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कुछ ऐसी है इस धाम की महिमा जहां 6 महीने तक अपने आप से जलता रहता है मंदिर का दीपक

हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक केदारनाथ मंदिर की यात्रा के लिए ये बिल्कुल सही समय है। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही खूबसूरत है। जहां ट्रैकिंग करते हुए पहुंचा जा सकता है।

By Priyanka SinghEdited By: Updated: Fri, 14 Sep 2018 05:27 PM (IST)
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कुछ ऐसी है इस धाम की महिमा जहां 6 महीने तक अपने आप से जलता रहता है मंदिर का दीपक
उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है केदारनाथ मंदिर। जो देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ऊंचा है। रूद्रप्रयाग और चमोली जिले में भगवान शिव के 200 से ज्यादा मंदिर हैं। केदारनाथ मंदिर तीन ओर से केदारनाथ, खर्चकुंड और भरतकुंड पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसके अलावा यहां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी 5 नदियों का संगम भी है। जिनमें से अब सिर्फ अलकनंदा और मंदाकिनी ही मौजूद हैं। सर्दियों में मंदिर पूरी तरह से बर्फ से ढ़क जाता है उस दौरान इसके कपाट बंद कर दिए जाते हैं और बैशाखी बाद खोले जाते हैं।

केदारनाथ का इतिहास
नर और नारायण की तपस्या का फल
हिंदुओं के प्रसिद्ध चार धामों में से दो केदारनाथ और बद्रीनाथ उत्तराखंड में ही हैं। पुरानी कथानुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण तपस्या कर रहे थे। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिया और उनके कहे अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं बसने का वर भी प्रदान किया।

पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए थे भगवान शिव
महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद लेना चाहते थे। दर्शन के लिए वो काशी गए लेकिन भगवान शिव उनसे नाराज थे इसलिए वो अंतर्ध्यान होकर केदार जा बसे। पांडव उनके आशीर्वाद के लिए केदार तक पहुंच गए। तब भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर पशुओं में शामिल हो गए। पांडवों को इस बात का संदेह हो गया था जिसके बाद भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए। बाकी पशु तो आसानी से निकल गए लेकिन शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ को पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ़ शक्ति से प्रसन्न हो गए। और पांडवों को दर्शन देकर उन्हें पाप से मुक्त कर दिया। तब से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

मंदिर की बनावट
समुद्र तल से लगभग 3584मीटर ऊंचा केदारनाथ मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। मंदिर को 6 फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बनाया गया है। ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ मंदिर 100 साल पुराना है। मंदिर दो भागों गर्भगृह और मंडप में बंटा हुआ है। कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों से बना हुआ ये मंदिर आज भी वैसा ही है। मंदिर के मुख्य द्वारा पर नंदी बैल विराजमान हैं। मंदिर की दीवारों पर पौराणिक कथाओं और चित्रों को देखा जा सकता है।
छह माह तक जलता रहता है दीपक
मंदिर के कपाट खुलने का समय : दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वैसी ही साफ-सफाई मिलती है जैसे छोड़कर गए थे।
मंदिर के खुलने और बंद होने का समय
वैसे तो केदारनाथ मंदिर सुबह 4 बजे ही खुल जाता है लेकिन दर्शन 6 बजे से शुरू होता है। दोपहर 3 बजे से 5 बजे तक विशेष पूजा के लिए मंदिर का द्वार बंद रखा जाता है। पंचमुखी भगवान शिव का साज-श्रृंगार करके 7.30 बजे से 8.30 बजे तक आरती होती है। 9 बजे मंदिर बंद हो जाता है।
कपाट खुलने और बंद होने का समय
दीपावली के दूसरे दिन मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। पूरे 6 महीने बाद मई में इसके कपाट खोले जाते हैं। उस दौरान केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को पहाड़ के नीचे ऊखीमठ ले जाकर वहां इनकी पूजा की जाती है।

कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग- जॉलीग्रांट एयरपोर्ट यहां का सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है। एयरपोर्ट से टैक्सी अवेलेबल रहती हैं जिससे आप गौरी कुंड तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग- वैसे तो ऋषिकेश यहां का नज़दीकी रेलवे स्टेशन है लेकिन आप हरिद्वार, काठगोदाम और कोटद्वार पहुंचकर भी केदारनाथ तक पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग- उत्तराखंड और बाकी दूसरी जगहों से आप आसानी से गौरीकुंड तक पहुंच सकते हैं। इसके बाद केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए कुछ दूर का ट्रैक करना पड़ता है। चमोली, हरिद्वार, ऋषिकेश, टिहरी, श्रीनगर और देहरादून पहुंचकर भी यहां तक पहुंचा जा सकता है।