अब भी बाकी हैं इन जगहों पर महाभारत युद्ध के निशां
मौजूदा समय में ऐसी कई जगहें हैं जो महाभारत युद्ध का गवाह रही हैं और उसकी याद दिलाती हैं। चलिए हम आपको उन जगहों की एक झलक दिखलाते हैं-
महाभारत युद्ध को बीते सदियों हो गए, हमारी न जाने कितनी पीढ़ियों ने इसके बारे में सिर्फ कहानी-किताबों में ही सुना-पढ़ा है। मगर वो कहते हैं न, इतिहास कभी नहीं मरता...वो अपने ऐसे निशां छोड़ जाता है जो सदियों तक बरकरार रहते हैं। ऐसे ही मौजूदा समय में कई जगहें हैं जो महाभारत युद्ध का गवाह रही हैं और उसकी याद दिलाती हैं। तो चलिए हम आपको उन जगहों की एक झलक दिखलाते हैं, जो अपने भीतर सदियों पुराने इतिहास को समाहित किए हुए हैं-
व्यास जी महाभारत युद्ध के सबसे बड़े साक्षी माने जाते हैं, जो महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे और जिस गुफा में उनका निवास था वो जगह बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर आगे उत्तराखंड के माणा गांव में स्थित है। यह स्थान व्यास पोथी के नाम से जाना जाता है। वहीं व्यास गुफा के पास ही गणेश गुफा भी है। कहते हैं इसी गुफा में बैठकर व्यास जी ने गणेश जी से पूरी महाभारत लिखवाई थी।
यह उत्तराखंड का पांडुकेश्वर तीर्थ है। कहते हैं राजपाट त्याग कर महाराज पांडु यहीं अपनी दोनों पत्नियों के साथ रहते थे। यहीं पर पांचों पांडवों का जन्म भी हुआ था।
यह कंस का किला है, जहां वो महाभारत के सबसे बड़े नायक भगवान श्री कृष्ण की हत्या का षडयंत्र रचता था।
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का बरनावा प्राचीन बरनावत माना जाता है। यहीं महाभारत युद्ध का एक बीज बोया गया था। दुर्योधन ने यहीं पर पांडवों को लाक्षागृह में जलाकर मारने की योजना बनाई थी, लेकिन वो एक सुरंग से बचकर निकलने में सफल हुए थे। यही वो सुरंग का द्वार है।
बिहार के राजगृह में स्थित यह कंस के ससुर और कृष्ण के शत्रु जरासंध का अखाड़ा है। कहते हैं यहीं पर भगवान श्री कृष्ण के इशारे पर भीम ने जरासंध का वध किया था।
इन गोटियों को देखने के लिए आपको नागालैंड के दिमापुर जाना होगा। कहते हैं इनसे भीम अपने पुत्र घटोत्कच के साथ शतरंज खेला करते थे। लाक्षागृह से बच निकलने बाद भटकते हुए पांडव वर्तमान नागालैंड पहुंचे थे। यहीं पर भीम और हिडिंबा नाम की राक्षसी का विवाह हुआ था। हिडिंबा से भीम को घटोत्कच नाम का पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने महाभारत युद्ध में कौरवों का बुरा हाल कर दिया था।
यह मनाली में पिरनी स्थित अर्जुन गुफा है। कहते हैं जुए में राजपाट हार जाने के बाद अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण की सलाह पर यही भगवान शिव की तपस्या की थी, जिसके बाद उन्होंने अर्जुन को पशुपताशस्त्र दिया था।
उत्तराखंड में जोशीमंड से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर हनुमान चट्टी है। यह वह स्थान है, जहां भीम की मुलाकात हनुमान जी से हुई थी और हनुमान जी ने महाभारत युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया था।
यह महाभारत युद्ध का वह स्थान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था।
यह कुरुक्षेत्र का प्राचीप कुआं है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है, जहां पर महाभारत युद्ध में चक्रव्यूह की रचना करके अभिमन्यु का वध कर दिया गया था।
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