मॉडर्न पेरेंटिंग के फायदे (Modern Parenting Pros)
1) माता-पिता और बच्चे के बीच स्ट्रांग बॉन्ड
मॉडर्न पेरेंटिंग में माता-पिता अपने बच्चों के साथ दोस्त की तरह व्यवहार करते हैं। वे बच्चों की भावनाओं को समझते हैं और उनकी बात को ध्यान से सुनते हैं। इससे माता-पिता और बच्चे के बीच एक स्ट्रांग बॉन्ड बनता है। बच्चे खुलकर अपनी बातें शेयर करते हैं और किसी भी समस्या के बारे में बिना हिचकिचाए अपने माता-पिता से बात करते हैं।
2) बच्चों को अपनी बात रखने की आजादी
मॉडर्न पेरेंटिंग में बच्चों को अपनी बात रखने की पूरी आजादी होती है। वे अपने विचारों और भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर सकते हैं। इससे बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अपने फैसले खुद लेने में सक्षम होते हैं।
3) बच्चों को पर्सनल स्पेस मिलता है
मॉडर्न पेरेंटिंग में बच्चों को अपना पर्सनल स्पेस दिया जाता है। वे अपनी रुचियों और हॉबीज को विकसित करने के लिए फ्री होते हैं। इससे बच्चों में रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता बढ़ती है।
4) बच्चे समाज में बेहतर ढंग से ढलते हैं
मॉडर्न पेरेंटिंग में बच्चों को समाज के साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वे दूसरों के साथ मिलजुलकर रहना सीखते हैं और समाज में एक सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।
5) बच्चे स्ट्रेस फ्री रहते हैं
मॉडर्न पेरेंटिंग में बच्चों पर अत्यधिक दबाव नहीं डाला जाता है। उन्हें अपनी गलतियों से सीखने का मौका दिया जाता है। इससे बच्चे तनावमुक्त रहते हैं और एक खुशहाल जीवन जीते हैं।
मॉडर्न पेरेंटिंग के नुकसान (Modern Parenting Cons)
1) अनुशासन की कमी और गलत फैसले
मॉडर्न पेरेंटिंग में बच्चों को बेहिसाब स्वतंत्रता दी जाती है, जिसके कारण कई बार वे गलत फैसले ले लेते हैं। उन्हें सही और गलत में अंतर करना नहीं आता है, जिससे वे अनुशासनहीन हो जाते हैं।
2) माता-पिता से दूरी
मॉडर्न पेरेंटिंग में बच्चे अपने माता-पिता को दोस्त समझते हैं, लेकिन कई बार यह दोस्ती इतनी गहरी हो जाती है कि वे माता-पिता के प्रति सम्मान और इज्जत ही भूल जाते हैं। इससे माता-पिता और बच्चों के बीच दूरियां बढ़ सकती हैं।
3) जिम्मेदारियों से भागना
मॉडर्न पेरेंटिंग में बच्चों को उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त रखा जाता है, जिसके कारण वे अपनी जिम्मेदारियों को समझने में असमर्थ होते हैं। वे घर के कामों में मदद करने या अपने काम खुद करने से बचते हैं।
4) गुस्सा और जिद्द
मॉडर्न पेरेंटिंग में बच्चों की हर इच्छा पूरी करने की कोशिश की जाती है, जिसके कारण वे बहुत जल्दी गुस्सा करते हैं और जिद्दी हो जाते हैं। उन्हें अपनी बात मनवाने के लिए गलत तरीके अपनाने लगते हैं।
5) सोशल स्किल्स की कमी
आधुनिक परवरिश में बच्चे ज्यादातर समय तकनीक के साथ बिताते हैं, जिसके कारण उनके सामाजिक कौशल कमजोर हो जाते हैं। वे दूसरों के साथ कैसे बातचीत करें, यह नहीं जानते हैं।
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ट्रेडिशनल पेरेंटिंग के फायदे (Traditional Parenting Pros)
1) रिश्तों की कद्र
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में परिवार के रिश्तों को बहुत महत्व दिया जाता है। बच्चे अपने परिवार के सदस्यों के साथ गहरा जुड़ाव महसूस करते हैं और रिश्तों का महत्व समझते हैं। वे अपने बड़ों का आदर करते हैं और छोटों का ख्याल रखते हैं।
2) दूसरों को समझना
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में बच्चों के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले लेने से पहले पूरे परिवार से सलाह ली जाती है। इससे बच्चे दूसरों की राय का महत्व समझते हैं और समूह में काम करना सीखते हैं।
3) माता-पिता के प्रति सम्मान
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में बच्चों को अपने माता-पिता के प्रति गहरा सम्मान सिखाया जाता है। वे अपने माता-पिता की बात मानते हैं और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं।
4) अनुशासन
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में अनुशासन को बहुत महत्व दिया जाता है। बच्चों को समय का पाबंद होना, नियमों का पालन करना और अपनी जिम्मेदारियां निभाना सिखाया जाता है।
5) धैर्य और संयम
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में बच्चों को धैर्य और संयम रखना सिखाया जाता है। वे तुरंत संतुष्टि की बजाय दीर्घकालिक लक्ष्यों के लिए काम करना सीखते हैं।
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग के नुकसान (Traditional Parenting Cons)
1) माता-पिता और बच्चों के बीच भावनात्मक दूरी
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में माता-पिता और बच्चों के बीच अक्सर एक भावनात्मक दूरी होती है। बच्चे खुलकर अपने माता-पिता से अपनी भावनाएं साझा नहीं कर पाते हैं। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
2) स्वतंत्रता की कमी
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में बच्चों को बहुत कम स्वतंत्रता दी जाती है। सभी फैसले माता-पिता ही लेते हैं और बच्चों को उनकी आज्ञा का पालन करना होता है। इससे बच्चों में स्वतंत्र सोच और निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं हो पाता।
3) सीमित सोच
ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में बच्चों को एक सीमित वातावरण में रखा जाता है। उन्हें नए विचारों और अनुभवों के साथ संपर्क करने का मौका कम मिलता है। इससे उनकी सोच सीमित हो जाती है और वे रचनात्मक नहीं बन पाते हैं।
4) बदलते समय के साथ तालमेल बिठाने में मुश्किल
आज का समय बहुत तेजी से बदल रहा है। ट्रेडिशनल पेरेंटिंग में बच्चों को बदलते समय के साथ तालमेल बिठाने के लिए तैयार नहीं किया जाता है, जिसके कारण उन्हें भविष्य में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
5) प्रेशर और स्ट्रेस
पारंपरिक परवरिश में बच्चों पर बहुत अधिक अपेक्षाएं होती हैं। उन्हें हमेशा सफल होना होता है और परिवार की इज्जत बचाने के लिए उन्हें कई बार अपनी पसंद और नापसंद को दबाना पड़ता है। इससे बच्चों में तनाव और अवसाद हो सकता है।
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