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माता-पिता से दूर होते ही क्यों रोना शुरू कर देते हैं नन्हे-मुन्ने, एक्सपर्ट से समझें इसकी वजह

माता-पिता किसी काम से ओझल हुए नहीं कि बच्चे रोने या आवाज देने लगते हैं। दरअसल वे आपके कुछ देर के लिए अलग होने पर घबराकर सोचने लगते हैं कि अब आप कभी नहीं आएंगे। इस मनोवैज्ञानिक स्थिति से उबरना आब्जेक्ट परमानेंस कहलाता है। पैरेंटिंग काउंसलर डा. मीनाक्षी अग्रवाल से इसे समझें और जानें कि कैसे (Parenting Tips) शिशुओं में विकसित करें यह कौशल।

By Jagran News Edited By: Swati Sharma Updated: Mon, 25 Nov 2024 02:56 PM (IST)
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क्यों मां-बाप के दूर होते ही रोने लगते हैं बच्चे? (Picture Courtesy: Freepik)
नई दिल्ली। Parenting Tips: बच्चे हरदम माता-पिता को आस-पास देखना चाहते हैं। एकल परिवार में रह रही जिया की यह सबसे बड़ी परेशानी है कि वे रसोई में खाना बनाने से लेकर डस्टबिन बाहर रखने जाने जैसे कामों तक के लिए जब अपने साल भर के बेटे रोहन को कमरे में छोड़कर जाती हैं तो वह रोना शुरू कर देता है। वहीं जब सुबह रोहन अपने खिलौनों में व्यस्त होता है, तभी पापा बाहर स्टोर से सामान लेने जा पाते हैं।

असल में, बच्चों को लगता है कि अगर आप उनके सामने नहीं हैं तो अब आप उन्हें कभी नहीं मिलेंगे। वे धीरे-धीरे ही इस बात को समझ पाते हैं कि अगर कोई व्यक्ति सामने मौजूद नहीं है तो भी वह उनके पास आएगा। बच्चों के मानसिक विकास का यह एक सामान्य पहलू है, जिसे आब्जेक्ट परमानेंस या वस्तु स्थायित्व भी कहते हैं। यह वो क्षमता है जिसमें शिशु यह समझने लगते हैं कि वस्तुएं और लोग तब भी मौजूद हैं जब वह उनके सामने ना भी हों।

यह विकास महत्वपूर्ण है क्योंकि यह समाज और तर्कशीलता के अन्य प्रकारों की ओर पहला कदम है जैसे काल्पनिक खेल, स्मृति और भाषा का विकास। वस्तु स्थायित्व के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों के पास इंसान या वस्तुओं की मानसिक छवि हो।

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महसूस होती है सुरक्षा

आब्जेक्ट परमानेंस का विकास अचानक नहीं होता है। हर बच्चे का विकास अलग होता है, फिर भी इसमें कुछ मील के पत्थर हैं जिन्हें डेवलपमेंटल माइलस्टोंस कहा जाता है और पैरेंट्स को इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। दरअसल बच्चों का विकास चार चरणों में होता है। चार से आठ महीने तक बच्चे आंशिक रूप से छुपी हुई वस्तुओं तक पहुंचने की कोशिश करते हैं जिसमें स्मृति और जिज्ञासा के विकास की शुरुआती झलक मिलती है।

12 महीने और उससे अधिक उम्र में पहुंचने पर आब्जेक्ट परमानेंस पूरी तरह विकसित हो जाता है। बच्चे कारण और प्रभाव जैसे जटिल विचारों को समझने लगते हैं। आब्जेक्ट परमानेंस बच्चों को सुरक्षा और स्थिरता महसूस कराता है। शिशु यह समझने लगता है कि माता-पिता उनके सामने से जाने के बाद भी मौजूद हैं तो वह उनकी चिंता कम करता है।

यह समझ बच्चों को भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस कराती हैं क्योंकि उन्हें भरोसा होता है कि उनकी देखभाल करने वाला वापस आ जाएगा। जब बच्चा यह समझता है कि उसके माता-पिता और देखभाल करने वाले स्थायी हैं तो वह उनके साथ मजबूत भावनात्मक संबंध विकसित करता है।

तो लें विशेषज्ञ की मदद

अगर डेवलपमेंटल माइलस्टोंस या विकास के चरणों में कुछ विलंब है तो माता-पिता को जानना आवश्यक है। इसके कुछ सामान्य संकेत हैं- जैसे लुकाछुपी के खेलों में अरुचि होना, पसंदीदा खिलौना या व्यक्ति सामने न हो, तो काफी गंभीर प्रतिक्रिया देना।

आब्जेक्ट परमानेंस के विकास में देर होने पर बच्चों को सुरक्षित जुड़ाव बनाने में कठिनाई होती है, उनका भावनात्मक विकास धीरे होता है और उन्हें स्मृति व समस्या समाधान जैसे पहलुओं में चुनौती का सामना करना पड़ता है। यदि आपको 12 महीने की उम्र तक लगातार विलंब के संकेत दिखाई दें तो बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें।

आब्जेक्ट परमानेंस को समझना और प्रोत्साहित करना आपके बच्चे के विकासात्मक सफर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। संभावित विलंबों को जल्द पहचान कर और सहायक रणनीतियों को अपनाकर आप बच्चों को आवश्यक डेवलपमेंटल माइलस्टोन तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं!

ऐसे कर सकते हैं मदद

  • पीकाबू खेल खेलें, जो सिखाता है कि भले ही चेहरा छुपा हुआ है, लेकिन आप अभी भी वहीं मौजूद हैं।
  • खिलौने या उनकी पसंद की चीज को पारदर्शी डिब्बों में छुपा दें और बच्चे को उसे ढूंढने के लिए प्रेरित करें। इससे बच्चों को समझ आता है कि चीज कहीं छुपी हुई है और वास्तविकता में मौजूद भी है।
  • बच्चों के लिए ऐसी किताबों का इस्तेमाल करें, जिसमें फ्लैप या छुपी हुई चीज हो, यह बच्चों को अनदेखी वस्तु के बारे में जानने में मदद करती है।
  • बच्चों के आसपास उत्साहजनक वातावरण बनाए रखें। उसे ऐसे खिलौने दें, जो उसकी उम्र के अनुसार हों और जिज्ञासा को बढ़ावा दें।
  • बच्चों के साथ जबरदस्ती ना करें। घर में सुरक्षित माहौल बनाएं, जहां वह स्वतंत्र रूप से खेल सके।
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