Shree Adi Vinayak Mandir: बेहद खास है गणपति का यह मंदिर, जानें क्या है इसकी कहानी
गजानन का शीश हाथी का है यह तो हम सब जानते ही है लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उनका सिर नर का था। भारत में एक ऐसा मंदिर है जहां गणपति का शीश नर का है। एक बार आपको इस मंदिर में दर्शन करने जरूर जाना चाहिए। आइए जानते हैं कहां है यह मंदिर और क्या है इससे जुड़ी कहानी।
By Swati SharmaEdited By: Swati SharmaUpdated: Wed, 20 Sep 2023 06:54 PM (IST)
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Shree Adi Vinayak Mandir: गणपति का रूप हमारी आंखों में बसा हुआ है, लंबी सूंढ़, बड़े-बड़े कान, एक दांत, छोटी-छोटी सी आंखें। गणपति का ध्यान करते ही यहीं रूप हमारे मन में आता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक मंदिर ऐसा भी है जहां गणपति के नर रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में भगवान गणेश का शीश हाथी का नहीं है बल्कि इंसान का है। आइए जानते हैं कहां स्थित है यह मंदिर और क्या है इससे जुड़ी कहानी।
कहां स्थित है यह मंदिर
आदि विनायक के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर तमिल नाडू के तिरुवरुर में स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां गणपति का शीश गज का नहीं बल्कि इंसान का है, इसलिए गजानन के इस रूप को नरमुख विनायक के नाम से भी जाना जाता है। गणेश जी की यह मूर्ति ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई है। इस मंदिर के पास ही भगवान शंकर का मंदिर भी है, जिसे मुक्तेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
क्या है इस मंदिर की कहानी
यह कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार माता पार्वती नहाने जा रही थीं, लेकिन उस वक्त वहां पहरा देने के लिए कोई नहीं था। उन्होंने अपने शरीर पर लगे उबटन से एक बच्चे की प्रतिमा बनाई जिसमें उन्होंने प्राण डाले और वह प्रतिमा एक जीवित बच्चे में बदल गई। इस तरह गणपति का जन्म हुआ था। जन्म के समय उनका सिर इंसान का था और उनके इसी रूप की पूजा आदि विनायक मंदिर में की जाती है।माता पार्वती विनायक को दरवाजे की पहरेदारी की जिम्मेदारी देकर नहाने चली जाती हैं। उसी समय भगवान शंकर वहां आ जाते हैं और गणपति उन्हें अंदर जाने से रोक लेते हैं। इस बात से शिवजी क्रोधित हो जाते हैं और गणेशजी का सिर काट देते हैं। जब देवी पार्वती को इस बारे में पता चलता है तो उन्हें भी बहुत क्रोध आ जाता है। वह भगवान शंकर को सूर्यास्त तक का समय देते हुए कहती हैं, “ जिस भी जीव को शीश उत्तर दिशा में हो उसका सिर गणपति के धर पर लगाया जाएगा।” तभी एक हाथी मिलता है जो उत्तर दिशा की तरफ सिर करके सो रहा था। उसी गज का शीश गौरी नंदन के धर पर लगाया गया और तब से वे गजानन कहलाए जाने लगे।
इस मंदिर से जुड़ी मान्यता
ऐसा कहा जाता है कि एक बार श्री राम अपने पितरों का पिंड दान कर रहे थे। मगर वे पिंड कीड़ों में तबदील हो रहे थे। इस समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए वे भगवान शिव के पास गए, जिन्होंने उन्हें तिरुवरुर जाकर पूजा करने की सलाह दी। जब श्री राम ने यहां पूजा की तब वे चार पिंड चार शिवलिंग में बदल गए, जो आज मुक्तेश्वर मंदिर के नाम से जाने जाते हैं। राम जी के पितरों को यहां मोक्ष मिला था, इस मान्यता के कारण लोग यहां अपने पूर्वजों की शांति के लिए पूजा करते हैं।कैसे पहुंचे यहां?
चेन्नई से तिरुवरुर का सफर 6-7 घंटे का है। जहां आप बस या ट्रेन से पहुंच सकते हैं। जिसके बाद आप टैक्सी या फिर बस से आदि विनायक मंदिर तक जा सकते हैं।Picture Courtesy: X (formerly Twitter)