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Chittorgarh Fort: तीन रानियों के जौहर का गवाह रहा है चित्तौड़गढ़ का किला, इन वजहों से भी है खास

राजस्थान अपनी संस्कृति और विरासत के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। यहां कई ऐसे किले मौजूद हैं जिन्हें देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh Fort) इन्हीं में से एक है जो भारत का सबसे बड़ा किला कहलाता है। इस किले का एक समृद्ध इतिहास रहा है जिसे जानने लोग हर साल चित्तौड़ आते हैं। आइए जानते हैं इसे किले की खासियत-

By Harshita Saxena Edited By: Harshita Saxena Updated: Fri, 09 Feb 2024 04:18 PM (IST)
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भारत का सबसे बड़ा किला है चित्तौड़गढ़ फोर्ट
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बात अगर भारत में मौजूद ऐतिहासिक धरोहरों की करें, तो राजस्थान का नाम सबसे पहले आता है। अपनी परंपराओं और संस्कृति के लिए मशहूर यह राज्य दुनियाभर में पर्यटन का एक प्रमुख स्थल है। यहां हर साल भारी संख्या में लोग घूमने आते हैं। राजस्थान में कई ऐसे किले मौजूद हैं, जो अपनी खूबसूरती और इतिहास के लिए जाने जाते हैं। चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh Fort) यहां स्थित ऐसा ही एक किला है, जो दुनियाभर से पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यह किला आज भी अपनी विरासत और संस्कृति को संझोए हुए हैं। आइए जानते हैं इस किले के गौरवशाली इतिहास के बारे में-

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चित्तौड़गढ़ किले (Chittorgarh Fort) का इतिहास

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित इस किले में सात दरवाजें हैं, जिनकी मदद से किले के अंदर प्रवेश किया जाता है। चित्तौड़गढ़ किला 7वीं से 16वीं शताब्दी तक सत्ता का एक प्रमुख केंद्र रहा था। बात करें इस किले के निर्माण की, तो इसे लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है कि इसे कब और किसने बनवाया था। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद मौर्य ने सातवीं शताब्दी में इस किले को बनवाया था। साथ ही कई लोगों का ऐसा भी मानना है कि इसे महाभारत काल में पांडवों ने बनाया गया था। हालांकि, इसे लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है।

भारत का सबसे विशाल किला

यह किला राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है, जो भीलवाड़ा से कुछ किमी दक्षिण में है। यह भारत का सबसे विशाल किला माना जाता है। इस किले में मौजूद प्रवेश द्वार, बुर्ज, महल, मंदिर और जलाशय इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। अपनी खूबसूरती और समृद्ध इतिहास की वजह से यह किला एक विश्व विरासत स्थल है। चित्तौड़ के इस किले को 21 जून, 2013 में युनेस्को विश्व धरोहर घोषित किया गया।

इसी किले में हुआ था पहला जौहर

यह किला कई मायनों में खास है। अपने समृद्ध इतिहास के साथ ही यह किला अपने पहले जौहर का गवाह भी रहा है। रावल रतनसिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान सन 1303 में रानी पद्मिनी ने अपनी 16 हजार दासियों के साथ यहां पहला जौहर किया था। वहीं, राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में सन् 1534 ई. में गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण के समय में रानी कर्णवती ने अपनी 13 हजार दासियों के साथ दूसरा जौहर किया था। जबकि तीसरा जौहर राणा उदयसिंह के शासन में अकबर के आक्रमण के समय सन 1568 में पत्ता सिसौदिया की पत्नी फूल कंवर के नेतृत्व में हुआ था।

इन वजहों से भी खास है यह किला

इस किले में एक विजय स्तंभ भी मौजूद हैं, जो 47 फुट वर्गाकार आधार और 10 फुट की ऊंचाई वाले आधार पर बना 122 फुट (करीब नौ मंजिल) स्तंभ है। इसे महाराजा कुम्भा ने बनवाया था और इसका निर्माण कार्य 1440 ई. में शुरू होकर 1448 में पूरा हुआ था। इस किले में जलाशय के बीचोंबीच पद्मिनी महल स्थित है। ऐसा मान्यता है कि जब अलाउद्दीन खिलजी ने शीशे में रानी की झलक देखी थी, तो वह इसी महल में मौजूद थीं। किले में राणा कुम्भा का महल भी मौजूद है। माना जाता है कि रानी पद्मिनी ने इसी महल में जौहर किया था।

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Picture Courtesy: Manoj Vashisth OR Rajasthan Tourism