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अरुणाचल प्रदेश आकर देखें दुनिया का सबसे ऊंचा प्राकृतिक शिवलिंग, लकड़हारे ने की थी इसकी खोज

अरुणाचल प्रदेश में देखें 26 फीट ऊंचा और 22 फीट चौड़ा शिवलिंग। जिसका लगभग 4 फीट हिस्सा धरती के नीचे है। शिवरात्रि के दौरान दूर-दराज से लोग यहां दर्शन और पूजा के लिए पहुंचते हैं।

By Priyanka SinghEdited By: Updated: Thu, 20 Feb 2020 11:43 AM (IST)
अरुणाचल प्रदेश आकर देखें दुनिया का सबसे ऊंचा प्राकृतिक शिवलिंग, लकड़हारे ने की थी इसकी खोज
प्राकृतिक खूबसूरती, सभ्यता-संस्कृति और विविधता का एक नायाब नमूना है अरुणाचल प्रदेश। इन्हीं खूबियों के चलते यह शहर UNESCO के हेरिटेज लिस्ट में शामिल है। बेशक यहां आने पर आपको शिमला या ऊटी जैसी रौनक नहीं मिलेगी, लेकिन भीड़ से दूर, मीलों तक फैले धान के विशाल खेत, चीड़-देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों की श्रृंखलाएं, बर्फ की सफेद चादर से ढकी पहाड़ों की चमचमाती चोटियां, घने जंगल में पत्तों की सरगोशियां, तंग जगहों से पानी का घुमावदार बहाव, बौद्ध भिक्षुओं के भजन की पावन ध्वनि और स्थानीय सहज-सरल लोगों का सत्कार मिलता है यहां..जिसकी ख्वाहिश हर घुमक्कड़ को होती है। इस सबके अलावा कुछ और भी है जो इस जगह को खास बनाता है वो है 26 फीट ऊंचा विशाल शिवलिंग। जानेंगे इसके बारे में...

सबसे ऊंचा प्राकृतिक शिवलिंग 

एक लकड़हारे ने इस शिवलिंग की खोज की थी। इस 26 फीट ऊंचे और 22 फीट चौड़े इस शिवलिंग का लगभग चार फीट हिस्सा धरती के नीचे है। यहीं पर इस शिवलिंग से छोटा पार्वती और कार्तिकेय मंदिर है। इनके बायीं और भगवान गणेश और सामने की चट्टान पर नंदी की आकृति बनी हुई है। खास बात यह भी देखेंगे कि शिवलिंग के निचले हिस्से में जल का प्रवाह अनवरत बना रहता है। शिवलिंग के ऊपरी हिस्से में स्फटिक की माला भी साफ दिखाई देती है। ये सभी पूरी तरह से प्राकृतिक रूप में मौजूद हैं और इनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। कहते हैं कि शिवलिंग और शिव परिवार की उत्पत्ति ठीक उसी तरह हुई है, जैसा कि शिव पुराण में इसका उल्लेख है। शिव पुराण के नौवें खंड के 17वें अध्याय में इसका जिक्र भी है। इसके मुताबिक सबसे ऊंचा शिवलिंग 'लिंगालय' नामक जगह पर पाया जाएगा। कालांतर में वह जगह अरुणाचल के नाम से जानी जाएगी। राज्य में 1970 के करीब शुरू हुई पुरातात्विक खुदाई में धार्मिक स्थलों के मिलने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, यह उनमें सबसे ताजा है।

सिद्धेश्वरननाथ मंदिर

स्थानीय मंदिर प्रशासन ने इस स्थान का नाम 'सिद्धेश्र्वरनाथ मंदिर' रखा है। जीरो घाटी की करडा पहाड़ी पर विराजते हैं सिद्धेश्र्वर नाथ महादेव। अब इस जगह पर हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि के मौके पर तो स्थानीय लोग ही नहीं, दुनियाभर से श्रद्धालु वहां पहुंच कर शिव परिवार को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। जीरो के मुख्य बाजार हापोली से सिद्धेश्र्वर महादेव की दूरी 6 किलोमीटर है जो पैदल भी तय की जा सकती है या हापोली के टैक्सी स्टैंड से किराये पर टैक्सी ले सकते हैं।

कैसे पहुंचे

अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर या नहारलगून रेलवे स्टेशन से जीरो की दूरी करीब 120 किलोमीटर है। असम के लखीमपुर शहर से जीरो की दूरी 100 किलोमीटर है। लखीमपुर से भी जीरो के लिए शेयरिंग सूमो सेवा मिलती रहती है। आप गुवाहाटी तक ट्रेन या फ्लाइट से भी जा सकते हैं। आपके आगे की यात्रा के लिए निजी बस और टैक्सी अवेलेबल हैं। 

Pic Credit- Flickr.com