थाली में ठोकर मारकर पति को खाना देती है नई नवेली दुल्हन, जानिए क्या है इस अजीब रस्म के पीछे का कारण
पैर से थाली खिसकाकर खाना देना (Serving Food With Feet)! सुनने में कितना अजीब लगता है ना? अगर ऐसा किसी के भी साथ हो तो गुस्सा आना तय है लेकिन अगर ये काम एक नई दुल्हन अपने पति के साथ करे और पति प्यार से खाना खा ले तो पक्का इसके पीछे एक खास वजह छिपी होगी। आइए विस्तार से जानते हैं इस रस्म (Tharu Tribe Customs) के बारे में।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में भोजन को हमेशा से सम्मान और प्यार के साथ परोसा जाता है। हमारे संस्कारों में किसी को खाना खिलाना बड़े पुण्य का काम माना गया है। भगवान को भी भोग लगाते समय नाना-प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर कोई आपको पैर से थाली खिसकाकर खाना दे तो आप कैसा महसूस करेंगे? अब आप सोचेंगे भला ये कैसा सवाल है? जाहिर तौर पर ऐसे में हर किसी को गुस्सा ही आएगा और इससे अपमानजनक भला और क्या ही कुछ होगा?
हालांकि, हैरानी की बात है कि भारत के कुछ हिस्सों में ऐसी ही एक परंपरा है। जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा है! दरअसल, नई दुल्हन अपने पति को पैर से थाली खिसकाकर खाना परोसती है और चिढ़ने या गुस्सा करने के बजाय पति भी इसे प्यार से स्वीकार करते हैं। आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि इस अजीबोगरीब रीति-रिवाज के पीछे क्या कारण हैं और यह परंपरा भला आई कहां से है।
थारू दुल्हन की पहली रसोई
थारू जनजाति में शादी एक खास मौका होता है। यहां जब एक नई दुल्हन अपने ससुराल आती है, तो उसे एक अनोखी रस्म निभानी होती है। इस रस्म में, दुल्हन अपने पति के लिए पहली बार खाना बनाती है, लेकिन यह खाना देना कोई साधारण काम नहीं होता। दरअसल, दुल्हन थाली में भोजन सजाकर उसे हाथ से नहीं, बल्कि अपने पैर से धीरे से खिसकाकर अपने पति के पास ले जाती है। यह पढ़कर आपको कितना भी अजीब लगे, लेकिन थारू समुदाय में इस परंपरा को बहुत महत्व दिया जाता है।
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पैरों से थाली देने की रस्म का महत्व
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल के थारू समुदाय में शादी के दौरान एक बेहद खास रस्म होती है। इस रस्म में दुल्हन अपने पति को पैर से एक थाली खिसकाकर खाना खिलाती है। दुल्हा भी इस रस्म को प्यार से निभाता है। जब दुल्हन थाली को उसके पैर से खिसकाती है, तो वह उसे पहले अपने सिर पर लगाता है। ऐसा करके वह दुल्हन का सम्मान करता है और इस रस्म के महत्व को दर्शाता है। इस रस्म को 'अपना-पराया' कहा जाता है। इसका मतलब है कि दुल्हन अब इस परिवार की अपनी तो हो गई है, लेकिन साथ ही वह अपने मायके से भी जुड़ी हुई है।
थारू समुदाय में विवाह एक खास रस्म 'चाला' के साथ पूरा होता है। 'चाला' का अर्थ है 'चलना' यानी दुल्हन के अपने नए घर जाने की शुरुआत। यह रस्म न केवल दुल्हन को उसके मायके से विदा करने का प्रतीक है बल्कि उसके नए जीवन की शुरुआत का भी संकेत देती है। यह रस्म थारू समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है। 'चाला' के दौरान, न केवल दुल्हन और दूल्हे के बीच बंधन मजबूत होता है बल्कि पूरा परिवार और समुदाय एक साथ आकर इस खास पल को मनाते हैं।