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देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है अम्बाजी मंदिर, जहां नहीं है मां की कोई मूरत

प्राचीन संस्कृतियों एवं ऋषियों की तपोभूमि है माउंट आबू। खूबसूरत हिल स्टेशन होने के साथ यह हिंदुओं और जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल भी है।

By Priyanka SinghEdited By: Updated: Thu, 06 Jun 2019 10:12 AM (IST)
देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है अम्बाजी मंदिर, जहां नहीं है मां की कोई मूरत
माउंट आबू से 45 किमी. की दूरी पर अंबा माता का प्राचीन शक्तिपीठ है। यह मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित है। इसमें भवानी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां पर एक श्रीयंत्र स्थापित है। उसे इस ढंग से सजाया जाता है कि देखने वालों को उसमें मां का विग्रह नजर आता है।

अंबा जी का मंदिर

इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1975 में शुरू हुआ था, जो अब तक जारी है। सफेद संगमरमर से बना यह भव्य मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इसका शिखर 103 फुट ऊंचा है और उस पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं। मंदिर से लगभग 3 किमी. की दूरी पर गब्बर नामक एक पहाड़ भी है, जहां देवी का एक और प्राचीन मंदिर स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि इसी पत्थर पर यहां मां के पदचिह्न एवं रथचिह्र बने हैं। अंबा जी के दर्शन के बाद, श्रद्धालु गब्बर पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में ज़रूर जाते हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा पर यहां मेले जैसा उत्सव होता है। नवरात्र के अवसर पर मंदिर में गरबा और भवाई जैसे पारंपरिक नृत्यों का आयोजन किया जाता है।

मंदिर में नहीं है मां की कोई मूरत

शक्तिस्वरूपा अम्बाजी देश के बहुत ही पुराने 51 शक्तिपीठों में से एक है। जहां मां सती का हृदय गिरा था। मंदिर तक पहुंचने के लिए 999 चीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। इस मंदिर में अम्बा की पूजा श्रीयंत्र की अराधना से होती है जिसे सीधे आंखों में देख पाना मुमकिन नहीं।  नवरात्रि में यहां नौ दिनों तक चलने वाला पर्व बहुत ही खास होता है। जिसमें गरबा करके खास तरह से पूजा-पाठ किया जाता है।  

अन्य दर्शनीय स्थल

माउंट आबू में ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का हेड क्वार्टर भी है। यहां दिलबाड़ा नामक स्थल में स्थित जैन मंदिर भी दर्शनीय है। यहां एक ही स्थान पर पांच मंदिर बनाए गए हैं। जैन समुदाय के इस मंदिर के कारण, माउंट आबू को विशेष प्रसिद्धि मिली है। इसे दिलबाड़ा जैन मंदिर कहा जाता है। यहां एक ही स्थान पर पांच मंदिर बनाए गए है, जिनमें बारीक नक्काशी व पच्चीकारी का ऐसा बारीक काम किया गया है, जिसे देखकर पर्यटक आश्चर्यचकित रह जाते हैं। अपनी वास्तुकला के लिए यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। माउंटआबू की सबसे ऊंची चोटी को गुरु शिखर कहा जाता है। यह राजस्थान का मशहूर हिल स्टेशन है। यहां गर्मियों में अक्सर लोग सैर-सपाटे के लिए आते हैं। नक्की झील, सनसेट पॉइंट, टॉडरॉक (मेढक की आकृति वाला चट्टान), अचलेश्वर महादेव मंदिर, गुरु वशिष्ठ जी का आश्रम आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। माउंट आबू अपने मनोहारी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है।

कैसे पहुंचें

यहां जाने के लिए पहले निकटतम एयरपोर्ट उदयपुर तक पहुंचें। वहां से यह दर्शनीय स्थल मात्र 117 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और वहां बस या टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां राजस्थान टूरिज़्म विभाग द्वारा संचालित कई आरामदेह होटल और धर्मशालाएं मौज़ूद हैं। असुविधा से बचने के लिए वहां जाने से पहले ही ऑनलाइन बुकिंग करवा लें। वैसे तो यहां पूरे साल सुहावना मौसम रहता है। फिर भी अगर आप यहां की सैर करना चाहते हैं तो जून से फरवरी तक समय अनुकूल माना जाता है। तो फिर देर किस बात की, इस गर्मी की छुट्टियों में सपरिवार निकल पड़ें माउंट आबू की सैर करने।

संध्या टंडन

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