हीरे सा चमकता गुजरात का खूबसूरत शहर 'सूरत'
सूरत शहर की आज जो सूरत है, इसमें बहुत सारी सभ्यताओं का योगदान रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की हालिया रिपोर्ट में इसे दुनिया के सबसे अधिक जीडीपी वाले शहरों में टॉप पर रखा गया है।
तीसरा सबसे स्वच्छ शहर
यह देश का तीसरा सबसे साफ-सुथरा शहर माना जाता है। इसकी झोली में पुरस्कारों की कोई कमी नही है। सूरत शहर की झोली में 76 सम्मान है। हाल ही में स्मार्ट सिटी अभियान के अंतर्गत सूरत को बेस्ट सिटी सम्मान मिला है। यह एक स्मार्ट सिटी यूं ही नहीं है। इस शहर को 'फ्लाइओवर का शहर' भी कहा जाता है।
साफ पानी से लेकर, लोकल ट्रांसपोर्ट, नागरिक सुरक्षा तक सब कुछ बड़ा चाक-चौबंद है यहां। पर प्रगति का यह सफर किसी परीकथा-सा है। अगर इसके इतिहास में झांकें तो एक ऐसा समय भी था, जब सूरत में भीषण विनाशलीला हुई। इस शहर पर पुर्तगालियों, डचों और अंग्रेजों के साथ-साथ मराठा राजा शिवाजी ने भी इसपर आक्रमण किया था। साल 1790-91 में यहां महामारी ऐसी फैली कि सूरत में एक लाख लोगों की मौत हो गई थी। साल 1837 की भयानक आग और बाढ़ ने सूरत की कई इमारतों को नष्ट कर दिया था। इतना ही नहीं, हाल ही में यानी 1994 में भारी बारिश और बंद नालियों की वजह से सूरत में भयंकर बाढ़ आई थी। समय रहते गंदे कचरे और मरे हुए जानवरों को नहीं हटाए जाने से यहां भयंकर प्लेग फैला था। इसने प्रशासन को शहर की सूरत बदलने की प्रेरणा दी। नगरपालिका ही नहीं, बल्कि सूरत के लोगों ने भी इसमें खासा योगदान दिया। आज सूरत म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन को बड़ा जागरूक सरकारी संगठन माना जाता है।
स्मार्ट हेरिटेज वॉक
सूरत एक स्मार्ट सिटी है, इसलिए यहां घूमने का तरीका भी काफी स्मार्ट है। अगर आप इस आधुनिक सिटी को इसके अतीत के साथ जोड़कर देखना चाहते हैं तो इसका बंदोबस्त भी सूरत म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने कर दिया है। आपकी सुविधा के लिए एक सूरत हेरिटेज वॉक एप है, जिसे आप डाउनलोड कर, बिना किसी की सहायता के सूरत की हेरिटेज से रूबरू हो सकते हैं। मात्र 2.5 किलोमीटर के दायरे में फैली इस हेरिटेज वॉक में आप 25 ऐतिहासिक महत्व की संरचनाओं को एप में बने इंटरैक्टिव मैप और जानकारी की सहायता से देख सकते हैं। ढाई किलोमीटर की यह हेरिटेज वॉक शुरू होती है इंग्लिश सेमेंट्री से और डच व आर्मेनियन सेमेंट्री होते हुए अंत में सूरत फोर्ट पर खत्म होती है। डायमंड कटिंग से रूबरू
सूरत शहर के आज को समझने के लिए इस शहर के कल को समझना जरूरी है। इसके लिए सरदार वल्लभभाई पटेल म्यूजियम से बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती है। सूरत शहर में बनी इस अत्याधुनिक बिल्डिंग की नींव तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रखी थी। इस तीन मंजिली इमारत में अलग-अलग तल पर गैलरीज बनाई गई हैं। इसके ग्राउंड फ्लोर पर साइंस सेंटर शोकेस, 3डी थियेटर है। पहली मंजिल पर फन साइंस एग्जीबिट्स हैं, दूसरी मंजिल पर डाइमंड गैलरी, टेक्सटाइल गैलरी आदि मौजूद हैं। सूरत आकर डायमंड के बारे में जानने की काफी जिज्ञासा होती है। आखिर दुनिया का 90 प्रतिशत डायमंड यहीं कटिंग और पॉलिश के लिए आता है। आप यहां की सदियों पुरानी कला से रूबरू होना चाहते हैं तो यह और कहीं नहीं, इसी म्यूजियम में मिलेगा।
सूरत शहर में मनोरंजन के सबसे प्राचीन साधन के रूप में विख्यात गोपी तालाब साल 1510 में उस समय के मुगल गवर्नर मलिक गोपी द्वारा तैयार कराया गया। यह शहर की पानी की आपूर्ति के रूप में एक जल संरचना के तौर पर बनवाया गया था। लंबे समय तक यह संरचना नगर को जलापूर्ति करती रही, लेकिन कालांतर में अन्य तालाबों की तरह इसकी हालत भी बिगड़ने लगी। हालांकि यहां के प्रशासनिक अधिकारियों और आम जनता ने मिलकर इस जगह का भी जीर्णोद्धार किया और आज यह शहर का मुख्य पिकनिक स्पॉट माना जाता है। अब यह एक खूबसूरत तालाब है, जहां पर मनोरंजन के अनेक साधन मौजूद हैं। जैसे यहां थीम पार्क है, गेमिंग जोन हैं, जहां आकर बच्चे और युवा आनंदित होते हैं।
आसपास घूमने वाली जगहें
ऐतिहासिक दांडी और बारदोली
बारदोली
सूरत से बारदोली 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 1928 में बारदोली सत्याग्रह की शुरुआत यहीं से हुई थी। उस आंदोलन की कमान सरदार वल्लभ भाई पटेल ने संभाली थी। 1925 में बारदोली में बाढ़ और महामारी से किसानों का बहुत नुक़सान हुआ था। फसलें खराब हुई थीं। उस पर ब्रिटिश हुकूमत ने टैक्स 30 प्रतिशत और बढ़ा दिया था, जिसके कारण इस क्षेत्र के किसान बेहाल थे। इसी संघर्ष ने आगे चलकर बारदोली सत्याग्रह का रूप लिया। बारदोली में सरदार पटेल नेशनल म्यूजियम है, जिसमें उस समय के संघर्ष से जुड़े बेहद क़ीमती दस्तावेजों को सुरक्षित रखा गया है। यहां एक स्वराज आश्रम है, जिसकी स्थापना सरदार पटेल ने 1928 में की थी।
सूरत शहर से दांडी 31 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस गांव में महात्मा गांधी के दांडी मार्च की याद में बापू की एक प्रतिमा भी लगी हुई है, जहां महात्मा गांधी नमक का क़ानून तोड़ते नजऱ आते हैं। यहां 'नमक सत्याग्रह स्मारक' बनाया गया है। हाल ही में इसका उद्घाटन हुआ है। दांडी नवसारी जिले के जलालपुर तालुका में पड़ने वाला एक छोटा-सा गांव है, लेकिन इसका नाम महात्मा गांधी के नमक आंदोलन के कारण इतिहास में अमर हो चुका है। जब महात्मा गांधी ने 1930 में अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था और नमक कानून तोड़ा था, तब दांडी मार्च यहीं से निकाला गया।
सूरत शहर को तापी नदी एक वरदान स्वरूप मिली है। इससे पूरा शहर बहुत स्नेह करता है। सूरत म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर यहां तापी रिवर फ्रंट का विकास किया है। 133 एकड़ में फैला यह रिवर फ्रंट सूरतवासियों के लिए एक बहेतरीन सैरगाह के रूप में विकसित हुआ है। शाम को यहां का नज़ारा पुलकित करने वाला होता है। सूरत जाएं तो यहां जाना न भूलें। डच सेमेंट्री: स्वर्णिम अतीत की निशानियां
कटरगाम दरवाजा इलाके में पडऩे वाली डच सेमेंट्री सूरत की खास दर्शनीय स्मारकों में से एक है। यहां अनेक समाधियां और गुंबद हैं, जो खामोशी से गुजरे हुए डच जमाने की याद दिलाते हैं। यहीं इंग्लिश सेमेंट्री में अंग्रेज अफसरों की समाधियां बनी हुई हैं। इंडो-गोथिक स्टाइल की संरचनाएं अपने स्वर्णिम अतीत की बेशकीमती निशानियां हैं। अतीश बहरामः आकर्षक पारसी मंदिर
सूरत की संस्कृति में पारसियों का भी बड़ा योगदान रहा है। इसकी झलक आप पा सकते हैं यहां के भगोल इलाके में स्थित पारसी आतिश मंदिर में। यह दुनिया के नौ पारसी आतिश मंदिरों में से एक है। हालांकि इस सुंदर इमारत में गैरपारसी लोगों का प्रवेश वर्जित है। बाहर से ही वे इस इमारत को निहार सकते हैं।
भारत का मैनचेस्टर
सूरत डायमंड कटिंग और पॉलिशिंग के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। एक अनुमान के अनुसार, दुनिया के 90 प्रतिशत हीरों की पॉलिशिंग यहीं पर होती है।