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सात सुनहरी पहाड़ियों से घिरे महाराष्ट्र की यह जगह समेटे हुए है अनोखा इतिहास

कृष्णा और वैणा दो शांत नदियों की बांहों में सिमटा। सात सुनहरी पहाडि़यों की छांव में सुस्ताता और महानगर की हलचल से दूर बसा है महाराष्ट्र का सतारा शहर। चलते हैं सतारा के दिलचस्प सफर पर..

By Priyanka SinghEdited By: Updated: Sun, 13 Jan 2019 06:00 AM (IST)
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सात सुनहरी पहाड़ियों से घिरे महाराष्ट्र की यह जगह समेटे हुए है अनोखा इतिहास
सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला, सघन जंगल, फूलों की घाटी, किले, जलप्रपात, घाट, रंग-बिरंगे पंछी, तितलियां, सजीले बैल, दूध की धार बहाती गायें, दूर-दूर तक फैले गन्ने के खेत, आकाश की हद तक पहुंचते ज्वार-बाजरे के सिट्टे, सदाबहार मौसम, संदली हवा में केसरी ध्वज को हाथ में थामे स्वच्छ -सुंदर सतारा। इस शहर को देखना जैसे सातारा फोटो एलबम में लगे पिक्चर पोस्ट कार्ड को देखना हो। फिलहाल साढ़े चार लाख की आबादी वाले इस शहर को 17वीं शताब्दी में शाहू जी महाराज ने बसाया था। जो वीर छत्रपति शिवाजी के पौत्र, वीर संभा जी के पुत्र और मराठा साम्राज्य के संस्थापक भी थे। यह शहर 'शूरवीरों की धरती' भी कहलाता है। इसके इतिहास की गौरव गाथा सुनाती हैं सतारा में बने दुर्ग की दीवारें, जो आज भी खड़ी हैं सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला की टेक लेकर। महाराष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति को सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला ने अपनी घेराबंदी में सहेज कर रखा हुआ है। स्त्रियां यहां नऊवारी साडि़यां और पैठणी में सजी-धजी, बालों में फूलों की वेणी, माथे पर कुमकुम और चंद्रकोर लगाए मिल जाएंगी। पुरुष सफेद कुर्ता-पायजामा और नेहरू टोपी लगाए दिखते हैं। घरों के आंगन रंगोली से सजे हुए होते हैं। कंदील और तुलसी-चौरा यहां घर-घर में आपको दिख जाएंगे।

ग्रामीण संस्कृति की रौनक

सतारा निवासियों को सतारा के स्वच्छ व हरा-भरा होने पर नाज है। महानगरों के मुकाबले प्रदूषण यहां न के बराबर है। गन्ने के लहलहाते खेतों से सजी सतारा की धरती अपने सदाबहार हरे रंग में रंगी रहती है वर्ष भर। कहीं मटकी, मक्का, ज्वार, बाजरा, आलू, मूंगफली, चावल, गेहूं, चना, मूंग, हल्दी, अदरक, अनार की खेती होती है यहां। यहां की लाल- काली मिट्टी ऐसी है कि सब कुछ उगा लेती है। यहां हर बीज फल जाता है, बस आप हिमाचल के सेब की बात न कर बैठिएगा, वह नहीं उगाता है पठार।' फलटण से सतारा जाते हुए सर्पीली सड़कों के आर-पार बने खेतों में गन्ना और मक्का साथ-साथ उगे हुए ऐसे लगते हैं, जैसे किसान ने आते-जाते राहगीरों के लिए मक्के की रोटी पर गुड़ की ढेली धर कर रख दी हो। सतारा के बैल आप देखेंगे तो प्रेमचंद की कहानी 'दो बैलों की कथा' के हीरा-मोती की याद सजीव हो उठेगी। यहां इन्हें प्रेम से सरजा-राजा की जोड़ी के नाम से पुकारा जाता है। ये बैल गोरे-चिट्टे, ऊंची कद-काठी के होते हैं। केसरी रंग में रंगे सींगो वाले ये ऐसे लगते हैं, जैसे केसरी पगड़ी पहने हुए पंजाब के मक्खनी जाट हों। इनके सींग बहुत ही आकर्षक होते हैं। वे कहने भर के लिए ही सींग हैं, दरअसल ये म्यान में रखी हुई धारदार तलवारें लगती हैं।

इतिहास पुर्नजीवित हो उठता है

नैसर्गिक सौंदर्य को अपनी आंखों में बसाने के अतिरिक्त सतारा के स्वर्णिम इतिहास की घटनाओं को पुनर्जीवित करने के अनुभव का नाम ही सतारा की यात्रा है। सतारा जिला निवासी अमोल देशमुख के शब्दों में आप इसे 'स्टडी-टूर' कह सकते हैं। मराठा इतिहास के पन्ने जब भी पलटे जाएंगे, सतारा के सुनहरे पन्ने हमारे हाथ जरूर लगेंगे, क्योंकि मराठा साम्राज्य का इतिहास यहीं से शुरू होता है, जहां सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला के पीछे से हर सुबह सूर्य अश्र्व पर सवार होकर दौड़ा चला आता है। सतारा का वह सूर्य हाथ में केसरी ध्वज लहराते हुए कोई और नहीं, छत्रपति वीर शिवाजी महाराज भोंसले ही उसका नाम है।

सतारा था कभी सप्ततारा

इस शहर से मिलकर आप जानेंगे कि तारा आकाश में ही नहीं उगता। दरअसल, तारा मराठी भाषा में पहाड़ी को भी कहते हैं। सतारा नाम इसे सात पहाडि़यों से घिरा होने के कारण मिला है। सतारा को कभी 'सप्ततारा' भी पुकारा जाता था। इन सात पहाडि़यों के नाम हैं-अजिंक्यतारा, सज्जनगढ़, यवतेश्र्वर, जरंडेश्र्वर, नकदीचा डोंगर, कितलीच डोंगर, पेध्या और भैरोबा जिन पर किले और मंदिर बने हुए हैं। ये अपने आप में मुकम्मल कविता और कहानियां हैं। वैसे, यहां इसे सतारा नहीं सातारा कहा जाता है।

शहर का दिल है यह राजप्रासाद

सातारा में आज छत्रपति शिवाजी महाराज की तेरहवीं पीढ़ी राज कर रही है। छत्रपति उदयन राजे भोंसले संपूर्ण सतारा शहर में ही नहीं, पूरे महाराष्ट्र में लोकप्रिय नायक हैं। भव्य व्यक्तित्व के मालिक उदयन राजे भोंसले का निवास स्थान सातारा का राजमहल भी उनके जैसा भव्य है, जिसकी स्थापना का समय लगभग 200 वर्ष पुराना है। पीले रंग से रंगा यह महल जैसे धरती पर उगा स्वर्णिम सूर्य हो। महल पर की गई महीन नक्काशी का काम जैसे इस सूर्य की प्रखर किरणें हों। इस राजवाड़े के एक हिस्से में मां भवानी का भी मंदिर है। कहते हैं शिवाजी इस मंदिर में भवानी मां को माथा टेकने आया करते थे। इस राजवाड़े के मुख्य द्वार पर संगमरमर के बने दो शेर गली की ओर देखते हुए इस तरह से बिठा रखे हैं कि उनकी दो जोड़ी नजरों से बच कर कोई तितली भी राजप्रासाद में प्रवेश नहीं कर पाए। दरबार हॉल के बाहर रखे राजसी सोफा-सेट को देखेंगे तो वह अनगिनत ऐतिहासिक कहानियां सुनाने को तत्पर दिखाई देगा। ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इस राजप्रासाद को सातारा शहर ने प्रेम से संभाल कर रखा हुआ है, इसे आप 'हार्ट ऑफ द सिटी' भी कहा जाता है। इसे अब राजवाड़ा प्रताप सिंह हाईस्कूल विद्यालय में परिवर्तित कर दिया गया है।

 

शहर अनमोल रत्‍‌न हैं ये

गर्व की बात है कि संभाजी को विश्र्व के प्रथम कम उम्र का साहित्यकार माना जाता है। उन्होंने 14 वर्ष की आयु तक 'नायिका भेद', 'सातशतक', 'नखशिख' ग्रंथों की रचना कर ली थी। जिस तेजी से उनकी कलम चलती थी, उसी तेजी से उन्होंने तलवार भी चलाई। 'हिन्दू पद पादशाही' के संस्थापक गुरु रामदासजी का नाम भी भारत के साधु-संतों व विद्वत समाज में सुविख्यात है। उन्होंने 'दास-बोध' नामक ग्रंथ की रचना की। संपूर्ण भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने 1100 मठ और अखाड़े स्थापित किए। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर भी सतारा में ही पले-बढ़े और लॉ की प्रैक्टिस की।

ग्रेट वॉल ऑफ सतारा

सतारा अजिंक्यतारा पठार के कदमों तले बसा हुआ शहर है। इस पठार की ओर जाती ऊंची-नीची सड़क पर जब आप चलते हैं, सामने दिखता यह पठार योगमुद्रा में बैठे किसी साधू-सा नजर आता है, जिसके शीर्ष पर सतारा का ऊंचा आकाश टिका हुआ है। आप इस पठार को 'ग्रेट वॉल ऑफ सतारा' भी कह सकते हैं, जिसका सुरक्षित सहारा लेकर यह शहर बसा हुआ है। इस पठार की ओर जाती हुई सड़क ट्रैकिंग के लिए बहुत खास है।

कैसे जाएं

सातारा शहर तक पहुंचने के लिए विमान, रेल-बस की सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं। सातारा के लिए सबसे नजदीक एयरपोर्ट पुणे में है जहां से शहर की दूरी 120 किमी है। मुंबई से यह 243 किमी पर है। ठहरने और रहने की यहां हर प्रकार की सुविधाएं मिल जाती हैं। बजट होटल से लेकर थ्री स्टार होटल हैं शहर में। सर्दी के मौसम में और बारिश के मौसम में आप खास लुत्फ उठा सकते हैं आप इस शहर में।