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चाय की खुशबू में बसा खूबसूरत संसार है केरल का मुन्नार, जानें क्या है यहां खास

किसी कैनवास पर उतरी चित्रकारी की तरह है मुन्नार। मन को हर्षित कर देने वाली हरियाली, इधर-उधर बलखाती नदियां, नीलगिरि की घुमावदार पहाडिय़ां और घाटियां।

By Pratima JaiswalEdited By: Updated: Sun, 03 Jun 2018 06:00 AM (IST)
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चाय की खुशबू में बसा खूबसूरत संसार है केरल का मुन्नार, जानें क्या है यहां खास
देश में कश्मीर के अलावा और भी स्वर्ग मौजूद हैं, 'ईश्वर का अपना देश' माने जाने वाले केरल के इदुक्की जिले में स्थित मुन्नार को देखकर आप भी यही कहेंगे। प्रकृति प्रेमियों के साथ-साथ यह बाइकर्स और ट्रैकर्स के लिए भी स्वर्ग है। यदि आप रोमांचक खेलों के शौकीन हैं तो मुन्नार आपकी यात्रा को बना सकता है यादगार। संतोष मिश्रा के साथ चलते हैं मुन्नार के खास सफर पर...

किसी कैनवास पर उतरी चित्रकारी की तरह है मुन्नार। मन को हर्षित कर देने वाली हरियाली, इधर-उधर बलखाती नदियां, नीलगिरि की घुमावदार पहाडिय़ां और घाटियां। ऊंचाई से गिरते झरने और ठंडा मौसम। तकरीबन 1700 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस हिल स्टेशन की घुमावदार गोल-गोल पहाडि़यों पर एक ही ऊंचाई के चाय के पौधे ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे किसी सम्राट के स्वागत में पूरे इलाके में हरे मखमली कालीन बिछा दिये गये हों। ऊंचे पहाड़ों और बादलों से अटखेलियां करते हुए आती सूरज की किरणें हरी-भरी घाटियों के कुदरती रंगों को और भी मनमोहक बना देती हैं। यहां के जंगलों के पेड़ कई रंग लिए होते हैं। हरे, लाल, भूरे, कत्थई रंग के इन पेड़ों से बने दृश्यों के साथ आप खुद कल्पना कर सकते हैं प्रकृति के विशाल कैनवास पर ये दृश्य चित्रकारी के कैसे दिलकश नजारे पेश करते होंगे!

चाय के बागान यहां भी!

यदि आप सोच रहे हैं कि केरल केवल मसालों के लिए मशहूर है तो मुन्नार आएं, आपका यह भ्रम दूर हो जाएगा। आप जान सकेंगे कि असम, दार्जिलिंग के साथ-साथ मुन्नार में भी चाय के बगान हैं। इस जगह पर दसवीं शताब्दी से बसावट शुरू हुई। 19वीं शताब्दी आते-आते यहां छोटे-छोटे गांव बनने शुरू हो गए। चोलों के आक्रमण से बचते-बचाते मदुरै का पून्जार राज परिवार केरल के इस क्षेत्र में आ बसा था। त्रावणकोर के कमिश्नर के रूप में जॉन डेनिएल मुनरो ने सन् 1877 में राज परिवार से एक लाख तीस हजार एकड़ से अधिक भूभाग पट्टे पर खेती के लिये ले लिया और उस पर कॉफी के साथ मसालों की खेती प्रारंभ करा दी। ए.एच. शार्प ने सबसे पहले यहां चाय की खेती की नींव डाली। शुरुआत में ही मुनरो ने कानन देवन के नाम से एक कंपनी की स्थापना की थी। 1964 में टाटा फिनले ने मुनरो के बागानों का अधिग्रहण किया और इसी कंपनी का नाम बदल कर टाटा टी कर दिया गया। 2005 में कानन देवन हिल्स प्लांटेशन कंपनी फिर से अस्तित्व में आयी। आज भी उसी के तहत चाय का उत्पादन किया जा रहा है। मुन्नार की जलवायु भी चाय की फसल के अनुकूल है।

चाय-फैक्टरी और म्यूजियम

यहां टाटा और तलयार की 30 से अधिक फैक्टरी हैं, जिनमें आप टिकट लेकर चाय की खुशबू के बीच चाय बनते हुए देख सकते हैं। प्रोसेस्ड या सीटीसी आम चाय है, जिसे हम घरों या होटलों मे पीते हैं, इसमें पत्तों को तोड़कर मशीनों से कर्ल (मोड़)किया जाता है। फिर ड्रायर से सुखाकर इन्हें दानों का रूप दिया जाता है। यहां टाटा टी ने एक म्यूजियम भी बना रखा है, जहां चाय उगाने से लेकर उसे प्रोसेसकरने की पूरी प्रक्ति्रया देख सकते हैं। पुरानी तस्वीरों के साथ एक वीडियो के जरिए चाय के इतिहास की पूरी जानकारी मिलेगी। यहां चाय बनाने की 100 साल से भी पुरानी मशीनें, टाइपराइटर, कैलकुलेटर, फोन और घडि़यों आदि के साथ ब्रिटिश काल के फर्नीचर भी देखने को मिलेंगे। यहां एक आउटलेट भी है जहां से आप अपनी पसंद की चाय और मसाला उत्पाद खरीद सकते हैं।

रोमांच ही रोमांच

यहां कई तरह की एडवेंचरस एक्टिविटी की जा सकती हैं। इनमें अगर आप कैम्पिंग, ट्रैकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, रैपेलिंग, रोप क्लाइबिंग और हाइकिंग किसी भी तरह के रोमांचक खेलों का आनंद लेना चाहते हैं तो इसकी पूरी व्यवस्था है यहां। इनमें ट्री हाउस स्टे और माउंटेन बाइकिंग, बोटिंग, शिकारा राइड,वाटर स्पोर्ट्स ,गोल्फिंग, पैराग्लाइडिंग ,एलिफैंट सफारी सब शामिल हैं। अगर आपकी जेब अनुमति दे तो ये गतिविधियां फन फॉरेस्ट पार्क और ड्रीम लैंड जैसे विभिन्न प्राइवेट क्लबों द्वारा भी की जा सकती हैं। कम दिलवाले हैं तो हॉरिजेंटल लैडर, फ्री वॉक, टायर वॉक, स्पाइडर नेट जैसी एक्टिविटी आपके लिए है। हां, ट्रैकिंग के शौकीन हैं तो यहां एक से बढ़कर एक ट्रैकिंग स्पॉट मौजूद हैं। सड़क पर बादलों के बीच सैर करनी है तो लॉक हार्ट गैप पॉइंट जाइये। एक साइड में नीचे खाई है, जिसमें वादियों की अकल्पनीय खूबसूरती दिखती है। शाम के समय यहां आने पर या तो नीचे बादल मिलेंगे या फिर डूबते सूरज की सुनहरी किरणों में दिखता नीचे का मनमोहक दृश्य। इसीलिए इसका नाम 'लॉक हार्ट' है। यहां की ट्रेकिंग आपका दिल जोर-जोर से धड़कने पर मजबूर कर देगी।

 

मट्टुपेट्टी डैम और लेक में बोटिंग

मट्टुपेट्टी कंक्रीट ग्रेविटी बांध का उपयोग मुख्य रूप से जल भंडारण के लिए किया जाता है, जिससे पनबिजली परियोजनाएं संचालित होती हैं। इसका जलाशय खूबसूरत पिकनिक स्पॉट है जहां आप पहाड़ियों के बीच बोटिंग भी कर सकते हैं। यहां पास ही में ढ्ढठ्ठस्त्रश स्2द्बह्यह्य रुद्ब1द्गह्यह्लशष्द्म श्चह्मशद्भद्गष्ह्ल द्घड्डह्मद्व भी है जहां सैकड़ों उच्च गुणवत्ता वाले पशु पाले गए हैं। यहां नई प्रजाति के पशुओं को वैज्ञानिक रूप से विकसित भी किया जाता है। हालांकि अब यह पर्यटकों के लिये बंद हो गया है, पर यहां की गायें खुले मैदानों में चरते हुए दिखती हैं। यहां की सैर के बिना मुन्नार यात्रा अधूरी है।

हाइलाइटर

तीन नदियों का मिलन

मुन्नार शब्द दो तमिल शब्दों के योग से बना है- मून+आर। एक के अंक को तमिल में वन्न, दो को रंड, तीन को मून कहते हैं। मून यानी तीन और आर का अर्थ है नदी। इस तरह मुन्नार का अर्थ है-तीन नदी। ये तीन नदियां हैं-मुथिरापुझायर, नल्लठन्नी और कुंडाला। ये तीनों मुन्नार के बीचों बीच मिलती हैं।

अनामुदी शिखर

2695 मीटर ऊंची चोटी का बेस एरावीकुलम पार्क में ही है। यह 1600 किलोमीटर लंबे पश्चिमी घाट की सबसे ऊंची चोटी है। कहा जा सकता है कि हिमालय के अतिरिक्त शेष भारत की यह सबसे ऊंची चोटी है। इस पर ट्रेकिंग की जा सकती है, पर यहां से ऊपर जाने की इजाजत नहीं है। इसके लिये वाइल्डलाइफ वार्डन से परमिशन लेनी पड़ती है।

फोटो शूट पॉइंट

कितना अच्छा हो कि फोटो खिंचवाने के लिए आपको पहले से ही एक ऐसी जगह मिल जाए जहां से फोटो खूबसूरत आती हो? यदि आप ऐसी कल्पना कर रहे हैं तो मुन्नार आपकी इस मुराद को भी पूरी कर सकता है। यहां फोटो शूट प्वाइंट भी बना है, जहां चाय बागानों की पृष्ठभूमि में पर्यटक तस्वीरें खिंचवाते हैं। यह अपने बैकग्राउंड के कारण बेहद खूबसूरत होती हैं।

विश्व धरोहर इरावीकुलम नेशनल पार्क

इरावीकुलम नेशनल पार्क मुन्नार से 8 किमी. की दूरी पर है। आप व‌र्ल्ड हेरिटेज स्थलों में शामिल 97 वर्ग किमी. में फैले इस पार्क की सैर यहां मौजूद 30 सीटर बसों से कर सकते हैं। इसका टिकट 90 रुपये का होता है। दायीं ओर खूबसूरत पहाड़, उनके ऊपर फैली हुई धुंध की मखमली चादर, बायीं ओर घाटी में हरियाली से भरे हुए चाय के बागान और जंगल बहुत ही चित्ताकर्षक लगते हैं। यहां आप दुर्लभ चिडि़या और तितलियों को देख सकते हैं। दुर्लभ वनस्पतियों के बीच बारिश के मौसम में कई छोटे झरने मिलते हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान 'नीलिगिरि तहर' की विलुप्त होती प्रजाति को संरक्षित करने के लिये बनाया गया है। लोग तहर को पहाड़ी बकरी भी कहते हैं, क्योंकि ये देखने में बकरी जैसी होती है, पर इसके गुण भेड़ से ज्यादा मिलते हैं। अवैध शिकार के कारण इनकी संख्या कम होती जा रही थी। संरक्षण के प्रयासों के बाद अब इनकी तादाद 100 से बढ़कर 2000 हो गई है।

मरयूर चंदन वन

मुन्नार शहर से 39 किमी. दूर उदुमलपेट रोड पर मरयूर में पहुंचने पर आप खुद को प्राकृतिक चंदन वन में पाएंगे। इस बेशकीमती लकड़ी की हिफाजत के लिए सारे वृक्षों पर नंबर प्लेट लगी होती है। पेड़ों पर 6-7 फीट की ऊंचाई तक कंटीले तार लपेटे गए होते हैं। आपको बता दें कि चंदन की उच्च कोटि की लकड़ी की कीमत थोक में 17,500 रुपये प्रति किलो होती है इसीलिए चंदन की लकड़ी और जड़ों से जो तेल प्राप्त होता है उसे 'लिक्विड गोल्ड' कहा जाता है।

लौहयुगीन बस्ती मरयूर डोल्मेन्स

मुन्नार से तकरीबन 55 किमी. दूर है यह लौहयुगीन मानी जाने वाली बस्ती है। यहां दोबारा जीवन तब शुरू हुआ, जब 18वीं शताब्दी में मदुरई के राजा थिरुमालैनैकर को टीपू सुल्तान ने हराया। मुनीयारा अनाकोट्टापारा पार्क में पत्थर युग की हजारों साल पुरानी पत्थर की डोल्मेन्स हैं जो 10,000 साल ई.पू. की बतायी जाती हैं। इसमें पत्थर की चार पतली चट्टानों को खड़ा कर उस पर छत की तरह एक पत्थर रख देते हैं, जिन्हें डोल्मेन्स या मेगालिथिक स्ट्रBर कहते हैं। मिस्त्र की ममीज की तरह इन डोल्मेन्स को स्वर्ग का द्वार माना जाता था और शव को अन्यत्र जलाकर मृतक की अस्थियों के साथ इस्तेमाल सोने-चांदी के गहने भी रखे जाते थे। यहां कभी इनकी संख्या 4000 के आसपास थी, जिनमें से अब बहुत कम बची हैं। यहां से नीचे लाखों नारियल के पेड़ से ढके स्थल का नजारा देख दिल खुश हो जायेगा। यही पास ही अट्टाला गांव में इझूथू गुहा में प्राचीन रॉक पेंटिंग भी देख सकते हैं। इनमें मानव और पशुओं की पेंटिंग्स के साथ अन्य बहुत सारी तत्कालीन आकृतियां दिखती हैं। मरयूर में बहुत सारे होम स्टे हैं, जिनमें आप स्थानीय जिंदगी का आनंद उठा सकते हैं।

चिनार वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी

मरयूर से 12 किमी. पर स्थित चिनार वाइल्ड लाइफ सैंक्युअरी में आप लुप्तप्राय

होती मालाबार विशाल गिलहरी, दुर्लभ मंजममट्टी सफेद भैंसा, बॉन्नेट मकॉक, रस्टी स्पॉटेड कैट और हाथी, बंगाल टाइगर, भारतीय तेंदुआ, स्पॉटेड हिरन, गौर, नीलगिरि तहर, जंगली सुअर को भी देख सकते हैं। यहां पीले गले वाली बुलबुल सहित 225 तरह की चिडियों की प्रजातियां पायी जाती हैं। इस जगह की सैर के साथ आप यहां थुवनम वाटर फाल की ट्रेकिंग भी कर सकते हैं। 950 तरह के पेड़-पौधों के बीच मुथुवास औरपुलायर्स जैसी 11 आदिवासी जनजातियों का घर इसी अभयारण्य क्षेत्र में पड़ता है। हां, इस रास्ते में यानी मरयूर के रास्ते में गन्ने का अदरखयुक्त रस पीना और गुड़ खरीदना न भूलें ।

सद्या और केले के चिप्स

केला केरल का प्रमुख फल है। मसालों के इस शहर में आप हर इलाके के खानपान में स्वादिष्ट मसालों की खुशबू महसूस कर सकते हैं। केले के पत्ते पर खाना केरल के खानपान की प्रमुख परंपरा है। जब आप थाली में भोजन मांगेंगे तभी उसमें मिलेगी। खानपान में सद्या यहां सबसे मशहूर है। यह एक संपूर्ण थाली है जिसे केले के पत्ते पर ही परोसा जाता है। इसमें मुख्य रूप से नेईचोरू यानी चावल के साथ ओलन कालान, पापदाम, सद्य अवियल, किचाडी, थोरान, पछडी, कूटुकारी, एलिसरी, आम का अचार, पुलिंजी, नारंग अचार, केले के चिप्स, शार्ककारा अप्पे, सादा दही और बटर मिल्क जैसे लगभग 25 व्यंजन शामिल होते हैं। नेईचोरू केरल स्पेशल वेज बिरयानी है जो स्वादिष्ट मसालों और मेवों के साथ बनाई जाती है। कालान कच्चे केले, कद्दूकस किए हुए कच्चे नारियल, अरबी या घुइयां, दही और पिसे मेथी के दानों से बना एक पारंपरिक शाकाहारी व्यंजन है, जिसे मोर करी भी कहते हैं। वहीं, सद्य अवियल मिक्स सूखी सब्जी है। इसमें सांभर और सहजन मुख्य तत्व होते हैं, जिसमें नारियल का पेस्ट और दही डाल कर मिक्स किया जाता है। नारियल से सब्जी बेहद स्वादिष्ट हो जाती है। ओलन को खबहा (जिससे पेठा बनता है) के फल और नारियल के दूध से बनाते हैं। केला यहां का प्रमुख फल है। कोई भी समारोह केले के चिप्स के बिना अधूरा माना जाता है। वहीं यदि आप मीठे के शौकीन हैं तो यहां मिलने वाले अलग-अलग प्रकार के पायसम का स्वाद जरूर लें, पायसम यानी खीर। पाल पायसम, दूध में बासमती चावल, देसी घी साथ केशर इलायची की खुशबू युक्त होती है। वहीं परिपू पायसम को मूंग दाल, गुड़, नारियल के दूध में देसी घी, इलायची, सोंठ, काजू के साथ बनाते हैं। मीठे डिश में आप यहां शार्ककारा अप्पे भी चख सकते हैं। यह दक्षिण भारत के प्रसिद्ध चावल और दाल के खमीर उठे हुए मिश्रण से बने अप्पे के शेप में बनी मीठी डिश होती है।

 

चाय और मसालों की खरीददारी

खास मुन्नार मुख्य रूप से एक हिल स्टेशन है। शॉपिंग के बड़े मॉल या चकाचौंध आप यहां नहीं पाएंगे। इसलिए शॉपिंग में भी ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। यहां के लोकल मार्केट में आप ताजे फलों की खरीद कर सकते हैं। यदि आप कुछ यादगार वस्तुओं की शॉपिंग करना चाहते हैं तो हस्तकलाओं की खरीददारी कर सकें। इन आर्टपीस को आप अपनों को उपहार के रूप में दे सकते हैं। मुन्नार चाय के लिए मशहूर है और मसालों के लिए भी। आप अलग-अलग तरह के मसालों, चाय के साथ यहां घर पर बनी यानी होममेड चॉकलेट भी अपने साथ ले जा सकते हैं। इनके अलावा, जड़ी बूटियां, आयुर्वेदिक दवायें, सुगन्धित तेल, रंगे हुए पारम्परिक केरल के कपड़े की भी यहंा से ले सकते हैं।

कैसे और कब जायें

मुनार कोयम्बटूर मदुरई त्रिवेन्द्रम से सीधे जुड़ा है। नजदीकी एयरपोर्ट कोच्ची

है जहां से 130 किमी की दूरी पर मुनार शहर है । यहाँ बारिश में कम लोग आते हैं

लेकिन आप यहां पूरे साल आ सकते हैं।