भारत के सबसे पुराने मुंडेश्वरी मंदिर आकर देखें मां दुर्गा के एक से बढ़कर एक चमत्कार
मुंडेश्वरी का मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर शक्ति और शिव को समर्पित है। कैमूर पर्वत श्रेणी की पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
By Priyanka SinghEdited By: Updated: Thu, 31 Jan 2019 03:19 PM (IST)
मां मुंडेश्वरी का मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर कई विद्वानों का मानना है कि यह मंदिर कुषाण काल से भी यहां स्थित है। मुंडेश्वरी मंदिर मां दुर्गा और भगवान शिव को समर्पित है जो कैमूर पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से मिले शिलालेखों के आधार पर माना जाता है कि मंदिर काफी समय पहले से है।
मंदिर में देखने को मिलता मां का चमत्कार
नवरात्रि के दौरान बिहार के कैमूर जिले के प्रसिद्ध मुंडेश्वरी मंदिर में बलि चढ़ाने की परंपरा काफी पुरानी है। देवी मां से मांगी गई मन्नत जब पूरी हो जाती है तो भक्त यहां बकरे की बलि देते हैं, लेकिन खास बात यह है कि बिना बकरे की जान लिए और बिना खून बहाए ही यहां बलि दी जाती है।
परंपरा के अनुसार मंदिर के पुजारी बलि के बकरे को देवी मां की प्रतिमा के सामने खड़ा कर देते हैं और देवी मां के चरणों में अक्षत अर्पण कर उसी अक्षत को बलि के उस बकरे पर फेंकते हैं। अक्षत फेंकने के बाद बकरा बेहोश हो जाता है और जब बकरा होश में आता है तो उसे लोग अपने घर ले जाते हैं। यहां बलि देने की यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। यहां मां ने किया था अत्याचारी असुर मुंड का संहार
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार माता भगवती ने यहीं अत्याचारी असुर मुंड का वध किया था। इसी से देवी का नाम मुंडेश्वरी पड़ा। मुंडेश्वरी मंदिर पंवरा पहाड़ी पर स्थित है। श्रद्धालुओं के अनुसार मां मुंडेश्वरी से सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। शारदीय और चैत्र नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है।
नवरात्रि के दौरान बिहार के कैमूर जिले के प्रसिद्ध मुंडेश्वरी मंदिर में बलि चढ़ाने की परंपरा काफी पुरानी है। देवी मां से मांगी गई मन्नत जब पूरी हो जाती है तो भक्त यहां बकरे की बलि देते हैं, लेकिन खास बात यह है कि बिना बकरे की जान लिए और बिना खून बहाए ही यहां बलि दी जाती है।
परंपरा के अनुसार मंदिर के पुजारी बलि के बकरे को देवी मां की प्रतिमा के सामने खड़ा कर देते हैं और देवी मां के चरणों में अक्षत अर्पण कर उसी अक्षत को बलि के उस बकरे पर फेंकते हैं। अक्षत फेंकने के बाद बकरा बेहोश हो जाता है और जब बकरा होश में आता है तो उसे लोग अपने घर ले जाते हैं। यहां बलि देने की यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। यहां मां ने किया था अत्याचारी असुर मुंड का संहार
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार माता भगवती ने यहीं अत्याचारी असुर मुंड का वध किया था। इसी से देवी का नाम मुंडेश्वरी पड़ा। मुंडेश्वरी मंदिर पंवरा पहाड़ी पर स्थित है। श्रद्धालुओं के अनुसार मां मुंडेश्वरी से सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। शारदीय और चैत्र नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है।
यहां से पहुंचे मुंडेश्वरी धाम
मुंडेश्वरी धाम तक पहुंचने के लिए पहाड़ी को काट कर सीढि़यों व रेलिंग युक्त सड़क बनाई गई है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भभुआ रोड स्टेशन से उतर कर सवारी वाहन से भभुआ मुख्यालय पहुंचने के बाद भगवानपुर उसके बाद मुंडेश्वरी धाम जाने का रास्ता है। इसके अलावा भभुआ - चैनपुर पथ पर मोकरी गेट से दक्षिण होकर मुंडेश्वरी धाम मंदिर पहुंचने का रास्ता है।
मुंडेश्वरी धाम तक पहुंचने के लिए पहाड़ी को काट कर सीढि़यों व रेलिंग युक्त सड़क बनाई गई है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भभुआ रोड स्टेशन से उतर कर सवारी वाहन से भभुआ मुख्यालय पहुंचने के बाद भगवानपुर उसके बाद मुंडेश्वरी धाम जाने का रास्ता है। इसके अलावा भभुआ - चैनपुर पथ पर मोकरी गेट से दक्षिण होकर मुंडेश्वरी धाम मंदिर पहुंचने का रास्ता है।