मैसूर महल की खूबसूरती और भव्यता को देखने देश-विदेश के पर्यटकों की लगती है भीड़
मैसूर महल के अंदर की भव्यता तो बाद में बाहर का ही नज़ारा इतना खूबसूरत होता है जिसे देखने के बाद महल का दीदार किए बिना लौटना असंभव सा है।
By Priyanka SinghEdited By: Updated: Tue, 30 Apr 2019 02:04 PM (IST)
अंबा विलास के नाम से मशहूर मैसूर महल भारत की उन जगहों में शामिल है जहां पर्यटकों की सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। कर्नाटक स्थित इस महल में मैसूर का शाही परिवार रहता है। महल के अंदर की भव्यता तो बाद में, बाहर का ही नज़ारा इतना खूबसूरत होता है जिसे देखने के बाद महल का दीदार किए बिना लौटना असंभव सा है। वैसे मैसूर महल की भव्य खूबसूरती को देखने के लिए दिन नहीं रात में जाने का प्लान बनाएं जब जगमग लाइट्स के साथ इसकी खूबसूरती चरम पर होती है।
मैसूर महल की बनावटआप इस महल में गोंबे थोटी या डॉल्स पवेलियन से प्रवेश कर सकते हैं। इस प्रवेश द्वार पर 19वीं और 20वीं शताब्दी की बनी गुड़ियों का एक समूह रखा गया है। इस महल में इंडो-सारासेनिक, द्रविडियन, रोमन और ओरिएंटल शैली का वास्तुशिल्प देखने को मिलता है। इस तीन तल्ले महल के निर्माण में निर्माण के लिए भूरे ग्रेनाइट, जिसमें तीन गुलाबी संगमरमर के गुंबद होते हैं, का सहारा लिया गया है। महल के साथ-साथ यहां 44.2 मीटर ऊंचा एक पांच तल्ला टावर भी है, जिसके गुंबद को सोने से बनाया गया है।
इसके अलावा यहां एक लकड़ी का बना हाथी हौदा है, जिसे 81 किलो सोने से सजाया गया है। गोंबे थोटी के सामने दशहरा के मौके पर समारोह का समापन किया जाता है और 200 किलो के मुकुट को आम लोगों के लिए प्रदर्शित किया जाता है।
महल में आप उन कमरों को भी देख सकते हैं जिनमें शाही वस्त्र, छायाचित्र और गहने रखे गए हैं। साथ ही महल के दीवार को सिद्धलिंग स्वामी, राजा रविवर्मा और के. वेंकटप्पा के पेंटिंग्स से सजाया है। 14वीं से 20वीं शताब्दी के बीच बनाए गए मैसूर महल में 12 मंदिरें भी हैं, जिनमें अलग-अलग वास्तुशिल्पीय बनावट देखने को मिलती है।
जगनमोहन महल का शुमार शहर के सबसे पुराने भवनों में कया जाता है। अगर आप मैसूर में हैं तो यह महल महल घूमने की कोशिश जरूर करें। इस महल का निर्माण मैसूर के राजाओं द्वारा 1961 में किया गया था। 1897 में जब पुराना लकड़ी का महल आग में जलकर नष्ट हो गया तो मुख्य महल के निर्माण होने तक जगनमोहन महल शाही परिवारों का निवास स्थान भी रहा।
1902 में कृष्णराजा वुडेयार चतुर्थ ने महल को अपने कमान में ले लिया और इस मौके पर आयोजित एक समारोह में तत्कालीन वाइसराय और गवर्नर जेनरल ऑफ इंडिया लॉर्ड कजर्न ने भी शिरकत की थी। पर्यटक महल में शादी के पवेलियन को भी देख सकते हैं, जिसे कृष्णराजा वुडेयार चतुर्थ की शादी के दौरान बनवाया था। इस पवेलियन को दरबार हाल के नाम से भी जाना जाता है और इसकी प्रसिद्धी इस बात को लेकर है कि कृष्णराजा वुडेयार चतुर्थ यहां अपना जन्मदिन मनाया करते थे।
इस हॉल का प्रयोग संगीत उत्सव, नाटक और सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ मैसूर युनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह के लिए भी किया जाता था। आज इस महल का प्रयोग दशहरा त्योहार के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम और समारोह के लिए किया जाता है। महल में दो विशाल लकड़ी के दरवाजे हैं, जिसमें भगवान विष्णु के दसावतार की नक्काशी के साथ-साथ मैसूर के राजाओं की पेंटिंग और हस्तशिल्प बने हुए हैं।मैसूर राजमहल की दीवारों की पेंटिंग्स यहां की भव्यता दर्शाती हैं, इनमें सोने की परत चढ़ाई जाती है और इसमें गेसो तकनीक का इस्तेमाल होता है। इन पेंटिंग्स के माध्यम से आप बीते दिनों की सैर कर लेते हैं क्योंकि इनका चित्रण बड़ा ही सजीव है।
कैसे पहुंचे
हवाई मार्गमैसूर पैलेस घूमने के लिए अगर आप फ्लाइट से आने की सोच रहे हैं तो बैंगलौर इंटरनेशनल एयरपोर्ट सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है जहां से इसकी दूरी 170 किमी है।
रेल मार्ग ट्रेन से आ रहे हैं तो मैसूर तक की टिकट बुक कराएं। यहां से टैक्सी और बसों द्वारा आप आसानी से पैलेस तक पहुंचा जा सकता है।सड़क मार्ग केपेंमगौडा बस स्टेशन से यहां तक के लिए आपको आसानी से बस मिल जाएगी मैसूर तक के लिए।