श्रृंगेरी में है मां सरस्वती का सबसे पुराना मंदिर, यहां की यात्रा रहेगी हर तरह से खास
देवी सरस्वती के गिने-चुनें मंदिरों में शामिल श्रृंगेरी का शारदा मंदिर अपने अनोखे इतिहास और पूजा विधि के लिए जाना जाता है। जहां आप कभी भी दर्शन के लिए आ सकते हैं।
By Priyanka SinghEdited By: Updated: Mon, 13 Aug 2018 12:16 PM (IST)
श्रृंगेरी का शारदम्बा मंदिर, आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं सदी में बनाया गया था। मंदिर बहुत ही खूबसूरत है और यहां देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। श्रृंगेरी तुंगा नदी के तट पर बसा है जो हिंदुओं के जाने-माने तीर्थस्थलों में शामिल है और साथ ही उनके लिए भी जो आदि शंकराचार्य को पूजते हैं। मंदिर में दर्शन के लिए आप साल में कभी भी आ सकते हैं। यहां का मौसम हमेशा ही सुहाना रहता है।
मंदिर का स्थापना के पीछे का इतिहास
श्री शंकराचार्य अपने शिष्यों के साथ जब देश घूम रहे थे तब वो श्रृंगा गिरी पहुंचें। यहां महर्षि विभांदका और उनके पुत्र रिष्याश्रृंगा का आश्रम था। वहां पहुंचकर शंकराचार्य ने देखा कि एक कोबरा अपने फन फैलाकर एक गर्भवती मेढ़क की तपते सूरज से रक्षा कर रहा है। इस दृश्य को देखकर वो बहुत प्रभावित हुए। जिसके बाद उन्होंने और उनके साथ युवा स्त्री भारती के रूप में मौजूद देवी सरस्वती ने यहां रूकने का निश्चय किया। और श्रृंगेरी को शारदा पीठ के रूप में स्थापित करने का सोचा। भारत के अलग-अलग भागों में स्थित पांच मठ में से एक है श्रृंगेरी। ऐसा कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने यहां 12 वर्ष बिताए। और उसी दौरान मठ के आसपास 4 अन्य मंदिरों कालभैरव, दुर्गा, अंजनेया और काली मंदिर की स्थापना की।
पहले मंदिर के अंदर देवी सरस्वती की चंदन की मूर्ति थी बाद में यहां सोने की मूर्ति लगाई गई। कुछ समय बाद श्री भारती कृष्णा तीरथ और श्री विद्यारन्या ने मंदिर का पुर्निमाण कराया जिसमें टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है उसकी खूबसूरती दोगुनी करने के लिए। नवरात्रि और दशहरा के मौके पर यहां अलग ही तरह की रौनक देखने को मिलती है। 11 दिनों तक मनाई जाने वाली नवरात्रि में महानवमी वाले दिन खास तरह की पूजा होती है। चैत्र शुक्ल पूर्णिमा वाले दिन श्री शारदा मंदिर में विशेष पूजा, वैशाखी वाले दिन कृष्ण प्रतिपथ माहाभिषेकम और श्री शारदांबल, कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन दीपोत्सव, माघ शुक्ल पंचमी, ललित पंचमी के दिन जगद्गुरू द्वारा श्री शारादम्बा में विशेष पूजा होती है। माघ तृतिया में श्री शारदाम्बा रणोत्सव मनाया जाता है।
मंदिर का स्थापना के पीछे का इतिहास
श्री शंकराचार्य अपने शिष्यों के साथ जब देश घूम रहे थे तब वो श्रृंगा गिरी पहुंचें। यहां महर्षि विभांदका और उनके पुत्र रिष्याश्रृंगा का आश्रम था। वहां पहुंचकर शंकराचार्य ने देखा कि एक कोबरा अपने फन फैलाकर एक गर्भवती मेढ़क की तपते सूरज से रक्षा कर रहा है। इस दृश्य को देखकर वो बहुत प्रभावित हुए। जिसके बाद उन्होंने और उनके साथ युवा स्त्री भारती के रूप में मौजूद देवी सरस्वती ने यहां रूकने का निश्चय किया। और श्रृंगेरी को शारदा पीठ के रूप में स्थापित करने का सोचा। भारत के अलग-अलग भागों में स्थित पांच मठ में से एक है श्रृंगेरी। ऐसा कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने यहां 12 वर्ष बिताए। और उसी दौरान मठ के आसपास 4 अन्य मंदिरों कालभैरव, दुर्गा, अंजनेया और काली मंदिर की स्थापना की।
पहले मंदिर के अंदर देवी सरस्वती की चंदन की मूर्ति थी बाद में यहां सोने की मूर्ति लगाई गई। कुछ समय बाद श्री भारती कृष्णा तीरथ और श्री विद्यारन्या ने मंदिर का पुर्निमाण कराया जिसमें टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है उसकी खूबसूरती दोगुनी करने के लिए। नवरात्रि और दशहरा के मौके पर यहां अलग ही तरह की रौनक देखने को मिलती है। 11 दिनों तक मनाई जाने वाली नवरात्रि में महानवमी वाले दिन खास तरह की पूजा होती है। चैत्र शुक्ल पूर्णिमा वाले दिन श्री शारदा मंदिर में विशेष पूजा, वैशाखी वाले दिन कृष्ण प्रतिपथ माहाभिषेकम और श्री शारदांबल, कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन दीपोत्सव, माघ शुक्ल पंचमी, ललित पंचमी के दिन जगद्गुरू द्वारा श्री शारादम्बा में विशेष पूजा होती है। माघ तृतिया में श्री शारदाम्बा रणोत्सव मनाया जाता है।
कैसे पहुंचे- अगर आप फ्लाइट से यहां जाने की सोच रहे हैं तो मंगलौर सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है। सड़कमार्ग से जाने की प्लानिंग कर रहे हैं तो बंगलौर से यहां तक कि दूरी 340 किमी है। लगभग सभी बड़ों शहरों से यहां तक पहुंचने की बस सुविधा अवेलेबल है।