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MP Tourism: मप्र के सागर जिले में स्थित है 16वीं सदी बना विशाल दुर्ग, कचहरी और रानी का महल

धामौनी के लिए सागर जिला मुख्यालय से सीधा रास्ता है। सागर से गढ़पहरा होते हुए बहरोल के रास्ते धामौनी पहुंचा जा सकता है। धामौनी पहुंचने पर करीब डेढ़ किमी अंदर यह किला बना हुआ है। रास्ता कच्चा है। नेशनल हाइवे 44 झांसी-लखनादौन मार्ग से भी यहां पहुंचा जा सकता है।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Thu, 13 Oct 2022 09:59 PM (IST)
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मप्र के सागर जिले में स्थित है 16वीं सदी बना विशाल दुर्ग, रानी का महल व हाथी द्वारों का वैभव
संजय पांडेय, सागर: मध्य प्रदेश के सागर जिला मुख्यालय से 44 किमी दूर स्थित धामौनी किला बुंदेलखंड के समृद्ध इतिहास को आज भी संजोये हुए है। किले की सुरक्षा के लिए तीन ओर से गहरी खाई है। खाइयों की वजह से किले में केवल एक ओर से प्रवेश कर सकते हैं। किले के भीतर चारों ओर 52 बुर्ज बने हैं। हालांकि, अब इनमें से कुछ ही सुरक्षित हैं।

किले का निर्माण लगभग 50 एकड़ भूमि पर किया गया था। इस किले में राजा-रानी का महल, राजा की कचहरी, विशाल हाथी दरवाजे हैं। दुर्ग में लगभग 52 कोठरियां बनी हैं, इनको भूलभुलैया कहा जाता है। इस दुर्ग में एक विशाल एवं सुंदर रानी बावड़ी है। यहां पर बलजीत शाह की समाधि बनी है। इन्हें मुगलकालीन अकबर के राजदरबारी अबुल फजल का गुरू माना जाता है। आइना-ए -अकबरी ग्रंथ में इसका उल्लेख मिलता है।

रानी महल के बाजू से बनी वावड़ी। यह वावड़ी का प्रवेश द्वार।

जल संरक्षण की भी थी व्यवस्था

धामौनी दुर्ग बुंदेलखंड का एक विशाल दुर्ग है। यहां बुंदेलों का राज काफी समय तक रहा। इस किले में जल संरक्षण की उत्तम व्यवस्था थी। दुर्ग के मुख्यद्वार के साथ एक विशाल रक्षा प्राचीर बनाई गई थी, जो लगभग 60 फीट ऊंची तथा 20 फीट चौड़ी है। यह दुर्ग मध्ययुग में सामरिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता था। वर्तमान में किले का भव्य प्रवेश द्वार ही वैभव के साथ शेष है। किले के अंदर पहुंचते ही प्राचीन निर्माण बिखरता दिखाई देता है। किला तक पहुंचने वाला रास्ता जंगल से होकर जाता है। यह रास्ता कच्चा है। वर्षा ऋतु में कीचड़ भरे रास्ते से होकर किले तक पहुंचते हैं। इस रास्ते के बनने से यह बुंदेलखंड का आकर्षक पर्यटन स्थल हो सकता है। किले के अंदर कई जगह धन लोभियों ने खोदाई की, जिससे कई गड्ढे हो गए। पुरातत्व विभाग ने इन गड्ढों को भर दिया, लेकिन खोदाई के निशान आज भी हैं।

धामौनी किला का भव्य प्रवेश द्वार।

कई शासकों के कब्जे में रहा

सागर निवासी पुरावेत्ता एवं अमरकंटक विश्वविद्यालय में पदस्थ डा. मोहनलाल चढ़ार बताते हैं कि धामौनी किला का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था। गढ़ा मंडला के शासक सूरतशाह ने इसे बनवाया। कुछ समय यह दुर्ग मुगल सुल्तानों के अलावा ओरछा के राजा वीरसिंह देव के अधिकार में भी रहा। उन्होंने इस दुर्ग का जीर्णोद्वार कराया। इसके बाद यह बुंदेलों के आधिपत्य में रहा और बाद में महाराष्ट्र के भोंसले शासकों ने इस पर कब्जा किया। अठारहवीं शताब्दी में अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया। स्लीमेन ने इसे असाधारण वास्तुशिल्प में बनाया गया दुर्ग कहा है। बताया जाता है, मुगलकाल के मशहूर इतिहासकार अबुल फजल भी यहीं पैदा हुए था, लेकिन इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। आइना-ए-अकबरी में इसका उल्लेख मालवा सूबे में रायसेन की सरकार के महाल के रूप में किया गया है। किसी जमाने में यहां हाथी बेचने के लिए बाजार लगता था।

रानी महल के अंदर के दृश्य।

यह ओरछा के राजा वीरसिंहदेव के राज्य में (1605-27) सम्मिलित था। उन्होंने किले का फिर से निर्माण कराया था। किले के अलावा यहां रानी महल के नाम से विख्यात एक महल भी है। यहां का एक अन्य उल्लेखनीय स्थान मुस्लिम संतों की दो मजारें भी हैं। इनमें से एक बलजीत शाह की मजार है। दूसरी मजार मस्तान शाह वली की है। पुरातत्सव विभाग द्वारा किले की देखरेख के लिए तैनात किए गए कर्मचारी जानकी प्रसाद प्रजापति का कहना है कि ऐसी किवदंती है कि बलजीत शाह की मजार पर मस्तान शाह वली दीया जलाया करते थे। एक रोज वे धामौनी पहुंचे, जहां उन्होंने लोगों से मनभर (इच्छानुसार) तेल देने को कहा। वहीं लोगों ने मनभर यानी 40 किग्रा तेल मांगने की बात समझी और किसी ने उन्हें तेल नहीं दिया। इस पर फकीर मस्तान शाह ने धामौनी के उजाड़ होने की बददुआ दी। तब से यह नगर उजाड़ हो गया। लोगों की मान्यता है कि धामौनी किले के पास ही मस्तान शाह की मजार बनी है, जो धीरे-धीरे धंस रही है, इसके धंसने के बाद धामौनी फिर आबाद होगा। हालांकि अब लोगों ने धंसनू मजार के नाम से पहचानी जाने वाले इस मजार को पक्का बना दिया है।

किले के चारों ओर इसी तरह 52 बुर्ज बने हैं, जो क्षतिग्रस्त हो गए हैं।

विशाल व मनमोहक दृश्य

इतिहासकार डा. रजनीश जैन ने मुताबिक किले का परिक्षेत्र विशाल एवं परिदृश्य मनमोहक है। किले के अंदर कुछ सुंदर इमारतें हैं, जो खंडहरों में तब्दील हो चुकी हैं। रानी महल के अंदर पत्थरों पर सुंदर नक्काशी की गई है। रानी महल के अंदर ही एक प्राचीन फव्वारा है। इस फव्वारे में मिट्टी की पाइप लाइन को तालाब से जोड़ा गया था। अब यह फव्वारा बंद है। कब्रों के निर्माण में नक्काशीदार पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। किले के तीन ओर मौजूद गहरी और चौड़ी खाइयां हैं। जो इसकी सुरक्षा करती थीं। प्रवेश केवल एक ही दिशा से हो सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जबलपुर सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद डा. शिवकांत वाजपेयी का कहना है कि धामौनी जबलपुर सर्किल के तहत आता है। यह किला जर्जर हालत में है। इसके जीर्णोद्वार व मरम्मत का प्रस्ताव तैयार किया गया है।

कैसे पहुंचें धामौनी

धामौनी के लिए सागर जिला मुख्यालय से सीधा रास्ता है। सागर से गढ़पहरा होते हुए बहरोल के रास्ते धामौनी पहुंचा जा सकता है। धामौनी पहुंचने पर करीब डेढ़ किमी अंदर यह किला बना हुआ है। रास्ता कच्चा है। नेशनल हाइवे 44 झांसी-लखनादौन मार्ग से भी यहां पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए सागर व मालथौन के बीच पड़ने वाले बरौदियाकलां गांव में उतरना पड़ेगा। सागर से बरौदिया कलां की दूरी 44 किमी है। यहां से रास्ता बदलते हुए 18 किमी सीधे धामौनी चौराहे तक पहुंच सकते हैं।