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Sabarimala Temple: विवादों में घिरे इस मंदिर का इतिहास व महत्‍व, भगवान अयप्‍पा के भक्‍तों की श्रद्धा का केंद्र

केरल के सबरीमाला में हर साल मकर सक्रांति के मौके पर भक्तों की भाड़ी भीड़ दर्शन के लिए उमड़ती है। मंदिर किन वजहों से है खास और क्या है इसका इतिहास, जानते हैं इसके बारे में।

By Priyanka SinghEdited By: Updated: Thu, 03 Jan 2019 11:39 AM (IST)
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Sabarimala Temple: विवादों में घिरे इस मंदिर का इतिहास व महत्‍व, भगवान अयप्‍पा के भक्‍तों की श्रद्धा का केंद्र
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी की दूरी पर पंपा है, वहां से चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट पर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच है सबरीमाला मंदिर। जो समुद्रतल से लगभग 1000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

सबरीमाला मंदिर का इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है। अयप्पा ने राक्षसी महिषी का वध भी किया था।

सबरीमाला में अयप्पा स्वामी का मंदिर है। मकर सक्रांति के दिन यहां घने अंधेरे में एक ज्योत नज़र आती है जिसे देखने के लिए उस दिन यहां भारी भीड़ एकत्र होती है। ज्योति के साथ शोर भी सुनाई देता है। लोग मानते हैं कि यह भगवान द्वारा जलाई गई ज्योत है। भगवान राम को जूठे बेर खिलाने वाली सबरी के नाम पर मंदिर का नाम सबरीमाला रखा गया।

मंदिर में मनाया जाने वाला उल्सवम होता है खास

दूसरे हिंदू मंदिरों की तरह सबरीमाला मंदिर पूरे साल नहीं खुले रहता। मलयालम पंचांग के पहले पांच दिन और अप्रैल में इस मंदिर के द्वार खोले जाते हैं। उस दौरान हर जाति के लोग मंदिर में दर्शन कर सकते हैं। हर साल 14 जनवरी को मनाए जाना वाला 'मकर विलक्कू' और 15 नवंबर को 'मंडलम' यहां का खास उत्सव है। मंदिर में काले और नीले कपड़ों में ही प्रवेश कर सकते हैं।

यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर मंदिर तक पहुंचते हैं। यह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद) से भरी होती है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, उपवास रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति यहां आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग- सबरीमाला में कोई एयरपोर्ट न होने की वजह से कोच्ची या तिरुवंतपुरम तक की फ्लाइट लेनी पड़ती है।

रेल मार्ग- अगर आप ट्रेन से आने की सोच रहे हैं तो कोट्टायम, एर्नाकुलम और चेंगन्नूर यहां का नज़दीकी रेलवे स्टेशन है।

सड़क मार्ग- सबसे करीबी बस स्टॉप पंपा में है अगर आप सड़कमार्ग से आ रहे हैं तो यहां तक के लिए बस लें। पंपा से जंगल के रास्ते होते हुए 5 किमी पैदल चलकर पहाड़ियों से होते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।