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ऊटी- जादू है यहां की फिजाओं में

नए साल के स्वागत की तैयारी और छुट्टियों के समय में हिल स्टेशन की रानी यानी ऊटी की यात्रा एक जादुई एहसास की तरह है। तमिलनाडु का यह हिल स्टेशन चाय और चॉकलेट के लिए भी खूब मशहूर है।

By Priyanka SinghEdited By: Updated: Sun, 30 Dec 2018 06:00 AM (IST)
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ऊटी- जादू है यहां की फिजाओं में
नए साल के स्वागत की तैयारी और छुट्टियों के समय में हिल स्टेशन की रानी यानी 'ऊटी' की यात्रा एक जादुई एहसास की तरह है। बॉलीवुड की पहली पसंद बने तमिलनाडु का यह हिल स्टेशन चाय और चॉकलेट के लिए भी खूब मशहूर है। डॉ. कायनात काजी के साथ आज चलते हैं ऊटी के सफर पर..

हर तरफ जादू बिखरा है यहां। यह खूबसूरती ऐसी जादुई रही है कि इसे देखकर हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इसे 'हिल स्टेशन की रानी' के खिताब से नवाजा। इस जगह की रूहानी खूबसूरती का एहसास तो तभी से शुरू हो जाता है, जब हम कोयंबटूर शहर की हलचल को पीछे छोड़ते हुए नीलगिरि पहाडि़यों की ओर चल पड़ते हैं। यहां की बेहतरीन सड़कें और उन सड़कों के किनारे-किनारे दूर तक फैले नारियल के पेड़ नीले आकाश तले ऐसे दिखते हैं, जैसे किसी चित्रकार की कल्पना साकार हो गई हो। ऊटी जाने के दो रास्ते हैं। एक, कून्नूर-मेत्तुपलायमरोड होकर और दूसरा, कोटगिरि-मेत्तुपलायम रोड होकर। दोनों ही रास्ते अलग तरह की खासियतें लिए हुए हैं। कोटगिरि से जाने पर आपको खूबसूरत चाय बागान और पहाड़ी गांव देखने को मिलते हैं। वहीं कुन्नूर होकर जाने पर नीलगिरि माउंटेन रेलवे के दर्शन होते हैं। इस रास्ते पर टॉय ट्रेन जंगल में लुका-छिपी करते हुए कभी अचंभित करती सामने आ जाती है तो कभी हरे-भरे जंगल में चुपके से गुम हो जाती है।

जॉन सुलिवन की खोज

सन् 1817 में कोयंबटूर के कलेक्टर सर जॉन सुलिवन ने ऊटी की खोज की थी। सर जॉन को यह जगह और इसकी हसीन वादियां इतनी पसंद आईं कि उन्होंने इन दुर्गम पहाड़ी रास्तों को सड़क की शक्ल देने का फैसला किया। साल 1819 में उन्होंने कोयंबटूर रिवेन्यू बोर्ड से मात्र 1100 रुपये की रकम लेकर सिरूमुगाई से कोटगिरि तक एक सड़क बनवाने का काम शुरू कराया। यह सड़क अगले दो सालों में बनकर तैयार हुई। साल 1938 तक यही एकमात्र सड़क थी जो कि कोयंबटूर को नीलगिरि की मनोरम पहाडि़यों से जोड़ती थी।

उसके बाद तत्कालीन गवर्नर एस.आर. लुशिंगटन ने कुन्नूर घाट रोड बनवाई। कहते हैं, जब ब्रिटिश लोगों ने इस जगह को ढूंढ़ा तो यहां डोडा जनजाति का एकछत्र राज था। नीलगिरि पहाडि़यों पर बिखरा प्रकृति का अनुपम सौंदर्य इतना प्रभावशाली था कि आंखों में समाना मुश्किल था। दरअसल, घने जंगल, सिल्वर ओक के पेड़ और चाय के बागान इस जगह को एक अलग पहचान देते हैं। कौन जनता था कि ऊटी कभी जंगल के बीचोबीच पनपने वाला अनजाना स्थान होगा, जो कि मैसूर और चेन्नई के लंबे रास्ते के बीच पड़ता है। सर जॉन सुलिवन की इस खोज को ब्रिटिश अधिकारियों ने एक वरदान के रूप में लिया और ऊटी को मद्रास प्रेसीडेंसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया।

विंटेज यात्रा का लुत्फ

नीलगिरि माउंटेन रेलवे 25 लाख रुपये की लागत से साल 1899 में बनकर तैयार हुई थी। अगर आपके पास समय है तो आप मेत्तुपलायम से ऊटी तक का सफर इस ट्रेन से करें। यह ट्रेन दिन में दो बार चलती है। पहली ट्रेन सुबह सात बजे चलकर दस बजे ऊटी पहुंचती है, वहीं दूसरी ट्रेन दोपहर 12 बजे चल कर ऊटी से मेत्तुपलायम पहुंचती है। ऊटी से कुन्नूर तक यह ट्रेन डीजल इंजन पर चलती है, फिर इसमें भाप का इंजन लगाया जाता है। नीलगिरि रेलवेज को साल 2005 में यूनेस्को ने विश्र्व धरोहर के खिताब से नवाजा गया। तकरीबन 46 किलोमीटर की यह यात्रा समेटे है 208 मोड़, 16 सुरंग और 250 पुल। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इस यात्रा की विंटेज वैल्यू बरकरार रखने के लिए आज भी इसके टिकट मैनुअल स्टाइल में काटे जाते हैं। इस यात्रा में ट्रेन हिल्लिग्रोव स्टेशन पर 10 मिनट के टी ब्रेक के लिए रुकती है। अगर आपके पास समय कम है तो आप ऊटी से कुन्नूर तक की शॉर्ट राइड लेकर भी इस विंटेज अनुभव का लुत्फ उठा सकते हैं। छुकछुक चलती यह रेलगाड़ी कितने ही पुल पार करती हुई धीरे-धीरे ऊटी पहुंचती है। इस रेल को एशिया की सबसे धीमी रेल के रूप में भी जाना जाता है।

ऊटी लेक: मनोरम पिकनिक स्पॉट

ऊटी में सबसे ज्यादा मशहूर पिकनिक स्पॉट है ऊटी लेक। यह 65 एकड़ में फैली हुई है। ऊटी लेक को देखकर आपको यकीन नहीं होगा कि यह एक कृत्रिम लेक है। इस लेक का निर्माण जॉन सुलिवन ने वर्ष 1824 में किया था। इस लेक को पानी से भरने का काम खुद नीलगिरि की पहाडि़यां करती हैं। इस लेक के पास खूबसूरत उद्यान बनाए गए हैं, जहां बच्चे खूब एंजॉय करते हैं।

उदगमंडलम- यानी पहाड़ पर बसा गांव

ऊटी का पूरा नाम है- उदगमंडलम। यह नाम तमिल भाषा के शब्द 'ओत्ताककाल्मंडू' से निकला है। इसका अर्थ होता है-पहाड़ पर बसा गांव। चूंकि यह ऊंचे पहाड़ों की हसीन वादियों में बसा है, इसलिए इसे यह नाम मिला।

कभी देखा है धागों वाला फूल!

ऊटी लेक के बिल्कुल सामने है थ्रेड गार्डेन। यह जगह अपने आप में बड़ी अनोखी है। यह एक प्राइवेट म्यूजियम है, जो दुनिया का पहला थ्रेड गार्डेन है। इस गार्डन की स्थापना केरल के एक प्रोफेसर एंटनी जोसेफ ने की थी। इसे तैयार करने में एंटनी जोसेफ और उनकी टीम को पूरे 12 साल का समय लगा। यहां धागे से बने फूलों की प्रदर्शनी लगी हुई है। इस म्यूजियम के संचालक का दावा है कि गवर्नमेंट बोटेनिकल गार्डन में जितने भी प्रकार की प्रजातियों के फूल पाए जाते हैं, उन सभी के नमूने यहां थ्रेड से तैयार किए गए हैं। थ्रेड से फूलों को बनाने में एक करोड़ मीटर धागों का इस्तेमाल किया गया है।

और भी हैं देखने वाली जगहें

सेंट स्टीवन चर्च

ऊटी शहर में हरे-भरे पहाड़ों के बीच एक सोने-सी दमकती हुई इमारत नजर आती है। यह इमारत सेंट स्टीवन चर्च है। मद्रास के गवर्नर स्टीवन रमबोल्ड लुशिंगटन ने 23 अप्रैल, 1829 को इस चर्च की नींव रखी थी। इसके आर्किटेक्ट थे कैप्टन जॉन जेम्स अंडरवुड। कहते हैं इस चर्च में जिस लकड़ी का प्रयोग हुआ है, वह टीपू सुल्तान के पैलेस से ली गई थी। इस चर्च के भीतर खूबसूरत ग्लास पेंटिंग्स बनी हुई हैं, जिसमें जीसस के लास्ट सपर की पेंटिंग बहुत शानदार है।

शान है बोटेनिकल गार्डन

ऊटी की एक और शान है गवर्नमेंट बोटेनिकल गार्डन। यह गार्डन 55 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। वर्ष 1848 में इसे बनाया गया। इसके आर्किटेक्ट थे सर विलियम ग्राहम मैकाइवर। दरअसल, उस समय इसे ब्रिटिश अफसरों की फूल और सब्जी की जरूरतों को पूरा करने के लिए शुरू किया गया था, लेकिन कालांतर में इसे एक बड़ा और प्रतिष्ठित सार्वजनिक गार्डन बना दिया गया। वर्तमान में इसे 6 खंडों में बांटा गया है। वैसे तो यह पूरा का पूरा गार्डन देखने लायक है, लेकिन इसके बीचोबीच एक दुर्लभ फॉसिल ट्री ट्रंक मौजूद है। माना जाता है कि यह 2 करोड़ साल पुराना है। अब इस पेड़ का तना एक कठोर चट्टान की तरह बन चुका है। यहां भारत का एक नक्शा भी बना हुआ है, जिसके आगे सैलानी तस्वीरें खिंचवाना पसंद करते हैं।

डोडाबेटा पीक पर ऑब्जर्वेटरी

डोडाबेटा पीक समुद्र तल से 2623 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बडगा भाषा में डोडाबेटा का मतलब होता है बड़ा पर्वत। ऊटी शहर से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान आपको खूबसूरत नीलगिरि पहाडि़यों का दर्शन कराता है। डोडाबेटा ईस्टर्न घाट की सबसे ऊंची चोटी मानी जाती है। यहां तक पहुंचने का रास्ता जंगल से होकर जाता है। खूबसूरत जंगल से होकर जब आप डोडाबेटा पहुंचते हैं तो यहां का नजारा देखने लायक होता है। इतनी ऊंचाई पर कभी-कभी बादल के टुकड़े नीचे झुक आते हैं। यहां ऊपर एक ऑब्जर्वेटरी भी बनी हुई है, जहां से पूरी वादी का नजारा देखने को मिलता है।

टी फैक्ट्री में चाय की चुस्की

डोडाबेटा से वापसी पर आप यहां की बेंचमार्क टी फैक्ट्री देखने जरूर जाएं। इस टी फैक्ट्री में आपको चाय बनाने की पूरी प्रक्रिया से रूबरू होने का मौका मिलता है। बागानों से तोड़कर लाई गई चाय की हरी पत्तियों का आपके प्याले तक पहुंचने का यह सफर कई खूबसूरत मोड़ से होकर गुजरता है। इस टी फैक्ट्री में यहां बनने वाली सभी तरह की चाय का स्वाद भी चखाया जाता है। ये लोग एक दिन में लगभग पांच हजार प्याले चाय सैलानियों को चखाते हैं।

वैक्स प्लैनेट में मिलिए नामी हस्तियों से

ऊटी रेलवे स्टेशन से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह एक छोटा मगर खूबसूरत म्यूजियम, जिसमें वैक्स के पुतलों द्वारा कई बड़ी हस्तियों को संजोया गया है, जिसमें महात्मा गांधी से लेकर बराक ओबामा और मर्लिन मुनरो से लेकर लेडी डायना तक मौजूद हैं। इस म्यूजियम की खासियत यह है कि यहां केवल बड़ी हस्तियों के पुतले भर नहीं हैं, बल्कि उनके जीवन का एक हिस्सा भी मौजूद है, जैसे अमिताभ बच्चन के शो 'कौन बनेगा करोड़पति' यानी केबीसी का पूरा का पूरा सेट या फिर मदर टेरेसा प्रेयर करती हुईं। यह जगह बच्चों को बहुत लुभाती है।

शूटिंग पॉइंट का ऑकर्षण

ऊटी जाएं तो शूटिंग पॉइंट्स पर जरूर जाएं। यह जगह आपको देखी-देखी सी लगेगी, क्योंकि आपने अनेक फिल्मों में इसे देखा होगा। इस जगह पर शाम को जाएं, बिल्कुल सूर्यास्त से पहले। तब इस जगह की खूबसूरती आपको और बांध लेगी।

मिल्टन अबॉर्ट एस्टेट

ऊटी के प्राकृतिक आकर्षणों में एक विशेष आकर्षण है औपनिवेशिक जमाने का चार्म, जो कि यहां हर चीज में झलकता है। फिर चाहे वह यहां का आर्किटेक्चर हो या फिर बोटेनिकल गार्डन। अगर आप भी ऊटी के उस कोलोनियल इरा को जीना चाहते हैं तो अपने हॉलिडे के दौरान कोशिश करें किसी स्टेट में रुकें। यहां ऐसी कई स्टेट मौजूद हैं, जिन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने बसाया था। ऐसी ही एक स्टेट है मिल्टन अबॉर्ट स्टेट। यह स्टेट पांच एकड़ में फैली हुई है। घने जंगल के बीच एक खूबसूरत कोलोनियल बंगला बनाया गया। 18वीं सदी का यह कोलोनियल बंगला आज भी अपनी उसी शान के साथ खड़ा हुआ है। यहां आकर लगता है कि जैसे वक्त ठहर-सा गया है।

हॉलिडे टी प्लांटेशन में

जहां तक नजर जाए दूर-दूर तक सिर्फ चाय के बागान हों। किसी अलबेले मतवाले पंछी की कूक से आपकी आंखें खुलें और सनसेट के रंगों पर रात का नीला आकाश दुशाला ओढ़ा दे। कभी भी बरस आए बदरा और इस मनोरम दृश्य के बीच हो आपका हॉलिडे होम। एक ऐसा हॉलिडे जो हमेशा-हमेशा के लिए यादों में बस जाए। यही सोच कर तो लोग नीलगिरि माउंटेंस की ओर खिंचे चले आते हैं। अगर आप नीलगिरि पहाड़ों का हुस्न नजदीक से देखना चाहते हैं तो आप अपना हॉलिडे टी प्लांटेशन में गुजारें।

कुन्नूर और कोटगिरि में आपको ऐसे कई खूबसूरत रिजॉ‌र्ट्स या गेस्ट हाउस मिल जाएंगे। ऊटी सैलानियों से हमेशा भरा रहता है, जबकि कुन्नूर इसके पास एक शांत और छोटा पहाड़ी कस्बा है।

कैसे पहुंचे

ऊटी का नजदीकी एयरपोर्ट कोयंबटूर 89 किलोमीटर दूर है. मुंबई, कालीकट, चेन्नई व मदुरै के लिए यहां से नियमित उड़ानें हैं. चेन्नई व कोयंबटूर से ट्रेनें भी हैं. बस-टैक्सी लेकर मदुरै, तिरुअंनतपुरम, रामेश्वरम, कोच्चि, कोयंबटूर से यहां पहुंचा जा सकता है।