घर में आए दिन होने वाले लड़ाई-झगड़े बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को कर सकते हैं कुछ इस तरह से प्रभावित
घर में रोजाना होने वाले झगड़े रिलेशनशिप के लिए तो खराब है ही साथ ही इससे फैमिली खासतौर से बच्चे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। माता-पिता के बीच की तकरार का सबसे ज्यादा असर उनकी मानसिक सेहत पर पड़ता है। वो स्ट्रेस डिप्रेशन एंग्जाइटी का शिकार हो सकते हैं। इतना ही नहीं बचपन में ही उन्हें धूम्रपान की आदत भी लग सकती है।
By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghUpdated: Mon, 27 Nov 2023 01:15 PM (IST)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। थोड़ी-बहुत नोकझोंक को एक हेल्दी रिलेशनशिप मेनटेन करने के लिए जरूरी माना जाता है, लेकिन जब ये झगड़े आए दिन होने लगे, तो इस रिलेशनशिप से न सिर्फ आप बल्कि आपके घर-परिवार वाले और खासतौर से बच्चों पर इसका बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। जिसे वो जिंदगी भर झेलते हैं। आपके बीच की तकरार उनके पर्सनल और सोशल सोशल लाइफ को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित कर सकती है। इसलिए जितना हो सके, बच्चों के सामने लड़ाई-झगड़े, अपशब्द बोलने, एक-दूसरे को अपमानित करने जैसी हरकतों से बचें, वरना आगे चलकर बच्चा भी ऐसा ही करेगा। आइए जानते हैं रोजाना घर में होने वाले लड़ाई- झगड़ों का किस तरह से प्रभाव बच्चों पर पड़ता है।
बिहेवियर प्रॉब्लम्स
लड़ाई-झगड़ों के दौरान हिंसक होना, एक-दूसरे को दोष देना, झूठ बोलना, अपशब्दों का प्रयोग जैसी चीज़ें लोग करते ही हैं, तो न चाहते हुए भी बच्चा ये सारी चीज़ें सीख जाता है। उसे मारने-पीटने, गालियां देने में कोई बुराई नजर नहीं आती। बचपन में अपने उम्र के लोगों के साथ तो वो ऐसा करते हैं और बड़ा होने के बाद अपने पार्टनर के साथ। इस तरह के बिहेवियर के लिए पूरी तरह से मां-बाप ही जिम्मेदार होते हैं।
मानसिक समस्याएं
स्टडीज़ से पता चलता है कि जिन घरों में पेरेंट्स अक्सर ही लड़ते-झगड़ते हैं, उन बच्चों में अटेंशन-डेफिसिट / हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD), ईटिंग डिसऑर्डर, डिप्रेशन, मूड स्विंग्स, पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) जैसी समस्याएं होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। एक बच्चे का दिमाग पर घर में रोजाना रहने वाले ऐसे माहौल का बहुत गहरा असर पड़ता है। इतना ही नहीं वो बचपन में डिप्रेशन का भी शिकार हो सकता है। कई बच्चे को तो एंग्जाइटी अटैक भी आते हैं।
ईटिंग डिसऑर्डर
घर में आए दिन होने वाले झगड़ों से बच्चे ईटिंग डिसऑर्डर का भी शिकार हो सकते हैं। जिसमें या तो उन्हें भूख ही नहीं लगती, खाने का दिल नहीं करता या फिर उनका खाने-पीने पर कोई कंट्रोल ही नहीं रहता। वैसे ज्यादा चांसेज भूख न लगने के होते हैं। बच्चों में खाने का ये डिसऑर्डर वैसे काफी आम है, लेकिन दोनों ही डिसऑर्डर बच्चे के लिए खतरनाक हैं। कम खाने से शरीर में न्यूट्रिशन की कमी, तो वहीं ज्यादा खाने से मोटापे की प्रॉब्लम हो सकती है। जो और कई सेहत संबंधी परेशानियों की वजह बन सकते हैं।धूम्रपान का सेवन
घर में कलेश का माहौल बच्चों को धूम्रपान की ओर भी धकेल सकता है। बच्चों को लगता है कि उनके अंदर पनप रहे गुस्से, दर्द को ये सारी चीज़ें शांत कर सकती हैं। बचपन से ही इन चीज़ों की लत लग जाती है जो उनकी पूरी जिंदगी को खराब कर सकती है। शरीर के साथ ही दिमाग पर भी इसका बुरा असर पड़ता है।