Parenting Tips: जानें क्या है बेबी लेड वीनिंग और इससे आपके बच्चे को होने वाले फायदों के बारे में
जैसे ही बच्चे थोड़े बड़े होते हैं पेरेंट्स उन्हें खुद खाना खाने के लिए प्रेरित करते हैं। इसे बेबी लेड वीनिंग कहते हैं। हालांकि कई लोग ऐसा मानते हैं कि बच्चों को खुद से खाना खाने देने से वह चोकिंग का शिकार हो सकते हैं लेकिन यह सच नहीं है। खुद से खाने की आदत यानी बेबी लेड वीनिंग आपके बच्चों के लिए कई फायदेमंद हो सकती है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Parenting Tips: बच्चे जब खाना शुरू करते हैं, तो कुछ पेरेंट्स उन्हें खुद से खाना खाने के लिए प्रेरित करने की कोशिश करते हैं। इसे बेबी लेड वीनिंग कहते हैं। इससे बच्चे तरह-तरह के फूड खुद से ट्राई करते हैं और अपनी पसंद के अनुसार उसे खाते हैं या रिजेक्ट करते हैं। खाना रिजेक्ट करना भी एक चरण मात्र है। इससे इस निष्कर्ष पर नहीं आना चाहिए कि बच्चा अब उस चीज को कभी नहीं खाएगा।
बेबी लेड वीनिंग से बच्चे आत्मनिर्भर होते हैं, अधिक वैरायटी और टेक्सचर समझते हैं और खुद से खाना सीखते हैं, जिससे पेरेंट्स का काम भी आसान होता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल में जानेंगे बेबी लेड वीनिंग किन मायनों में फायदेमंद है-यह भी पढ़ें- शादीशुदा जिंदगी को हंसी-खुशी गुजारने के लिए जान लें ये '3 C' का फॉर्मूला
बेबी लेड वीनिंग के फायदे-
- एक रिसर्च के अनुसार किसी के मुंह में खाना डालने से चोकिंग का खतरा अधिक रहता है। वहीं, खुद से खाना खाने से चोकिंग का खतरा कम रहता है और बच्चा फ्री हो कर खाना खाता है।
- बेबी लेड वीनिंग में अधिकतर फिंगर फूड दिए जाते हैं, जिससे बच्चे में चबाने के सेंसेज सक्रिय होते हैं। वहीं, जब पेरेंट्स खाना खिलाते हैं तो अक्सर सेरेलैक, हलवा या मैश की हुई चीजें खिलाना उपयुक्त समझते हैं, जिससे बच्चे मात्र निगलना सीखते हैं।
- रिसर्च के अनुसार बच्चे को खुद से खाने देना उतना ही सुरक्षित है, जितना आपका उन्हें खिलाना है।
- बच्चों में चोकिंग के खिलाफ प्रोटेक्टिव रिफ्लेक्स होते हैं, जो खास 9 महीने के बाद और भी अधिक सक्रिय रहते हैं।
- खाने को छू कर उसके टेक्सचर को महसूस करके खाना एक बहुत ही बेहतरीन तरीका है खाना खाने का।
- छोटे बच्चों के लिए छोटे टुकड़ों की तुलना में बड़े टुकड़े अधिक सुरक्षित हैं। उसे वे चबा कर गला लेते हैं, और फिर निगलते हैं। वहीं, छोटे टुकड़ों को सीधा निगलने का खतरा बना रहता है।
- एक रिसर्च में ये भी पाया गया है कि 9 महीने पहले से ही जब बच्चे अपने से खाना शुरू कर देते हैं, तो ऐसे बच्चों में खाने की अधिक समझ हो जाती है। वे पिकी ईटर नहीं होते, जिसका मतलब है कि वे चुन चुन कर खाना नहीं खाते, बल्कि कई चीजें खाने के शौकीन होते हैं। ऐसे बच्चों को खाने की वैरायटी की परख जल्दी हो जाती है, जिससे इनमें चोकिंग की समस्या भी कम होती है।
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