तिरूपति बालाजी दर्शन करने जाएं, तो देखना न भूलें गुप्त रसोई जहां बनते हैं रोजाना 3 लाख लड्डू
यह मंदिर तिरुमलै पर्वत पर स्थित है, जहां भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं। तिरुपति शहर इसी पर्वत के नीचे बसा हुआ है।
By Pratima JaiswalEdited By: Updated: Sat, 14 Jul 2018 06:00 AM (IST)
आस्था अगर आप तीर्थयात्रा का पुण्य अर्जित करने के साथ मनोहारी प्राकृतिक दृश्यों का आनंद उठाना चाहते हैं तो चलें तिरुपति बाला जी मंदिर के दर्शन करने। दक्षिण भारतीय मंदिर अनूठी स्थापत्य कला के लिए विश्व-विख्यात हैं। इस दृष्टि, से आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित तिरुपति बाला जी मंदिर भी दर्शनीय है।
श्रीवेंकटेश्वर की सात फुट ऊंची मूर्ति विराजमान यह मंदिर तिरुमलै पर्वत पर स्थित है, जहां भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं। तिरुपति शहर इसी पर्वत के नीचे बसा हुआ है। इसकी सात चोटियां भगवान आदिशेष के सात सिरों को दर्शाती हैं। यहां की प्राकृतिक छटा निराली है। बाला जी का मंदिर सातवीं चोटी वेंकटाद्री पर स्थित है, वेंकट पहाड़ी के स्वामी होने के कारण ही भगवान विष्णु को वेंकटेश्वर भी कहा जाता है। यह मंदिर भारत के सर्वाधिक संपन्न मंदिरों में से एक है। प्रचलित मान्यता के अनुसार मनौती पूरी होने के बाद यहां आने वाले भक्तजन भगवान को अपने बाल अर्पित करते हैं। यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। इसके गर्भगृह को 'अनंदा निलियम कहा जाता है। यहां चार भुजाओं वाले भगवान श्रीवेंकटेश्वर की सात फुट ऊंची मूर्ति विराजमान है। यह मंदिर तीन परकोटों से घिरा है, जिन पर स्वर्ण कलश स्थापित हैं। स्वर्णद्वार के सामने तिरुमहामडंपम नामक मंडप है। मंदिर के सिंहद्वार को 'पडिकावलि कहा जाता है। इसके भीतर बालाजी के भक्त राजाओं एवं रानियों की मूर्तियां स्थापित हैं। परंपरा के अनुसार बालाजी को तुलसी की मंजरी चढ़ाने के बाद उसे यहां स्थित पुष्प कूप में विसर्जित कर दिया जाता है। मंदिर के मुख्यद्वार पर भगवान विष्णु के द्वारपाल जय-विजय की मूर्तियां सुशोभित हैं।
पौराणिक कथाओं के प्रति भक्तों की श्रद्धा बाला जी के विग्रह पर एक चोट का निशान है, जिस पर नियमित रूप से औषधि के रूप में चंदन का लेप लगाया जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार एक भक्त नियमित रूप से भगवान के लिए दूध लाता था। इसके लिए उसे प्रतिदिन दुर्गम पहाड़ी मार्ग पर पैदल चलना पड़ता था। भक्त की कठिनाई देखकर भगवान ने यह तय किया मैं स्वयं उसकी गौशाला जाकर दूध पी आऊंगा। फिर भगवान प्रतिदिन मनुष्य का रूप धारण करके भक्त की गौशाला में जाते और चुपके से गाय का दूध पीकर वापस लौट आते। एक रोज़ उस भक्त ने मनुष्य रूपी भगवान को ऐसा करते देखा तो चोर समझकर उन पर डंडे से प्रहार कर दिया। उसी वजह से भगवान श्रीबाला जी के विग्रह पर चोट का निशान अंकित है।
रोजाना बनते है 3 लाख लड्डू
ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की मूर्ति से समुद्र की लहरों की ध्वनि सुनाई देती है। इसी कारण उसमें नमी रहती है। यहां प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाले लड्डू विश्व प्रसिद्ध हैं, जिन्हें बनाने के लिए वहां के कारीगर आज भी तीन सौ साल पुराना पारंपरिक तरीका इस्तेमाल करते हैं। इसे मंदिर के गुप्त रसोईघर में तैयार किया जाता है, जिसे 'पोटू कहा जाता है। यहां रोज़ाना लगभग 3 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं।
कैसे पहुंचे तिरुपति दक्षिण भारत का प्रसिद्ध नगर है। चेन्नई से मुंबई जाने वाले रेलमार्ग के बीच में पडऩे वाले रेणिगुंटा स्टेशन से मात्र 10 किमी. की दूरी पर तिरुपति स्टेशन है। हैदराबाद, कांची और चित्तूर आदि शहरों से तिरुपति जाने के लिए बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। स्टेशन के पास ही मंदिर ट्रस्ट की ओर से बनवाई गई आरामदेह धर्मशाला स्थित है।
घूमने का बेस्ट टाइम तिरुपति जाने के लिए अगस्त से फरवरी के बीच का समय सर्वाधिक उपयुक्त है। इस दौरान यहां कई झांकियां निकलती हैं और मौसम भी सुहावना रहता है। तिरुपति बाला जी को पृथ्वीलोक का साक्षात वैकुंठ माना जाता है। इसके मार्ग में गोविंदा-गोविंदा का जयघोष प्रत्येक क्षण सुनाई देता है।