क्या अजमेर शरीफ की इन दिलचस्प बातों के बारे में जानते हैं आप ?
ये दरगाह वाकई देखने लायक है। यहां केवल मुस्लिम ही नही बल्कि दुनिया भर से हर धर्म के लोग खिंचे चले आते हैं।
By Babita KashyapEdited By: Updated: Fri, 18 Aug 2017 11:24 AM (IST)
राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह का नाम तो सभी ने सुना ही होगा, अजमेर शरीफ के नाम से प्रसिद्ध इस दरगाह में हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मजार है। अजमेर शरीफ के नाम से प्रसिद्ध ये दरगाह वाकई देखने लायक है। यहां केवल मुस्लिम ही नही बल्कि दुनिया भर से हर धर्म के लोग खिंचे चले आते हैं।
आज हम आपको अजमेर शरीफ की ऐसी दिलचस्प बातों के बारे में बता रहे हैं जिनके बारे में शायद ही आप जानते हों। स्पीकिंगट्री.कॉम के अनुसार-मोहम्मद बिन तुगलक हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी की दरगाह में आने वाला पहला व्यक्ति था जिसने 1332 में यहां की यात्रा की थी।
-निजाम सिक्का नामक एक साधारण पानी भरने वाले ने एक बार यहां मुगल बादशाह हुमायूं को बचाया था। इनाम के तौर पर उसे यहां का एक दिन का नवाब बनाया गया। निजाम सिक्का का मकबरा भी दरगाह के अंदर स्थित है।
-अजमेर शरीफ में सूफी संत मोइनूदीन चिश्ती की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में उर्स के रूप में 6 दिन का वार्षिक उत्सव रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब ख्वाजा साहब 114 वर्ष के थे तो उन्होने अपने आप को 6 दिन तक कमरे में रखकर अल्लाह की प्रार्थना की। आश्चर्य की बात यह है कि इस समय अल्लाह के मुरीदों के द्वारा एकदम गरम जलते कढ़ाहे के अंदर खड़े होकर यह खाना वितरित किया जाता है।-जहालरा - यह दरगाह के अंदर एक स्मारक है जो कि हजरत मुईनुद्दीन चिश्ती के समय यहां पानी का मुख्य स्त्रोत था। आज भी जहालरा का पानी दरगाह के पवित्र कामों में प्रयोग किया जाता है।-रोजाना नमाज के बाद यहां सूफी गायकों और भक्तों के द्वारा अजमेर शरीफ के हॉल महफि़ल-ए-समां में अल्लाह की महिमा का बखान करते हुए कव्वालियां गाई जाती हैं।-इसके पश्चिम में चांदी का पत्रा चढ़ा हुआ एक खूबसूरत दरवाजा है जिसे जन्नती दरवाजा कहा जाता है। यह दरवाजा वर्ष में चार बार ही खुलता है- वार्षिक उर्स के समय, दो बार ईद पर, और ख्वाजा शवाब की पीर के उर्स पर।-अजमेर शरीफ के अंदर बनी हुई अकबर मस्जिद अकबर द्वारा जहांगीर के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति के समय बनाई गई। वर्तमान में यहां मुस्लिम धर्म के बच्चों को कुरान की तामिल (शिक्षा) प्रदान की जाती है।-दरगाह के अंदर दो बड़े-बड़े कढ़ाहे हैं जिनमें निआज (चावल, केसर, बादाम, घी, चीनी, मेवे को मिलाकर बनाया गया खाद्य पदार्थ) पकाया जाता है। यह खाना रात में बनाया जाता है और सुबह प्रसाद के रूप में जनता में वितरित किया जाता है। यह छोटे कढाहे में 12.7 किलो और बड़े वाले में 31.8 किलो चावल बनाया जाता है। कढ़ाहे का घेराव 20 फीट का है। यह बड़ा वाला कढ़ाहा बादशाह अकबर द्वारा दरगाह में भेंट किया गया जब कि इससे छोटा वाला बादशाह जहांगीर द्वारा चढ़ाया गया।-शाह जहानी मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक अद्भुभूत नमूना है जहां अल्लाह के 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं।संध्या प्रार्थना से 15 मिनट पहले दैनिक पूजा के रूप में दरगाह के लोगों द्वारा दीपक जलाते हुये ड्रम की धुन पर फारसी छंद भी गाये जाते हैं। इस छंद गायन के बाद ये लेंप्स मिनार के चारों और जलते हुये रखे जाते हैं। इसे परंपरा को 'रोशनी' कहते हैं।READ: भारत का सबसे साफ-सुथरा शहर, यहां कूड़ा बेचकर कमाई करते हैं लोगभारत की इन रहस्यमयी जगहों के बारे में क्या जानते हैं आप?