कंबोडिया में बसा है दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर, जिसके बनने की कहानी है बड़ी ही रोमांचक
अंकोरवाट मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों में पूरी रामायण अंकित है। मीकांग नदी के किनारे बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला है।
By Priyanka SinghEdited By: Updated: Fri, 24 Jan 2020 03:02 PM (IST)
12वीं शताब्दी के अंकोरवाट मंदिर को चूना पत्थर की विशाल चट्टानों से कुछ ही दशकों में बना लिया गया था। डेढ़ टन से ज्यादा वजन वाली ये चट्टानें बहुत दूर से लाई जाती थीं। सैकड़ों किलोमीटर दूर से विशाल चट्टानों को लाना तब असंभव सा था। तत्कालीन हिंदू राजा ने मंदिर के लिए करीब स्थित माउंट कुलेन से चट्टानें लाने में भूमिगत नहरों की मदद ली। नावों में लादकरक ये चट्टानें पहुंचाई गई।
एक करोड़ चट्टानों से बना मंदिर12वीं सदी का यह मंदिर करीब एक करोड़ चट्टानों से बना है। भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार इस मंदिर को सिर्फ एक राजा के शासनकाल में तैयार कर लिया गया था। उन दिनों दक्षिण-पूर्वी एशिया में सर्वाधिक प्रभावशाली और समृद्ध रहा खमेर साम्राज्य आधुनिक लाओस से लेकर थाईलैंड, वियतनाम, बर्मा और मलेशिया तक फैला था।पुरावेत्ताओं ने अंकोरवॉट मंदिर के गुम हो जाने और आसपास घने जंगलों में खो जाने के कारणों पर काफी अध्ययन किए हैं। ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र का उपग्रह चित्र लिया, जिसमें पाया कि पूरा इलाका प्राचीन भूमिगत नहरों से जुड़ा है। शायद इसलिए हजारों किलोमीटर दूर से इन नहरों के जरिए कम से कम समय में चूना पत्थरों को मंदिर निर्माण के लिए लाया गया होगा। खमेर साम्राज्य के लोग धान की खेती करते थे। वे खेती को इस हद तक बढ़ावा देने लगे कि पर्वत के पेड़ काटकर वहां भी धान बोने लगे। युद्धों से तो खामेर साम्राज्य सिमट ही रहा था, प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के नाते वह प्राकृतिक विनाश का भी शिकार बना। और अंकोरवाट मंदिर कहीं खो गया जिसे बाद में घने जंगलों के बीच 16वीं शताब्दी में फिर खोजा जा सका।
दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्थलअंकोरवाट कंबोडिया में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, जो करीब 162.6 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। यह मूल रूप से खमेर साम्राज्य में भगवान विष्णु के एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएं बहुत सुंदर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मन्थन का दृश्य भी दिखाया गया है। सनातन धर्म को मानने वाले इसे अपना पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं।