Bhangarh Fort Story: तांत्रिक का श्राप, भूतों की कहानियां… वीरान भानगढ़ किले का कभी था भव्य इतिहास
देश की धरोहर में आज हम आपको एक ऐसे किले की कहानी बताने जा रहे हैं जिसे भूतों का डेरा कहा जाता है। खास बात है कि इस वीरान किले में दीवारें तो हैं लेकिन छत नहीं है। अंधेरे के बाद कोई यहां नहीं रुकता है। कहते हैं कि राजस्थान के भानगढ़ किले में आत्माएं पर्यटकों से बात करने की कोशिश करती हैं।
By Shashank Shekhar Bajpai Edited By: Shashank Shekhar Bajpai Updated: Sat, 24 Aug 2024 03:55 PM (IST)
शशांक शेखर बाजपेई। जयपुर से 118 किमी दूर बनी है भानगढ़ नगरी और उसका किला। यह देश की सबसे भूतिया कही जाने वाली जगहों में से एक है। 17वीं शताब्दी में इस किले का निर्माण आमेर के मुगल सेनापति मानसिंह के छोटे भाई राजा माधोसिंह ने करवाया था।
मगर, अब यह जगह वीरान है। किले के परिसर में हवेलियों, मंदिरों और सुनसान बाजारों के अवशेष खंडहर के रूप में खड़े हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद कोई भी व्यक्ति यहां नहीं जाता है।
कहते हैं कि यहां अंधेरे में पैरानॉर्मल एक्टिविटीज होती हैं। इसके बावजूद पर्यटक इस खूबसूरत किले को देखने के लिए पहुंचते हैं।
श्राप का असर... गिर जाती है छत
किले की सबसे अजीब चीज जिसे देखकर आप हैरान हो जाएंगे, वह है कि यहां बने किसी भी घर की छत नहीं है। घर का पूरा स्ट्रक्चर बना है, लेकिन किसी की भी छत नहीं है।स्थानीय लोग बताते हैं कि घरों में छत इसलिए नहीं है, क्योंकि जब भी बनाओ, वह गिर जाती है। यहां का बच्चा-बच्चा जानता है कि इस पर बालूनाथ का श्राप है।
इतनी कहानियां कि इतिहासकार भी कन्फ्यूज
ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ में इतिहासकार डॉक्टर रीमा आहूजा ने बात की। उन्होंने कहा कि भानगढ़ के बारे में इतनी कहानियां हैं, इतनी किंवदंतियां हैं कि इतिहास कहां शुरू होता है, कहां खत्म होता है, ये कहना आम लोगों के लिए मुश्किल है। यहां तक कि इतिहासकारों के लिए भी समस्या है। वह बताती हैं कि कुछ कहानियां बहुत पुरानी हैं। कुछ भूत-प्रेतों की कहानियां आ जाती हैं। किसी राजा या राजकुमारी पर श्राप हुआ किसी का।रीमा कहती हैं कि कई बार हम देखते हैं कि लोग इन चीजों के बारे में ज्यादा जिज्ञासा रखते हैं। इस वजह से ऐसी कहानियां प्रचलन में हैं। मगर, पूरा सच किसी को नहीं पता।संत बालूनाथ और महाराजा की कहानी
भानगढ़ के महाराज माधोसिंह एक संत बालूनाथ के भक्त थे। बालूनाथ ने तपस्या करने के लिए महाराज से एक गुफा बनाने की मांग की। महाराज तुरंत तैयार हो गए और उन्होंने एक गुफा बनवा दी। बालूनाथ उस गुफा में तपस्या करने चले गए। मगर, दरबार के पुजारी महाराज और संत बालूनाथ के बीच रिश्ते को देखकर जलने लगे। दोनों को अलग करने के लिए पुजारियों ने एक योजना बनाई। उन्होंने एक बिल्ली को मारकर गुफा के अंदर फेंक दिया।दो-तीन दिन बाद जब बिल्ली के मृत शरीर से बदबू फैलने लगी, तो पुजारियों ने राजा को जानकारी दी कि संत बालूनाथ का गुफा में निधन हो गया है।फिर संत ने दे दिया तबाही का श्राप
यह जानकारी मिलने के बाद महाराजा माधोसिंह बहुत दुखी हुए। वह गुफा तक गए, लेकिन बदबू की वजह से अंदर नहीं घुसे। उन्होंने गुफा को बंद करने का आदेश दिया। उधर, जब संत बालूनाथ की तपस्या पूरी हो गई, तो उन्होंने देखा कि उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद करा दिया गया है। इसके बाद क्रोधित होकर संत बालूनाथ ने श्राप दे दिया कि भानगढ़ पूरी तरह से तबाह हो जाए।इसके बाद क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता, लेकिन भानगढ़ पूरी तरह तबाह हो गया। घरों की छतें गिर गईं। स्थानीय लोग बताते हैं कि तब का दिन और आज का दिन है, यहां के घरों में जब भी कोई छत बनाओ, तो वह गिर जाती है।जंगल में बनी है संत की समाधि
- गलती का एहसास होने पर राजा ने संत की समाधि बनवाई।
- किले के पीछे जंगलों में बालूनाथ की समाधि आज भी बनी है।
- इतिहासकार इस नाम के संत के होने की पुष्टि नहीं करते हैं।
- बालकनाथ नाम के संत होने की बात इतिहासकार मानते हैं।
- हालांकि, वो किस काल, किस क्षेत्र के रहने वाले थे, पता नहीं।