बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए 90s के दौर की ये Parenting Tips हैं काफी असरदार
90s का दशक सोशल और कल्चरल बदलाव का एक अनोखा दौर था जिसने पेरेंटिंग के लिए गहरे सबक दिए। इस समय में अनुशासन सादगी बड़ों का सम्मान और संयुक्त परिवार की महत्ता बच्चों में रची-बसी थी। आज के समय में भी हम उस समय की पेरेंटिंग स्टाइल से कुछ टिप्स (Parenting Tips) सीख सकते हैं। आइए जानें आप 90s के दशक से क्या पेरेंटिंग टिप्स सीख सकते हैं।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Parenting Tips: आज के समय और 90s के दौर में काफी अंतर आ चुका है। लोगों का रहन-सहन बदल चुका है, सोच में बदलाव आ गया है और यहां तक कि पेरेंटिग स्टाइल में भी काफी अंतर आ चुका है। हालांकि, आज का दौर सुधार का दौर माना जाता है, लेकिन कुछ मामलों में हम 90s के समय के लोगों से काफी कुछ सीख सकते हैं। इनमें पेरेंटिंग भी शामिल है। उस दौर में बच्चों को कई ऐसी बातें सिखाई जाती थीं, जो उन्हें जिंदगी में आगे बढ़ने में मदद करते थे। उन बातों में से कुछ बातें हम आज की पेरेंटिंग स्टाइल में भी अपना सकते हैं। आइए जानते हैं 90s के दशक से हम क्या पेरेंटिंग टिप्स सीख सकते हैं।
90s से सीखने वाली पेरेंटिंग टिप्स
- पारिवारिक समय का महत्व- 90s के दशक में परिवार के लोग एक साथ समय बिताते थे। इससे बच्चों में भावनात्मक सुरक्षा और एकता की भावना आती थी। आज के समय में भी बच्चों के साथ बिताने के लिए समय निकालना जरूरी है।
- घर का बना खाना- बच्चों को घर का बना खाना खिलाना न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता था, बल्कि यह भोजन के मूल्य को भी बढ़ाता है। इसलिए बचपन से ही उनमें घर का खाना खाने की आदत डालें।
- खेल-कूद- वीडियो गेम की जगह बच्चे शारीरिक खेल जैसे- कबड्डी, गिल्ली-डंडा खेलते थे, जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता और वे टीमवर्क सीखते हैं। आप भी बच्चों को इन खेलों का महत्व सिखाएं। इससे वे फिट भी रहेंगे और उनमें टीम स्पीरिट जैसे गुण भी आएंगे।
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- संयुक्त परिवार का अनुभव- बच्चों को दादी-नानी के साथ समय बिताने से जीवन की अहमियत और रिश्तों का सम्मान करना आता था। आप भी बच्चों को बुजुर्गों से बात करने की तमीज और उनकी अहमियत के बारे में सिखाएं।
- पैसों का मूल्य सिखाना- सीमित संसाधनों में बच्चों को खर्च की सीमा समझाई जाती थी, जिससे वे पैसे का मूल्य समझ पाते थे। आप भी बच्चों में बचपन से ही पैसे बचाने और सही से खर्च करने की आदत डालें।
- संस्कार और अनुशासन- उस दौर में बड़ों का आदर और अनुशासन का पालन करना सिखाना प्रमुख था, जिससे बच्चों में आदर और जिम्मेदारी की भावना विकसित होती थी।
- धैर्य और सहनशीलता- बच्चों को हर छोटी परेशानी पर शिकायत न करने की आदत डालना सिखाया जाता था, जिससे वे सहनशील और समझदार बनते थे। इससे बच्चों में जीवन के उतार-चढ़ाव झेलने की ताकत आती है।
- प्रकृति से जुड़ाव- बच्चे घर के बाहर अधिक समय बिताते थे, जिससे वे प्रकृति से जुड़ाव महसूस करते थे। इससे बच्चों की मानसिक सेहत को काफी फायदा मिलता है।
- खेल और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा- बच्चों को खेल में हार-जीत का अनुभव कराया जाता था, जो उन्हें जीवन में चुनौतियों का सामना करना सिखाता था।
- कहानी-सुनने की आदत- दादी-नानी की कहानियों से बच्चों को नैतिक शिक्षा मिलती थी, जो उनके व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती थी। इससे उनकी सुनने की क्षमता विकसित होती है।
- सादगी और आत्मनिर्भरता- बच्चों को सादगी से रहना और खुद से छोटे काम करना सिखाया जाता था, जिससे वे आत्मनिर्भर बनते थे। आप भी बच्चों को खुद का काम करने की आदत सिखाएं। इससे वे घर के काम में हाथ बंटा पाएंगे और आत्मनिर्भर बनेंगे।