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छत्तीसगढ़ का रामनामी समुदाय जहां लोगों के मन ही नहीं तन पर भी बसते हैं राम

भारतवासियों के लिए आज का दिन बहुत खास है क्योंकि आज यानी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम आयोजन किया गया। जिसे लेकर लोगों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिल रहा है। ऐसा ही खुशी का माहौल छत्तीसगढ़ में रामनामी समुदाय में भी है जहां कण-कण में बसते हैं राम।

By Priyanka Singh Edited By: Priyanka Singh Updated: Mon, 22 Jan 2024 01:33 PM (IST)
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छत्तीसगढ का रामनामी समुदाय, जहां कण-कण में बसते हैं राम

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। देश में आज फेस्टिवल जैसा माहौल है। हर जगह राम नाम छाया हुआ है। भक्तों में एक अलग ही उत्साह और आनंद देखने को मिल रहा है। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में कई बड़ी हस्तियां शामिल हुई हैं, वहीं देश का एक छोटा सा ऐसा हिस्सा भी है, जिसे न तो राम मंदिर से कोई खास मतलब है न ही मूर्ति से, क्योंकि यहां रामभक्ति के लिए कोई एक दिन या समय तय नहीं, बल्कि यहां के लोगों ने तो अपना पूरा जीवन ही भगवान राम को समर्पित कर दिया है।

रामनामी समुदाय    

छत्तीसगढ़ में एक ऐसा समुदाय है, जिसे रामनामी नाम से जाना जाता है। परशुराम द्वारा स्थापित यह एक हिंदू संप्रदाय है, जो भगवान राम की पूजा करता है। यहां के लोग पूरी तरह से राम भक्ति में रमे हुए हैं। इसका अंदाजा आप उन्हें देखकर ही लगा सकते हैं। राम की भक्ति इनके अंदर ऐसी बसी हुई है कि इन्होंने पूरे शरीर पर ‘राम नाम’ का टैटू बनवाया हुआ है, जो भगवान राम से गहरे संबंध की अभिव्यक्ति है। इस समुदाय के लिए राम उनकी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। भगवान राम की भक्ति और उनका गुणगान ही इनकी जिंदगी का खास मकसद है।

कब हुई थी इस समुदाय की स्थापना?

इस समुदाय की स्थापना सन् 1870 में जांजगीर चाम्पा जिले के चारपारा गांव के सतनामी समाज के परशुराम जी ने किया था। उन्होंने ही पहली बार राम नाम का गोदना करवाया था। 

ऐसे दिखते हैं रामनामी समुदाय के लोग

इनके शरीर के लगभग हर हिस्से पर राम का नाम अंकित है। तन पर रामनामी चादर लिए होते हैं, सिर पर मोरपंख की पगड़ी और घुंघरू इन लोगों की खास पहचान होती है। 

रामनामी समुदाय के घर

रामनामी समुदाय के लोगों के घर बहुत ही साधारण होते हैं। जो उनकी साधारण जीवनशैली को बयां करते हैं। मिट्टी या बांस से बने इस घरों की वास्तुकला खास होती है।  

मरने के बाद नहीं जलाते लाशें

रामनामी समुदाय के लोग मृत्यु के बाद लाशों को जलाते नहीं, बल्कि पंचतत्व में विलीन करते हैं। उनका मानना है कि वो राम नाम को सामने से जलते हुए नहीं देख सकते। 

रामनामी समुदाय के लोगों का कौशल

इस समुदाय के लोग प्राकृतिक स्याही बनाने का काम करते हैं। इस स्याही का इस्तेमाल राम नाम के जाप और पूजा-पाठ के लिए किया जाता है। इस स्याही को पारंपरिक तरीकों से तैयार किया जाता है। जिसमें लाल रंग के फूलों के पानियों का उपयोग किया जाता है। स्याही को गाढ़ा रंग देने में काफी वक्त और मेहनत लगती है। 

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Pic credit- freepik