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केरल के जायकों में मौजूद है वेजिटेरियन से लेकर नॉन वेजिटेरियन तक की ढेरों वैराइटी, जरूर चखें इन्हें

केरल के खानों में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें केरल में ही उगती है। जिससे मिलकर बनी डिशेज का स्वाद ही लाजवाब होता है। यहां आकर आप कई तरह के जायकों का ले सकते हैं मजा।

By Priyanka SinghEdited By: Updated: Thu, 28 Nov 2019 10:28 AM (IST)
केरल के जायकों में मौजूद है वेजिटेरियन से लेकर नॉन वेजिटेरियन तक की ढेरों वैराइटी, जरूर चखें इन्हें
केरल राज्य को अरब सागर की सुंदर तट रेखा मिली है, उत्तर से दक्षिण तक फैली 580 किमी. की कोस्टल लाइन यहां के लोगों के लिए जीवनरेखा जैसी है। इस छोटे से राज्य के पास 44 नदियां हैं, इसलिए यहां के खानों में सी फूड की एक विशाल रेंज देखने को मिलती है। केरल के लैंडस्केप पर खूबसूरत नारियल के ऊंचे पेड़ शान से लहराते हैं और केरल के भोजन में नारियल एक अनिवार्य अंग बनकर हर ग्रेवी को एक हल्का मीठा गाढ़ापन प्रदान करते हैं। केरल के खानों में प्रयोग में लाई जाने वाली सभी सामग्री यहीं केरल की धरती पर ही उगती है, केरल के पास दूर तक फैले मखमली सजीले धान के खेत हैं, यहां पहाड़ों की ढलानों पर मसालों की खेती होती है। ट्रॉपिकल क्षेत्र होने के कारण इन पहाड़ी ढलानों पर कभी भी बारिश हो जाया करती है। ये मद्धिम मद्धिम रिमझिम रिमझिम फुहारें इलायची, काली मिर्च, जायफल और जावित्री प्लांटेशन के लिए बड़ी मुफीद हैं।

पारंपरिक साद्य: केरल वैसे तो मांसाहारी लोगों के लिए किसी पैराडाइज जैसा है, लेकिन यहां शाकाहारियों के लिए भी बहुत कुछ है खाने को। केरल के पारंपरिक भोजन में सबसे पहले नाम आता है साद्य का। साद्य यहां के शाकाहारी लोगों का मुख्य भोजन है। साद्य केले के पत्ते पर परोसा जाता है, जिसमें मुख्य रूप से चावल, सांभर, रसीली सब्जी अवियल, सूखी सब्जी मांगा करी, नारांगा करी, एल्लिशेरी, पुलिशसेरी, कालन, ओलन, केले के चिप्स, पापड़, अचार, चटनी होता है। इस खाने की खासियत यह है कि यह भोजन मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। केरल के सबसे बड़े त्योहार ओणम पर एक विशेष प्रकार का साद्य परोसा जाता है, जिसमे सौ से ऊपर शाकाहारी व्यंजन होते हैं।यहां जो लोग सी फूड के शौकीन हैं, वे सांभर के स्थान पर फिश करी और फ्राई फिश सदया के साथ खाना पसंद करते हैं। आप जैसे-जैसे उत्तरी केरल की ओर बढ़ेंगे, तो वहां के खानों में मालाबार और अरब के खानों का प्रभाव देखने को मिलेगा। दक्षिणी केरल के खानों में यहां का पारंपरिक स्वाद बिना किसी अन्य प्रभाव के आज भी मौजूद है।

सी फूड: अगर आप यहां सी फूड एंजॉय करना चाहते हैं तो कोच्चि से दक्षिण का रुख करें, अलेप्पी में सन् 1970 में स्थापित एक रेस्टोरेंट है कल्पगवाडी। यहां की केले के पत्ते में लपेट कर पारंपरिक मलयाली स्टाइल में पकी करी मीन आपको अंगुलियां चाटने पर मजबूर कर देगी। यहां पर आप सीरियन क्रिश्चियन ब्रेकफास्ट का आनंद ले सकते हैं। यहां से आगे आप कोवलम और वरकरा का रुख करेंगे तो आपको सी फूड में क्रिश्चियन पाक कला के स्वाद चखने को मिलेगा। यहां सी फूड की एक विशाल श्रृंखला मिलती है, जैसे- स्नैपर, रॉकफिश, लॉब्स्टर, केकड़ा और झींगा मछली आदि। जैसे-जैसे आप उत्तर की ओर बढेंगे, आपको मालाबार के स्वाद मिलेंगे। इन खानों पर इस्लामी पाक कला का स्पष्ट प्रभाव होता है। इस पाक कला को सहेज कर रखा है यहां की मापिला कम्युनिटी ने। इस खाने की शान है बिरयानी।

मालाबार में तरह-तरह की बिरयानी चखने को मिलती है। इस बिरयानी में गरम मसालों की खुशबू और मेवों का समावेश होता है। मलयाली पाक कला में जहां खटास का मुख्य स्त्रोत इमली होती है, वहीं मालाबार बिरयानी में खटास की भरपाई आलूबुखारा और टमाटर से की जाती है। इस बिरयानी में बासमती चावल की जगह यहां का लोकल चावल जीराकसरा उपयोग में लाया जाता है। यहां तलाशेरी पाक कला में सीरियन, अरब और यूरोपियन पाक कला का मिश्रण देखने को मिलता है। यहां कालीकट में एक से बढ़कर एक अच्छी बेकरी मिलती है। इनके बनाये केक और बेकरी आइटम यूरोपियन पाक कला की देन हैं।

डॉ कायनात काज़ी