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9 साल 9 महीने 9 दिन में बना 9 मंजिला चिकतन किला, हवा के झोंके से घूमता था इसका एक कमरा… अब खंडहर में बदला

देश की धरोहर में आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे किले की कहानी जो कभी वास्तुकला का नायाब नमूना था। जिसे बाल्टिस्तान से भागकर आए राजकुमार थाटा खान ने बनाया था। मगर आज देखरेख के अभाव में ये किला खंडहर हो चुका है। स्थानीय लोग इसे भुतहा मानते हैं। हालांकि लेह-लद्दाख में बने इस किले को देखने के लिए कई पर्यटक पहुंचते हैं।

By Shashank Shekhar Bajpai Edited By: Shashank Shekhar Bajpai Updated: Sat, 17 Aug 2024 09:00 AM (IST)
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श्रीनगर-लेह राजमार्ग से होते हुए इस किले तक पहुंचा जा सकता है।

शशांक शेखर बाजपेई। हिमालय की खूबसूरत पहाड़ियों के बीच केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में देश की एक ऐतिहासिक धरोहर है। कहते हैं कि 8वीं सदी में थाटा खान ने करगिल से 75 किमी दूर चिकतन किले की नींव रखी थीं।

इस 9 मंजिला किले को 9 साल 9 महीने 9 दिन में बनाया गया था। कभी यहां देश-विदेश से लोग आया करते थे। मगर, अब यह किला खंडहर में तब्दील हो गया है और वीराना हो गया है। इसके बावजूद इस किले को देखने के लिए पर्यटक आते हैं। जानते हैं इस वीरान जगह पर किले के बनने और फिर उसके वीरान होने की कहानी…

बाल्टिस्तान से भागकर आए थे थाटा खान

ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ में बताया गया है कि 8वीं शताब्दी में बाल्टिस्तान (नियंत्रण रेखा के पार) में एक राजकुमार हुआ करता था थाटा खान। उसकी लोकप्रियता से उसके दोनों बड़े भाई जलते थे।

उन्होंने थाटा खान को जान से मारने की साजिश रची। मगर, इस बात की जानकारी रॉयल कोर्ट के संगीतकारों को लग गई। उन्होंने गाने के जरिये ये संदेश थाटा खान को दे दिया।

कहते हैं कि थाटा खान उसी वक्त नाचने के बहाने से उठा और शॉल को घुमाकर उसने वहां जल रही मोमबत्तियों को बुझा दिया। अंधेरे का फायदा उठाकर वहां से फरार हो गया।

इसके बाद वहां से भागकर थाटा खान ने चिकतन क्षेत्र में शरण ली। इस जगह की खूबसूरती को देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गया। उसने यहां किला बनाने का फैसला किया।

हालांकि, वह इस जगह पर एक छोटा सा महल ही बना सका। बाद में उसके वंशज राजा त्सेरिंग मलिक ने 16वीं शताब्दी में महल का निर्माण पूरा कराया। शाही परिवार सदियों तक इस महल में रहता रहा।

इस शाही महल को बाल्टिस्तान के दो कारीगरों शिनखेन चंदन और उनके बेटे ने शिद्दत से बनाया। इसी जगह के पास है नुन कुन की पहाड़ियां, जहां की खूबसूरती आपका दिल जीत लेगी। 

अद्भुत था यहां का आर्किटेक्चर

कहते हैं कि कभी यह किला और महल वास्तुकला का शानदार नमूना था। मिट्टी के गारे के साथ पत्थरों को चुनकर इस महल को बनाया गया था। छत को सहारा देने के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया था।

लकड़ी के दरवाजे और खिड़कियों पर शानदार नक्काशी की गई थी। थाटा खान की 35-36वीं पीढ़ी से ताल्लुक रखने वाले काचू इश्फायंदर खान रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं। वह कारगिल के कमिश्नर रह चुके हैं।

‘एकांत’ के शो में उन्होंने बताया कि चिकतन का किला 9 मंजिल का था। कहा जाता है कि महल में एक घूमने वाला कमरा था, जो हवा के झोंके आने पर घूमने लगता था। उस समय में यह वाकई अद्भुत था।

एक पहाड़ी पर पैलेस, दूसरी पर बना था किला

दो पहाड़ियों में से एक पर शाही परिवार के रहने के लिए पैलेस बना था और दूसरी पहाड़ी पर किला बना था। दोनों को जोड़ने के लिए एक अस्थाई पुल भी बनाया गया था। किसी आक्रमण के होने की स्थिति में पुल को हटाया भी जा सकता था।

किले का निर्माण इस तरह से किया गया था कि यदि उसे बंद कर लिया जाए, तो पास में बहने वाली सिंधु नदी का पानी हमेशा वहां पहुंचता रहता था। किले से भागने के लिए सुरंग भी बनाई गईं थी, जो अब मलबे के नीचे जमींदोज हो गई हैं।

19वीं सदी के अंत से शुरू हुआ किले का पतन

स्थानीय लोग बताते हैं कि जम्मू के डोगरा राजा को इलाके में राजा की बढ़ती लोकप्रियता पसंद नहीं आई। उन्होंने योजना बनाकर महल पर हमला कर दिया। चिकतन पैलेस पर कई बार हमला हुआ।

जब शाही परिवार के लोगों ने 19वीं सदी के अंत में महल को छोड़ दिया, तो इसका पतन शुरू हो गया था। इस ऐतिहासिक जगह को सबसे अधिक नुकसान 20वीं सदी के मध्य में हुआ।

बताया जाता है कि राजा के ससुर यहां एक अस्पताल बनवाना चाहते थे। इसके लिए ईंटों की जरूरत थी, जिन्हें किले की दीवार तोड़कर इस्तेमाल किया गया।

इसके बाद स्थानीय लोगों ने भी किले की दीवार से ईंट और लकड़ी को निकालना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह किला मलबे में तब्दील हो गया। आज किले का खंडहर कभी अपनी बुलंद रही इमारत की कहानी सुनाता है।

अब रात में यहां जानवर भी नहीं जाते हैं

स्थानीय लोग बताते हैं कि रात के समय में यहां इंसान तो क्या मवेशी भी नहीं जाते हैं। कहते हैं कि ये जगह भुतहा हो गई है। दरअसल, इस किले में कई लोगों की मौत हुई है।

शाही परिवार के लोगों ने भी डर की वजह से इस जगह को छोड़ दिया था। लिहाजा, अब शाम होने के बाद कोई भी इस किले की तरफ नहीं जाता है।

किले तक जाने के लिए करनी होगी टैक्सी

हिमालय के शांत पहाड़ों की बर्फीली वादियों की छांव में बसा है लद्दाख। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के पारित होने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है।

इसके बाद यहां पर्यटन भी शुरू हो गया है। लद्दाख के सबसे पास का कस्बा है कारगिल। जब आप यहां से गुजरेंगे, तो कस्बे का शानदार नजारा दिखाई देगा। यहां से 75 किमी दूर बसा है चिकतन गांव।

यहां पहुंचने के लिए श्रीनगर-लेह राजमार्ग से आप कार या टैक्सी से यहां पहुंच सकते हैं। इसी गांव की दो पहाड़ियों पर बना है चिकतन किला या चिकतन खार। किले में एंट्री के लिए कोई शुल्क नहीं देना होता है।

डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और कारगिल लद्दाख की पर्यटन वेबसाइट से जानकारी और फोटो ली गई है।

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