Parenting Tips: बच्चों का बचपन अंधेरे में डाल सकता है पेरेंट्स का चाइल्डहुड ट्रॉमा, इन लक्षणों से पहचान कर जल्द लाएं खुद में सुधार
बच्चों को एक सुखद जीवन देने के लिए पेरेंट्स कई तरीके अपनाते हैं। हालांकि पेरेंट्स कुछ आदतें बच्चों के मन पर बुरा असर डालती हैं। खासकर अगर माता या पिता में से कोई बचपन में किसी हादसे या अब्यूज का शिकार हुए हैं तो इसका असर उनकी पेरेंटिंग पर भी नजर आने लगता है। ऐसे में आप इन संकेतों में अपने अंदर चाइल्डहुड ट्रॉमा की पहचान कर सकते हैं।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बचपन में किसी प्रकार का हादसा या अब्यूज का शिकार होने पर इसका नकारात्मक असर जिंदगी भर साथ रह जाता है। यह जीवन के सबसे कड़वे अनुभवों में से एक होता है, जब किसी बच्चे को बचपन में किसी प्रकार के ट्रॉमा से गुजरना पड़ता है, लेकिन यही बच्चे जब बड़े हो कर माता-पिता बनते हैं, तब इनके लिए परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। चाइल्डहुड ट्रॉमा का असर इनके व्यवहार में नजर आने लगता है और अपने बच्चे के प्रति वह ऐसा व्यवहार रखते हैं, जिससे इनके बच्चे का बचपन भी प्रभावित हो सकता है।
चाइल्डहुड ट्रॉमा आपके अंदर ऐसी भावना पैदा करता है, जिससे आप खुद के अंदर कमी ही कमी देखते हैं। इसके लिए जरूरी है कि आप अपने ट्रिगर को पहचानें। उन सभी बातों पर गौर करें, जिनसे आपको अपना चाइल्डहुड ट्रॉमा याद आता है। ऐसे में चाइल्डहुड ट्रॉमा के कुछ संकेतों की अपने अंदर पहचान कर आप भी अलर्ट हो सकते हैं और अपनी पेरेंटिंग में जरूरी बदलाव ला सकते हैं, जिससे आप अपने बच्चों को किसी भी प्रकार के चाइल्डहुड ट्रॉमा से बचा कर उनके बचपन को सुंदर बना सकें-
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ऐसे में करें अपने अंदर चाइल्डहुड ट्रॉमा की पहचान
- अपने बच्चे से भावनात्मक रूप से कनेक्ट करने में आपको दिक्कत होती है।
- आप स्ट्रिक्ट, रिजीड या कंट्रोल करने वाली पेरेंटिंग करते हैं, जिसमें आप बच्चे के सुबह उठने से लेकर उसके रात के सोने तक उसके संपूर्ण जीवन पर अपना कंट्रोल बना कर रखते हैं और सब कुछ आपके कहे अनुसार ही होता है।
- आप परफेक्शन की तलाश में थोड़ी सी कमी पर भी अपसेट हो जाते हैं। बच्चे को प्रयास करने की मोटिवेशन देने की जगह आप उसे परफेक्शन न मिल पाने पर कोसते हैं।
- आप किसी के ऊपर भी पूर्ण विश्वास नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण आप अपने बच्चे पर भी आसानी से सवाल उठा देते हैं, जिससे बच्चा भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर होता है।
- आप बच्चे का हर क्षेत्र में अति बचाव करते हैं, जिसके कारण बच्चा अपने से निर्णय लेने में असक्षम होते जाता है और किसी भी नई चीज को ट्राई करने का रिस्क कभी नहीं उठा पाता।