Mahoba Tourism: बुंदेलखंडी वीरता की कहानी और आस्था-अध्यात्म संग अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य
देवी मंदिर आल्हा मां शारदा मां चंद्रिका देवी के उपासक थे। शहर में बड़ी चंद्रिका छोटी चंद्रिका का विशाल मंदिर है। किवदंती है कि प्रतिमाएं पत्थर में स्वत प्रकट हुई हैं। बड़ी चंद्रिका देवी मंदिर जहां आल्हा 12 फीट ऊंचे ज्योति स्तंभ पर दीप प्रज्ज्वलित करते थे अभी भी है।
जागरण संवाददाता, महोबा : प्रकृति का सौंदर्य... आस्था-अध्यात्म.. वास्तुकला के साथ ही संस्कृति और वीरता से भरा इतिहास। इतना सब अगर एक साथ एक ही जगह देखना और जानना हो तो विविधताओं से भरी वीरभूमि महोबा में आपका स्वागत है। यहां के कण-कण में वीर आल्हा-ऊदल की यादें हैं तो जहां-तहां अद्भुत कारीगरी की झलक विशाल मंदिर, नक्काशीदार इमारतों में दिखती है। दो हजार फीट ऊंचाई लिए गोरखगिरि वन गमन के दौरान प्रभु श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के यहां निवास करने की निशानी लिए है तो यहीं सिद्ध बाबा गुरु गोरखनाथ की तपोस्थली भी है। मुख्यालय से पश्चिम में बसा बुंदेलखंड का कश्मीर चरखारी अपने सप्तसरोवर के कारण दर्शनीय है। यहां भांति-भांति के तीज त्योहार और यहां की संस्कृतियां आपस में मेलजोल बढ़ाती हैं।
गोरखगिरी: महोबा में आल्हा-ऊदल की वीरता की गाथाएं उनकी विरासतों में आज भी जिंदा हैं। उससे भी पुराने इतिहास और परंपराओं की यादें यहां के गोरखगिरि पर्वत में परिलक्षित होती हैं। गोरखगिरी पश्चिम दिशा में मदनसागर सरोवर को सौंदर्य प्रदत्त करने वाला 270 एकड़ के करीब विस्तृत विंध्य पर्वत श्रृंखला का ही एक हिस्सा है। गिरि की गोद में दो पोखर, उजियारी-अंधियारी कंदराएं हैं। यहीं पर प्रभु श्रीराम वनवास के दौरान कुछ समय के लिए ठहरे थे। यहां सीता रसोई के रूप में इसके निशान मिलते हैं। सिद्ध आश्रम में सेवा करने वाले तारा पाटकार बताते हैं कि बुंदेलखंड में जिस समय भयंकर सूखा होता है, उस समय भी पर्वत और सिद्ध बाबा मंदिर के आसपास हरे भरे पौधे लहलहाते रहते हैं।
ऐसे पहुंचे : कानपुर-सागर हाईवे से पश्चिम करीब आधा किमी दूर प्राइवेट वाहन से जा सकते हैं। गोरखगिरी पर पहुंचने के लिए पैदल जाना पड़ेगा।
शिवतांडव: गोरखगिरि की सैर पर जाने से पूर्व पश्चिमी तलहटी में व महोबा-छतरपुर बाईपास मार्ग पर बाईं ओर लगभग 150 मीटर की दूरी पर शिवतांडव की प्रतिमा है। भगवान शंकर की रौद्र रूप में नृत्य करती प्रतिमा लगभग 15 गुणे 14 वर्ग फीट की है। यह आठवें चंदेल नरेश धंग के समयाकालीन है।
खखरामठ: शहर के पश्चिम में मदनसागर की लहरों के बीच खखरामठ है। 'महोबा का इतिहास' पुस्तक के अनुसार यहां आल्हा-ऊदल का मंत्रणा कक्ष था। यहां पर पत्थर के विशाल चार हाथी बने हैं। ऊंचे मंदिर के आकार का बना मठ दूर से टापू सा नजर आता है। यहां तक पहुंचने के लिए तालाब पर पुल बना है।
सूर्य मंदिर: शहर के दक्षिण रहेलिया गांव में सूर्य मंदिर चंदेल शासक राहिल देव बर्मन ने करीब 850वीं सदी में बनवाया था। 12वीं सदी में कुतुबुद्दीन एबक ने इसका कुछ हिस्सा गिराया था। पास में रहेलिया सागर भी है। यह कोर्णाक के सूर्य मंदिर की हूबहू नकल है। यह महोबा शहर से तीन किलो मीटर दूर पश्चिम दिशा में रहेलिया सहित तीन गांवों के बीच में है। यहां तक जाने के लिए सड़क बनी है। सूर्य मंदिर से सौ मीटर पहले सूर्य कुंड बना है, इसमें तीस फीट गहरा पानी है, नीचे तक जाने के लिए सीढ़ी बनी है।
देवी मंदिर: किवदंती के अनुसार पहले यह छूने पर हिलता था, बाद में इसके चारो ओर टाइल्स और प्लास्टर करा दिया गया। शहर में मनिया देव का मंदिर है। पास में कीरतसागर है, जहां से एक किलोमीटर दूर करिया पठवा गुफा में कजली युद्ध के समय वीर लाखन ने शिवलिंग की स्थापना की थी, यह अभी भी है। शहर के पश्चिम में वनखंडेश्वर मंदिर और भटियाना मोहाल में चकौटा देवी मंदिर है, जो चंदेलों के शासन के समय का है।
चरखारी के सप्त सरोवर: चरखारी के सप्त सरोखर मलखान जू देव महाराज ने बनवाए थे। मनोरम छटा के कारण ही चरखारी को मिनी कश्मीर का दर्जा दिया गया। मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर चरखारी के एक किलोमीटर पहले से ही सुंदर तालाब नजर आने लगते हैं। पहला तालाब है गोला तालाब। यह चारों ओर से गोल है। सबसे पहले बस्ती और बारिश का पानी इसी तालाब में आता है। इसके बाद पानी कोठी तालाब में चला जाता है। इस तालाब के पास राजाओं की कोठी बनी थी, इसलिए इसका नाम कोठी तालाब पड़ा। फिर बंसिया तालाब में पानी भरता है। इसका नाम भगवान गोवर्धन का मंदिर होने के कारण पड़ा। फिर जय सागर तालाब है, इसे राजा जयसिंह ने खोदवाया था। यहां से पानी मलखान सागर में जाता है और फिर रपट तलैया में। रपट तलैया से सारा पानी आगे रतन सागर में जाता है। रतन सागर को राजा रतन सिंह खोदवाया था। प्रत्येक तालाब में चेकडैम हैं। पूरा तालाब में भर जाने के बाद चेकडैम के माध्यम से साफ होकर पानी दूसरे तालाब में जाता है। वहां से अगले तालाब में। सबसे अंत में रतन सागर में पानी जाने से पहले काफी हद तक साफ हो चुका होता है। सातों तालाब का पानी चार से पांच साल तक भी बारिश न हो तो भी सूखता नहीं। पानी की गहराई और लंबाई चौड़ाई का मानक बेहत संतुलित दिखाई देता है।
प्रसिद्ध खानपान
इतिहासकार डा. एलसी अनुरागी के मुताबिक आल्हा का गान-देशावरी पान महोबा की शान है। इसके अलावा बुंदेलखंड में भोजन में चना की दाल, रोटी, भटा (बैंगन), कद्दू अधिक खाया जाता है।
माड़- ग्रामीण क्षेत्र में माड़ पसंद किया जाता है, यह बेसन से चिल्ला की तरह तवा पर घी से तला जाता है।
डुबरी- महुआ की सब्जी बनती है, इसे डुबरी कहते हैं।
सन्नाटा- परंपरानुसार सन्नाटा शादी में बरातियों को दिया जाता है। मट्ठा में काली तिली, लाल और हरी मिर्च पीस कर मिलाते हैं। यह बहुत तीखा होता है, ग्रामीण क्षेत्र में पसंद किया जाता है।
पारंपरिक गीत संगीत: ढुमराई नृत्य- महोबा में शादी समारोह के समय पुरुष कलाकार स्त्री का रूप धर कर नृत्य करता है। कलाकार 65 वर्षीय पूरन मास्टर बताते हैं, यह कला पूरे बुंदेलखंड में है।
राई नृत्य- इसमें स्त्री व पुरुष तेज-तेज दौड़कर नृत्य करते हैं। यह भी शादी समारोह व होली में होता है। 30 वर्षीय भूरा कलाकार के अनुसार इस कला को और मान मिलना चाहिए।
दीवारी नृत्य- यह केवल दीपावली पर होता है जो एक माह तक चलता है। इसमें लाठी लेकर युवा-वृद्ध नृत्य करते हैं।