Barsana, Mathura & Vrindavan Holi 2019 Celebration: फूल, लड्डू और लाठी-डंडों के साथ खेली जाती है यहां होली
Holi 2019 Celebration मथुरा वृंदावन में शुरू हो चुका है होली का हुडदंग जिसमें हर एक दिन आपको ऐसा नजारा देखने को मिलता है जैसा आपने पहले कभी नहीं देखा होगा। क्यों यहां कि होली है अलग जानेंगे।
By Priyanka SinghEdited By: Updated: Tue, 19 Mar 2019 11:24 AM (IST)
गुजिया, ठंडई, गुलाला और पानी के गुब्बारे और तेजी से बजता संगीत। लगभग हर जगह होली का महौल कुछ ऐसा ही होता है। लेकिन अगर आप मथुरा, वृंदावन की होली देखने का प्लान कर रहे हैं तो यहां रंग बरसे भीगे चुनर वाली की जगह कृष्ण भक्ति के गीत सुनाई देंगे। जो यकीन मानिए आपके उत्साह को दुगुना करते हैं। एक बार तो यहां होली का एक्सपीरिएंस लेना बनता है। तो मथुरा, वृंदावन, ब्रज, द्वारका में मनाई जाने वाली होली बाकी जगहों से क्यों होती है अलग, जिसे देखने दुनियाभर से लोगों की भीड़ जुटती है। जानेंगे इसके बारे में।
ब्रज की होली अपने अनोखे होली सेलिब्रेशन के लिए मथुरा देश-विदेश के सैलानियों के बीच मशहूर है। इसलिए हर साल यहां होली के हुडदंग में बाहर से आने वाले टूरिस्टों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। ब्रज की होली बहुत ही मजेदार होती है। एक-दूसरे को रंग लगाकर आपसी प्यार और एकता का जताया जाता है। लेकिन ब्रज की होली थोड़ी अलग होती है।
मतलब अगर आप अभी तक होली में कहां जाकर, क्या देखें तो एक नज़र डालें यहां। जो होली की प्लानिंग में करेगा आपकी मदद।
बरसाना और नंदगांव की लठमार होली
राधा और श्रीकृष्ण के प्यार और शरारत से हुई है इस होली की शुरूआत। भगवान श्रीकृष्ण और उनके सखा नंदगांव से बरसाना, जो राधा रानी का गांव है वहां आते थे राधा पर अलग-अलग रंगों की बारिश कर उन्हें अपने सांवले रंग में रंगने। तब राधा अपनी सखियों के साथ कृष्ण और उनके मित्रों की लाठियों से पिटाई करती थी। तो ये परंपरा उसी समय की देन है।
फूलों की होली वृंदावन में
वृंदावन में फूलों की होली भारत ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है। होली के पहले पड़ने वाली एकादशी को ये खेली जाती है वो भी फूलों के साथ। बांके बिहारी मंदिर के पुजारी लोगों पर फूलों की वर्षा करते हैं। 15-20 मिनट तक खेली जाने वाली इस होली का आनंद ही अलग होता है। गुलाब और गेंदें के फूलों से पूरा माहौल महक उठता है।
विधवा होली वृंदावन में होली मौज-मस्ती का त्योहार है जिसमें हर किसी को शामिल होने का हक है। इसी सोच के साथ वृंदावन में विधवा होली की परंपरा शुरू हुई। वृंदावन के पागल बाबा विधवा आश्रम में आकर आप इस होली का अलग ऩज़ारा देख सकते हैं।
बांके बिहारी की होली
होली के एक दिन पहले इस मंदिर में गुलाल और पानी से खेली जाती है होली। कृष्ण भक्ति में लीन भक्तों के ऊपर पानी और रंगों की बारिश इसे बना देती है और भी खास।
द्वारकाधीश की होलीमथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में आप सबसे बड़ी और बेहतरीन होली का नज़ारा देख सकते हैं। सुबह 10 बजे से शुरू होने वाली इस होली में भांग बनाने का काम यहां के पुजारी के जिम्मे होता है। ढोल, नगाड़ों और तेजी से बजता संगीत होली की मस्ती को कर देता है दुगुना। हुरंगा होलीदाऊजी मंदिर जो मथुरा से 30 किमी की दूरी पर है, यहां जाकर होता है होली का समापन। होली के अगले दिन महिलाएं और पुरुष एक जगह एकत्र होते हैं और भगवान कृष्ण के गीतों पर झूमते-नाचते हैं। इसके बाद गांव की महिलाएं पुरुषों के कपड़े फाड़ उससे उनकी पिटाई करती हैं। इसके बाद बालगांव के लोग होली के समापन की घोषणा करते हैं। तो इतनी मस्ती, शोर-शराबे और धूमधाम के साथ ब्रज की होली मनाई जाती है।