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आम पेरेंटिंग से बेहतर साबित हो रही Co-Parenting, एक्सपर्ट ने बताया तलाक के बाद बच्चे की अच्छी परवरिश का तरीका

आपने इन दिनों Co-Parenting शब्द काफी सुना होगा। अक्सर किसी सेलिब्रिटी के तलाक या अलग होने के बाद बच्चे की परवरिश के लिए इस तरीके को अपनाया जाता है। पिछले कुछ समय से यह आम लोगों के बीच भी चलन में आने लगा है। ऐसे में हमने एक्सपर्ट से जाना कि को-पेरेंटिंग (Co-Parenting vs Traditional Parenting) क्या है और इसका चलन क्यों बढ़ रहा है।

By Harshita Saxena Edited By: Harshita Saxena Updated: Tue, 17 Sep 2024 01:35 PM (IST)
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क्या है Co-Parenting और क्यों बढ़ रहा इसका चलन (Picture Credit- Freepik)

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। इन दिनों हमारे जीने का तरीका काफी बदलने लगा है। खानपान से लेकर रहन-सहन तक मौजूदा समय में सबकुछ बदल चुका है। बदलती लाइफस्टाइल का असर अब हमारे रिश्तों पर भी पड़ने लगा है। खासकर पेरेंटिंग (Parenting Tips) का तरीका इन दिनों काफी बदल चुका है। पहले की स्ट्रिक्ट पेरेंटिंग के विपरीत अब लोग बच्चों के साथ नर्मी और प्यार से पेश आने लगे हैं। यही वजह है कि आजकल पेरेंटिंग के कई तरीके तेजी से सामने आ रहे हैं। को-पेरेंटिंग इन्हीं में से एक है, जो इन दिनों काफी चलन में है।

आपने पिछले कुछ समय से यह शब्द काफी सुना होगा। खासकर फिल्मी सितारों के लिए इस शब्द का इस्तेमाल काफी ज्यादा किया जाता है। आपने अक्सर किसी का तलाक होने के साथ इस शब्द को सबसे ज्यादा सुना होगा है। यह तलाक के बाद बच्चों की परवरिश (Effective Parenting Tips) करने का एक मॉर्डन तरीका है। इसके बारे में ज्यादा विस्तार से जानने के लिए हमने सीनियर साइकोलॉजिस्ट, मोनिका शर्मा से बातचीत की। आइए जानते हैं को-पेरेंटिंग से जुड़ी सभी जरूरी बातें-

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क्या है को-पेरेंटिंग?

को-पेरेंटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें अलग हो चुके या तलाकशुदा कपल्स अपने बच्चों का पालन-पोषण मिलकर एक साथ करते हैं। भले ही वे एक कपल के रूप में अलग हो गए हों, लेकिन को-पेरेंटिंग परवरिश का बेहतर साबित होता है। परवरिश की इस प्रक्रिया को जारी रखने के लिए माता-पिता के बीच सहयोग, बातचीत और संपर्क पर जोर रहता है, जबकि आम पेटेंटिंग (Co-Parenting vs Traditional Parenting) में अलग होने के बाद माता-पिता के बीच संपर्क बहुत कम या न के बराबर होता है।

क्यों बढ़ रहा है को-पेरेंटिंग का चलन?

बदलते समय के साथ ही आधुनिक जीवन की चुनौतियों का असर लोगों के रिश्तों पर पड़ने लगा है। दुनियाभर में पारिवारिक जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। रोजमर्रा के करियर चैलेंज, धैर्य की कमी, बढ़ता तनाव, परिवार के लिए कम समय और कई अन्य कारण रिश्तों में अलगाव और तलाक में बढ़ोतरी का कारण बन रहे हैं।

रिश्तों में बढ़ते मनमुटाव और दूरियों की वजह से बच्चों पर इसके प्रभाव के बारे में सोचना स्वाभाविक है। यह देखा गया है कि सिंगल माता-पिता के बच्चे को इमोशनल सपोर्ट की कमी, एंग्जायटी, आत्मविश्वास की कमी, बुरी आदतों जैसे कई मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है, तो वहीं दूसरी ओर को-पेरेंटिंग इन मुद्दों को काफी हद तक हल करता है। इसलिए दुनियाभर में इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है।

अच्छी कोट-पेरेंटिंग के लिए एक्सपर्ट ने बताए टिप्स-

  • बच्चों की जरूरतों को पहले रखें: भले ही आपके बीच कितनी भी परेशानियां चल रही हों, अपने बच्चे की जरूरतों को सबसे पहले रखें। खासकर तब जब बात आपके पास्ट की हो उसका असर बच्चे पर न पड़ने दें। ऐसे में अपने अतीत में हुई चीजों को संभालने के लिए थेरेपिस्ट या एक्सपर्ट की मदद ले सकते हैं।
  • बातचीत बनाए रखें: को-पेरेंटिंग के मामले में यह सबसे प्रमुख बात है, जिसका ध्यान रखना जरूरी है। कई मामलों में अलग के हालात इतने खराब होते हैं कि माता-पिता आपस में बात तक करना नहीं चाहते। ऐसे में अगर आप आमने-सामने बात नहीं कर पा रहे हैं, तो सोशल मीडिया के जरिए बातचीत कर सकते हैं। बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए ओपन कम्युनिकेशन बेहद जरूरी है, क्योंकि बातचीत बंद करने से केवल बच्चों को नुकसान होता है और उन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • फिक्स शेड्यूल फॉलो करें: एक बार जब आपका पेरेंटिंग शेड्यूल फिक्स हो जाए, तो इसमें बार-बार बदलाव न करें। बार-बार शेड्यूल बदलने से बच्चे का आप पर भरोसा कम हो सकता है। जब शेड्यूल बदलना बहुत ज्यादा जरूरी हो, तो अपने को-पेरेंट के साथ बातचीत कर हल निकालने की कोशिश करें।
  • अपने को-पेरेंट के लिए बुरा न कहें: अपने बच्चे के सामने माता या पिता के बारे में बुरा या नकारात्मक बातें न कहें। बच्चे के सामने बोलने की बजाय आप अपनी फीलिंग्स अपने करीबी दोस्तों या थेरेपिस्ट के सामने जाहिर कर सकते हैं। माता-पिता में से किसी एक की बुराई दूसरे के मुंह से सुनना आपके बच्चे के लिए हानिकारक है। साथ ही कोशिश करें आप बच्चे के सामने एक-दूसरे की अच्छी बातों को उजागर करें। आपके बीच का यह बॉन्ड देख बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं।
  • सामने वाले की भावना को समझे: अलग होने के बाद शुरुआती दिनों में, एक-दूसरे की भावनाओं को समझना मुश्किल होता है। ऐसे में अपने बच्चे की भावना को समझने की कोशिश करें। इससे पहले कि आप जल्दबाजी करें या एक-दूसरे के लिए बुरी बातें कहें, इस बात पर जोर देकर सोचें कि आपके बच्चे इन चीजों को कैसे समझेंगे। 

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