Women Laws In India महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए इन कानूनों को जानना अति आवश्यक है। अगर आप अपने अधिकारों के बारे में जागरूक हैं तो ही आप घर कार्यस्थल या समाज में अपने साथ हुए किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ सकती हैं।
By Saloni UpadhyayEdited By: Saloni UpadhyayUpdated: Wed, 07 Jun 2023 10:45 AM (IST)
नई दिल्ली, सलोनी उपाध्याय। Women Laws In India: आज के दौर में महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। घर हो या कार्यस्थल महिलाएं आज पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाएं खड़ी हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां महिलाएं अपना योगदान न दे रही हों। घर हो या बाहर महिलाएं अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं, लेकिन ऐसी कई वजहें भी हैं, जिनकी वजह से उन्हें पुरुषों की तुलना ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारत की ही बात करें तो यहां हर मिनट एक महिला अपराध का शिकार होती है। फिर चाहे वो अपने घर पर हो, ऑफिस या फिर पब्लिक प्लेस पर, उनकी सुरक्षा पर हमेशा सवाल खड़ा होता है।
घरेलू हिंसा, लिंग भेद और महिला उत्पीड़न आदि जैसी सभी परेशानियों से उन्हें गुज़रना पड़ता है। ऐसे में जरूरी है कि महिलाएं अपने हित के कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी रखें, ताकि किसी भी तरह की प्रताड़ना को न सहना पड़े और उसके खिलाफ अपनी आवाज उठा सकें।इस लेख की मदद से हम आपको भारतीय कानून में शामिल महिलाओं के लिए कुछ अधिकारों के बारे में बताएंगे। महिलाओं के लिए बने कानूनों को बेहतर तरीके से समझने के लिए जागरण ने बात की सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक शेखर झा से।
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम
भारत सरकार ने 31 जनवरी 1992 को संसद के एक अधिनियम द्वारा, 1990 के राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम के तहत राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की स्थापना की। आयोग का प्राथमिक जनादेश महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और सुरक्षा करना है। कोई भी महिला अपनी परेशानी के तहत यहां शिकायत दर्ज करवा सकती है। साथ ही महिलाओं के किसी भी अधिकार का उल्लंघन हो रहा हो, तो भी नेशनल कमीशन फॉर विमेन से मदद ली जा सकती है। राष्ट्रीय महिला अधिनियम आयोग का उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार करना है और उनके आर्थिक सशक्तिकरण के लिए काम करना है।
महिला सुरक्षा कानून
दिसंबर 2016 में हुए निर्भया कांड को शायद ही कोई कभी भुला पाए। दिल्ली की नौजवान लड़की के साथ हुए इस दर्दनाक हादसे ने महिला सुरक्षा पर कई सवाल खड़े कर दिए थे। इसके अपराधियों को सजा सुनाने में सालों लग गए। इस घटना के बाद से देश में यौन शोषण से जुड़े कानून और भी सख्त किए गए, जिससे दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिल सके। इसके अलावा अपराधी की उम्र अगर 18 साल से कम होती थी, तो इसे माइनर केस मान लिया जाता था और इसे जुवेनाइल जस्टिस के अंतर्गत भेज दिया जाता था। यानी वह कड़ी सजा से बच जाता था। हालांकि, निर्भया केस के बाद इस कानून में बदलाव किए गए। अब अपराधी की उम्र 16 से 18 साल के बीच है, तो उसे भी सख्त सजा सुनाई जा सकती है।
शशांक शेखर झा ने यह भी बताया कि पहले अगर कोई व्यक्ति महिला का पीछा करता था, तो यह अपराध नहीं माना जाता था, लेकिन 2016 के बाद इसे भी कानूनी अपराध माना जाने लगा। इसके तहत महिला ऐसे व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है, जो उसका पीछा करता है।
पॉक्सो एक्ट कानून
पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट। शशांक शेखर झा ने बताया कि पॉक्सो एक्ट में बच्चों के लिए कानून बनाए गए हैं। यह कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। इस कानून को 2012 में लाया गया था। इसके तहत बच्चों के साथ होने वाला यौन शोषण एक अपराध है। यह कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961
इस के अनुसार, शादी के समय दुल्हा या दुल्हन या फिर उनके परिवार को दहेज देना दंजनीय अपराध है। भारत में दहेज लेने या देने की प्रथा सालों से चली आ रही है। दुल्हे का परिवार आमतौर पर दुल्हन और उसके परिवार से दहेज की मांग करता है। सालों से चली आ रही इस प्रथा की जड़ें अब काफी गहराई तक पहुंच गई हैं। बड़े शहरों को छोड़ दिया जाए, तो देश के ज्यादातर इलाकों में महिलाएं आज भी आर्थिक तौर से स्वतंत्र नहीं हैं। साथ ही तलाक को एक कलंक की तरह माना जाता है, जिसकी वजह से दुल्हनों को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती है। दहेज की मांग अगर शादी के बाद पूरी नहीं की जाती, तो लड़की को परेशान किया जाता है, उसे मारा जाता है और यहां तक कि जान भी ले ली जाती है। दहेज प्रथा आज भी प्रमुख चुनौतियों में से एक है, जिससे हमारा समाज जूझ रहा है। इस अधिनियम के बाद महिलाएं खुलकर शिकायत दर्ज करवाती हैं, जिससे दूसरी महिलाओं को भी जानकारी के साथ हिम्मत मिलती है।
भारतीय तलाक अधिनियम, 1969
भारतीय तलाक अधिनियम के तहत न सिर्फ महिला बल्कि पुरुष भी विवाह को खत्म कर सकते हैं। पारिवारिक न्यायालय ऐसे मामलों को दर्ज करने, सुनने और निपटाने के लिए स्थापित किए गए हैं।
मैटरनिटी लाभ अधिनियम, 1861
यह अधिनियम महिलाओं के रोजगार और कानून द्वारा अनिवार्य मातृत्व लाभ को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है। इस कानून के तहत हर कामकाजी महिला को छह महीने के लिए मैटरनिटी लीव मिलती है।
इस दौरान महिलाएं पूरी सैलरी पाने की हकदार होती हैं। यह कानून हर सरकारी और गैर सरकारी कंपनी पर लागू होता है। इसमें कहा गया है कि एक महिला कर्मचारी जिसने एक कंपनी में प्रेग्नेंसी से पहले 12 महीनों के दौरान कम से कम 80 दिनों तक काम किया है, वह मैटरनिटी बेनेफिट पाने की हकदार है। जिसमें मैटरनिटी लीव, नर्सिंग ब्रेक, चिकित्सा भत्ता आदि शामिल हैं। 1961 में जब इस कानून को लागू किया गया था, तो उस समय छुट्टी का समय सिर्फ तीन महीने का हुआ करता है, जिसे 2017 में बढ़ाकर 6 महीने किया गया।
कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ उत्पीड़न
अगर किसी महिला के साथ उसके ऑफिस में या किसी भी कार्यस्थल पर शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न किया जाता है, तो उत्पीड़न करने वाले आरोपी के खिलाफ महिला शिकायत दर्ज कर सकती है।यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत महिलाओं को कार्यस्थल पर होने वाली शारीरिक उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न से सुरक्षा मिलती है। इसके लिए पॉश कमेटी गठित की गई। यह कानून सितंबर 2012 में लोकसभा और 26 फरवरी, 2013 में राज्यसभा से पारित हुआ।
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
इस अधियनियम के तहत एक ही तरह के काम के लिए महिला और पुरुष दोनों को मेहनताना भी एक जैसा ही मिलना चाहिए। यानी यह पुरुषों और महिला श्रमिकों को समान पारिश्रमिक के भुगतान का प्रावधान करता है। यह अधिनियम 8 मार्च 1976 में पास हुआ था। आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, लेकिन इसके बावजूद कई जगह उन्हें समान तनख्वाह के लायक नहीं समझा जाता।
महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (रोकथाम) अधिनियम, 1986
यह अधिनियम विज्ञापन के माध्यम से या प्रकाशनों, लेखन, चित्रों, आकृतियों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अशोभनीय प्रतिनिधित्व पर रोक लगाता है।