मी का सामना करना पड़ता है और सूखे के हालात बनने लगते हैं।

कितनी बार होता है अल नीनो?

अल नीनो हर दो से सात साल में होता है। इस साल का अल नीनो चार साल में पहला होगा। यह तीन साल लंबे ला नीना चरण का अनुसरण करता है, जो मार्च 2023 में समाप्त हुआ है। औसतन, अल नीनो इफेक्ट लगभग 9-12 महीने तक सक्रिय रहता है। हालांकि, कभी-कभी यह 18 महीने तक जारी रहता है। इस साल अल नीनो के कम से कम सर्दियों तक और 2024 के पहले तीन महीनों तक रहने की उम्मीद है।

अल नीनो कब घोषित किया जाता है?

एनओएए एक अल नीनो फेज के विकास की घोषणा तब करता है, जब भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के एक निश्चित क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान कम से कम एक महीने के लिए औसत से कम से कम 0.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच जाता है। साथ ही इस दौरान वातावरण में परिवर्तन भी होता है।

अल नीनो कैसे होता है?

अल नीनो वातावरण और महासागर के बीच एक कॉम्प्लेक्स इंटरेक्शन के कारण होता है। इस इफेक्ट के प्राइमरी ड्राइवर भूमध्य रेखा के पास स्थिर पूर्वी हवाएं हैं, जो भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच सोलर सीट में अंतर के कारण होती हैं। आम तौर पर, ये हवाएं पश्चिमी प्रशांत महासागर में गर्म पानी को बनाए रखने में मदद करती हैं। लेकिन अल नीनो के दौरान, ट्रेड विंड्स कमजोर हो जाती हैं या दिशा उलट जाती है, जिससे मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागरों में गर्म पानी का निर्माण होता है। इस गर्म पानी के निर्माण की वजह से दुनिया भर के मौसम के मिजाज पर गहरा असर पड़ता है।

अल नीनो और भारत में मानसून का कनेक्‍शन

मौसम वैज्ञान‍िकों ने साल 2023 में भारत में सामान्य मानसून वर्षा की भविष्यवाणी की है। हालांकि, इसके साथ ही मानसून (जून से सितंबर) के दौरान अल नीनो के विकसित होने की संभावनाएं भी 90 प्रत‍िशत बनी हुई है। ऐसे में इस बार सामान्य से कम बारिश होने के कयास लगाए जाने लगे हैं।

अल नीनो के प्रभाव क्या हैं?

अल नीनो दुनिया भर के मौसम के पैटर्न पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। यह आमतौर पर ऑस्ट्रेलिया में सूखे, इंडोनेशिया और फिलीपींस में बाढ़ और अटलांटिक महासागर में तूफान की गतिविधि से जुड़ा है।

वहीं, भारत में अल नीनो इफेक्ट आमतौर पर दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य से अधिक शुष्क मौसम और पूरे देश में बढ़ी हुई गर्मी और सूखे के लिए जिम्मेदार होता है। मौसम पर इस तरह के प्रभावों से फसलों और पशुओं को नुकसान हो सकता है, भोजन की कमी हो सकती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं।

अल नीनो के लिए भारत कैसे तैयार हो सकता है?

अल नीनो के विकास पर नज़र रखने और शुरुआती कार्रवाई करने के लिए मौसम की स्थिति की बारीकी से निगरानी करना, सूखे, हीटवेव और अन्य मौसम की घटनाओं से निपटने के लिए आकस्मिक योजनाएं विकसित करना, कमी का सामना करने वाले क्षेत्रों में भोजन और पानी का वितरण करना, और संबंधित जोखिमों और तैयारियों पर जनता को शिक्षित करना- ये कुछ ऐसे तरीके हैं, जिनसे भारत अल नीनो के लिए तैयारी कर सकता है।