छत्तीसगढ़ के बस्तर में 3,385 फीट की ऊंचाई पर स्थापित एक हजार वर्ष पुरानी विघ्नविनाशक की प्रतिमा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 384 किमी दूर दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ है। यहां से 16 किमी दूर फरसपाल गांव है। इस गांव से तीन किमी दूर जामगुड़ा बस्ती है। यहां पहाड़ के नीचे वाहन पार्किंग कर तीन किमी पैदल चढ़ाई कर ढोलकल शिखर तक पहुंचा जा सकता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 02 Sep 2022 06:27 PM (IST)
हेमंत कश्यप, जगदलपुर: प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की प्रतिमाएं हर जगह मिल जाती हैं, परंतु छत्तीसगढ़ के बस्तर में 3,385 फीट ऊंचे ढोलकल शिखर पर स्थापित विघ्नविनाशक की प्रतिमा मध्य भारत की एकमात्र गणेश प्रतिमा है, जो इतनी ऊंचाई पर विराजित है। महादेव का दूसरा घर के नाम से विख्यात मध्य प्रदेश के पचमढ़ी की ऊंचाई 3,550 फीट है किंतु वहां भोलेनाथ विराजमान हैं। दक्षिण बस्तर की 14 पहाडिय़ों में एक पहाड़ की आकृति भगवान शिव के वाहन नंदी की पीठ जैसी है इसलिए यह प्रक्षेत्र बैलाडीला कहलाता है। इन पहाडिय़ों में ढोलकल शिखर सैलानियों को रोमांच के साथ आस्था का पुण्य भी प्रदान करता है।
नृपतिभूषण द्वारा स्थापित, 1934 में हुआ सर्वेक्षण
इसका सर्वेक्षण तथा भूगर्भीय मानचित्र वर्ष 1934-35 में जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के डा. क्रुक्षांक ने तैयार किया था। उन्होंने 88 वर्ष पहले बता दिया था कि बैलाडीला की पहाडिय़ों में कई पुरानी मूर्तियां हैं। छिंदक नागवंशीय काली सिंधु नदी किनारे नरेश कश्यप गोत्र के बाशिंदे और शैव पंथी थे। वर्ष 1023 ईस्वी में जब नरेश नृपतिभूषण बारसूर आ रहे थे। तब उन्हें ढोलकल शिखर में बाल गणेश और परशुराम के मध्य युद्ध की कहानी ज्ञात हुई। चूंकि छिंदक नागवंशी शैव उपासक थे इसलिए उन्होंने शिखर पर गणेश प्रतिमा स्थापित कर उस पौराणिक घटना को चिर स्थायी करने का प्रयास किया था। यह गणेश मूर्ति दक्षिण भारतीय शैली में, ललितासन मुद्रा में काली चट्टान में उकेरी गई है। मूर्ति 36 इंच ऊंची तथा 19 इंच मोटी है।
पौराणिक मान्यता
दक्षिण बस्तर में यह कथा प्रचलित है कि बैलाडीला के नंदीराज शिखर पर महादेव ध्यान करते थे। एक दिन उन्होंने पुत्र विनायक से कहा कि वह ध्यान करने शिखर पर जा रहे हैं। कोई उनकी साधना में विघ्न न डाले। कुछ समय बाद भगवान परशुराम वहां पहुंचे और नंदीराज शिखर की तरफ जाने का प्रयास करते लगे। विनायक ने उन्हें रोका। इससे परशुराम जी क्रुद्ध हो गए और फरसे से विनायक पर वार कर दिया। यह फरसा विनायक का एक दांत काटते हुए पहाड़ के नीचे जा गिरा, इसलिए विनायक एकदंत कहलाए और पहाड़ के नीचे की बस्ती का नाम फरसपाल पड़ा।
नंदीराज का सुखद दर्शन
जैसे ही आप ढोलकर शिखर पर पहुंचेंगे, आपको दूर-दूर तक हरियाली से ढकी पहाडिय़ां नजर आएंगी। ढोलकल शिखर के बाईं तरफ की चट्टान पर कभी सूर्य मंदिर हुआ करता था, परंतु यहां के सूर्यदेव की मूर्ति 25 वर्ष से गायब है। इस चट्टान के ठीक पीछे नंदी जैसी आकृति वाला दूसरा शिखर है। जिसे नंदीराज कहते हैं। बैलाडीला क्षेत्रवासी इसे नंदराज कह पूजते हैं। नंदराज शिखर तक पहुंचना मुश्किल है, इसलिए इनकी आराधना करने वाले अधिकांश लोग सूर्य मंदिर की चट्टान पर खड़े होकर ही नंदराज का आह्वान करते हैं।