उत्तरप्रदेश में ही नहीं थाइलैंड में भी है श्रीराम की अयोध्या, ये है खास बातें
अयोध्या का सबसे महत्वपूर्ण भवन है तीन छेदी, जिसमें तीन राजाओं की खाक मिली है. यह जगह खास लोगों को समर्पित की गई है.
By Pratima JaiswalEdited By: Updated: Tue, 10 Apr 2018 04:23 PM (IST)
हमारे देश में अगर कोई जगह किसी विदेशी जगह से मिलती-जुलती है, तो इसे मिनी इंग्लैंड, मिनी फ्रांस, मिनी लंदन जैसी उपमा दी जाती है. लेकिन सोचिए, अगर विदेश की कोई जगह भारत से मिलती-जुलती होती है तो उसे किसी नाम से पुकारा जाता होगा. बाकी जगहों के बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन भारत से मिलती-जुलती एक जगह ऐसी है, जिसका नाम अयोध्या है. अयोध्या को थाइलैंड की प्राचीन राजधानी भी कहा जाता है. अब अयोध्या नाम से थाइलैंड में एक जगह है.
इतनी अलग है यूपी की अयोध्या से अयोध्या का मतलब है अपराजय. अयोध्या से इस शहर का नाम जोड़ने की वजह यह हो सकती है कि ईसा पूर्व द्वितीय सदी में इस क्षेत्र में हिंदुओं का वर्चस्व काफी ज्यादा था. पुरुषोत्तम राम के जीवनचरित पर भारत में भगवान वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण थाईलैंड में महाकाव्य के रूप में प्रचलित है. लिखित साक्ष्यों के आधार पर माना गया है कि इसे दक्षिण एशिया में पहुंचाने वाले भारतीय तमिल व्यापारी और विद्वान थे. पहली सदी के अंत तक रामायण थाईलैंड के लोगों तक पहुंच चुकी थी. वर्ष 1360 में राजा रमाथीबोधी ने तर्वदा बौद्ध धर्म को अयोध्या शहर का शासकीय धर्म बना दिया था, जिसे मानना नागरिकों के लिए अनिवार्य था लेकिन फिर इसी राजा को हिन्दू धर्म का प्राचीन दस्तावेज ही लगा, जिससे प्रभावित होकर इसने हिन्दू धर्म को ही यहां का आधिकारिक धर्म बना दिया, जो अब से एक शताब्दी पहले तक वैध था.
मठों, आश्रमों, नहरों और जलमार्गों के लिए खास पुरातत्व शोधकर्ताओं के अनुसार पत्थरों के ढेर में तबदील हुए अयोध्या का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है. यहां स्थित अवशेष इसके वैभव का बखान करते हैं. इन्हीं अवशेषों के आसपास आधुनिक शहर बस जाने से अयोध्या थाईलैंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शुमार हो गया है, जिसे देखने प्रति वर्ष तकरीबन दस लाख लोग आते हैं. अपने शिल्प-वैभव की वजह से अयोध्या राजनीतिक और आध्यात्मिक तौर पर अति प्रभावशाली राज्य माना जाता रहा. मठों, आश्रमों, नहरों एवं जलमार्गों की वजह से उस वक्त इस शहर की तुलना धार्मिक, व्यापारिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से वेनिस और ल्हासा से की जाती थी.
अयोध्या का सबसे महत्वपूर्ण भवन है तीन छेदी, जिसमें तीन राजाओं की खाक मिली है. यह जगह खास लोगों को समर्पित की गई है. यहां पूजा-अर्चना की जाती थी और समारोह आयोजित होते थे. विहार फ्रा मोंग खोन बोफिट एक बड़ा प्रार्थना स्थल है. यहां बुद्ध की एक बड़ी मूर्ति है. यह पहले 1538 में बनाई गई थी लेकिन बर्मा द्वारा अयोध्या पर चढ़ाई के दौरान नष्ट हो गई थी. यह प्रतिमा पहले सभागार के बाहर हुआ करती थी, बाद में इसे विहार के अंदर स्थापित किया गया. जब विहार की छत टूट गई, तब एक बार फिर मूर्ति को काफी नुकसान पहुंचा और राजा राम षष्ठम ने लगभग 200 वर्षों बाद इसे वहां से हटवा कर संग्रहालय में रखवा दिया. 1957 में फाइन आट्रस विभाग ने पुराने विहार को फिर से बनवाया और सुनहरे पत्तों से ढककर बुद्ध की मूर्ति को फिर से पुरानी जगह पर रखवाया. आप भी अगर थाइलैंड की अयोध्या को देखना चाहते हैं, तो एक बार थाइलैंड की सैर कर सकते हैं.